वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 3 अप्रैल 2014 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन
स्थित संत मार्था प्रेरितिक प्रसाद के प्रार्थनालय में बृहस्पतिवार 3 अप्रैल को अर्पित
यूखरिस्तीय बलिदान में प्रार्थना पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, प्रार्थना ईश्वर के
साथ एक संघर्ष है जिसे स्वतंत्रता एवं धैर्यपूर्वक मित्रवत ढंग से करना चाहिए। प्रार्थना
हमारे हृदय में परिवर्तन लाता है क्योंकि यह ईश्वर के बारे हमारे ज्ञान को बढ़ा देता
है। प्रवचन में संत पापा ने सिनाई पर्वत पर ईश्वर की मूसा से बात-चीत की घटना पर चिंतन
किया। उन्होंने कहा कि ईश्वर लोगों को दण्ड देना चाहते थे क्योंकि उन्होंने अपने ईश्वर
को छोड़ सोने का बछड़ा बना कर उसकी पूजा की थी। इसपर मूसा ईश्वर से प्रार्थना करते हैं
जो हमें पुनः विचार करने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने कहा, "यह प्रार्थना, वास्तव
में ईश्वर के साथ उसकी प्रजा को बचाने के लिए एक संघर्ष है जो ईश प्रजा है। मूसा स्पष्ट
रूप से ईश्वर से अर्जी करते हैं कि हमें बिना भय, स्वतंत्र होकर धीरज के साथ प्रार्थना
करना सिखलाईये।"
संत पापा ने कहा कि मूसा की प्रार्थना ईश्वर के साथ जिद एवं
तर्क-वितर्क करने की तरह है। धर्मग्रंथ कहता है कि मूसा की प्रार्थना सुनी गयी। यहाँ
मूसा का मन-परिवर्तन हुआ क्योंकि उसने ईश्वर में पूर्ण विश्वास कर उनसे दृढ़ता पूर्वक
प्रार्थना की थी। उसे भय था कि ईश्वर अपनी प्रजा का विनाश करेंगे किन्तु जब वह पर्वत
से नीचे उतरा तो उसका हृदय ईश्वर की करूणा एवं क्षमाशीलता के भाव से भरा था। संत
पापा ने कहा कि प्रार्थना हृदय परिवर्तन करता है। यह ईश्वर के प्रति हमारे ज्ञान को बढ़ाता
है। उन्होंने कहा कि प्रार्थना एक कृपा है। सभी प्रार्थनाओं में पवित्र आत्मा उपस्थित
रहते हैं जब हम प्रार्थना में उनके साथ मिलते हैं तो वह हमारे हृदय में परिवर्तन लाते
हैं। जो हमें ईश्वर को पिता कह कर पुकारना सिखाता है। संत पापा ने अंत में कहा कि हम
पवित्र आत्मा से कृपा की याचना करें जो हमें प्रार्थना करना सिखलायेगा।