सन्त जूली बिलीयार्त फ्राँस की एक धर्मी महिला थीं जिन्होंने मरियम को समर्पित "नोत्र
दाम दे नामूर" धर्मसंघ की स्थापना की थी। इस धर्मसंघ की वे प्रथम अध्यक्षा भी थीं।
सन्त
जूली का जन्म, 12 जुलाई सन् 1751 ई. को, फ्राँस में हुआ था। स्कूल जाना उनके बाल्यकाल
का सर्वोत्तम मनोरंजन था। जब वे 16 वर्ष की हुई तब अपने परिवार के भरण पोषण के लिये उन्होंने
शिक्षण कार्य शुरु कर दिया था। शिक्षा मिशन से जब भी फुरसत मिलती वे मज़दूरों को बाईबिल
के दृष्टान्त सुनाया करती थीं। जूली ने आजीवन शिक्षा मिशन को जारी रखा। जब जूली तीस वर्ष
की थी तब ही वे बीमार हो चली थी और बीमारी ने उनका साथ लम्बे समय तक नहीं छोड़ा किन्तु
उन्होंने अपनी सारी पीड़ा प्रभु ईश्वर को अर्पित कर दी। 22 वर्ष तक बे बीमार रहीं तथा
लकुए से रोगग्रस्त हो गई फिर भी अपनी प्रेरिताई का उन्होंने परित्याग नहीं किया।
फ्राँस
की क्रान्ति के समय उन्होंने अपने जीवन को जोखिम में डालकर, अपने घर में कई लोगों को
शरण प्रदान की, इनमें कई काथलिक पुरोहित शामिल थे। अपनी प्राण रक्षा के लिये वे वहाँ
से भाग सकती थी किन्तु उन्होंने शरणार्थियों के साथ रहकर उनकी सेवा करने का ही निर्णय
लिया। अपने शिक्षा मिशन को जारी रखने के लिये एक धनी महिला का समर्थन प्राप्त कर जूली
ने "नोत्र दाम दे नामूर" धर्मसंघ की स्थापना की थी।
08 अप्रैल सन् 1816 ई.
को, 64 वर्ष की आयु में, धर्मबहन जूली बिलीयार्त का निधन हो गया था। सन् 1969 ई. में
सन्त पापा पौल षष्टम ने फ्राँस की धर्मबहन जूली बिलीयार्त को सन्त घोषित कर कलीसिया में
वेदी का सम्मान प्रदान किया था। सन्त जूली बिलीयार्त का पर्व 08 अप्रैल को मनाया जाता
है।
चिन्तनः आधुनिक युग की शिक्षा से ईश्वर को अलग करने की हमारी कोशिश
विनाशक हो सकती है। नैतिक मूल्यों के ज्ञान को शिक्षा का अभिन्न अंग बनाकर ही लोगों में
प्रेम, न्याय एवं शांति के भावों को उत्पन्न किया जा सकता है।