रविवार, सोमवार 6 अप्रैल, 2014 (बीबीसी) पाकिस्तान में एक ईसाई दंपत्ति को ईशनिंदा के
लिए मौत की सज़ा सुनाई गई है। उन पर एक टेक्स्ट मैसेज भेजकर पैग़ंबर मोहम्मद का अपमान
करने का आरोप है। शफ़कत एमानुएल और शगुफ़्ता क़ौसर को एक स्थानीय मस्जिद के इमाम को
ये टेक्स मैसेज भेजने का दोषी पाया गया है। पाकिस्तान में इस्लाम के ख़िलाफ़ ईशनिंदा
के आरोपों को बेहद गंभीरता से लिया जाता है। पाकिस्तान में ईशनिंदा के क़ानून को लागू
करने और इसके चलते कई लोगों को हुई सज़ाओं की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख़ासी चर्चा और आलोचना
होती रही है। मस्जिद के इमाम ने पिछले साल जुलाई में ईसाई दंपत्ति पर ईशनिंदा के आरोप
लगाए थे। ईसाई दंपत्ति के वकील ने बीबीसी को बताया कि वो सज़ा के ख़िलाफ़ अपील करेंगे.
उनका कहना है कि इस मुक़दमे की सुनवाई निष्पक्ष रूप से नहीं हुई है। ये लोग पंजाब
प्रांत के गोजरा के रहने वाले हैं जहां पहले सांप्रदायिक हिंसा हो चुकी है. 2009 में
वहां क़ुरान के अपमान की अफ़वाह के बाद दंग़ाइयों ने 40 घर जला दिए थे. इस हिंसा में
ईसाई समुदाय के आठ लोग मारे गए थे। पाकिस्तान में 1990 के दशक से दर्जनों ईसाइयों
को क़ुरान या पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने के लिए ईशनिंदा का दोषी ठहराया गया है। इन
लोगों को निचली अदालतों ने मौत की सज़ा सुनाईं हालांकि बाद में ऊपरी अदालत में ज़्यादातर
लोग सबूत न होने के कारण छूट गए. आलोचकों का कहना है कि पाकिस्तान में ईशनिंदा क़ानून
का इस्तेमाल निजी स्वार्थों और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के निशाना बनाने के लिए किया
जाता है। 2012 में रिमशा मसीह नाम की एक लड़की को ईशनिंदा का दोषी ठहराए जाने पर पाकिस्तान
को अंतरराष्ट्रीय आलोचना झेलनी पड़ी थी। कई हफ़्तों तक जेल में हिरासत में रखे जाने
के बाद आखिरकार उन्हें रिहा कर दिया गया और अब रिमशा अपने परिवार के साथ कनाडा में रहती
हैं।