वाटिकन सिटी, सोमवार 17 मार्च 2014 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर
के प्राँगण में, रविवार 2 मार्च को, संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत
प्रार्थना के पूर्व उन्हें सम्बोधित कर कहा, "अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात,
आज का सुसमाचार हमारे लिए रूपांतरण की घटना तथा चालीसे काल की यात्रा के द्वितीय चरण
को प्रस्तुत करता है। प्रथम रविवार को हमने निर्जन प्रदेश में येसु के प्रलोभन पर चिंतन
किया था तथा द्वितीय सप्ताह में हम येसु के रूपांतरण पर मनन कर रहे हैं। येसु प्रेरित
पेत्रुस, याकूब और योहन को एक ऊँचे पर्वत पर ले गये (मती.17.1)।" संत पापा ने कहा, ईसाई
धर्मग्रंथ "बाईबिल पर्वत को ईश्वर की उपस्थिति एवं ईश्वर के साथ मुलाकात के स्थल रूप
में प्रस्तुत करता है। यह एक प्रार्थना का स्थान है जहाँ हम प्रभु की उपस्थिति का अनुभव
करते हैं। पर्वत के ऊपर येसु तीनों शिष्यों को अपने रूपांतरित, प्रकाशमान एवं अति सुन्दर
रूप को मूसा एवं एलीयस से बात-चीत करते हुए प्रकट करते हैं। इस वार्तालाप के दौरान उनका
चेहरा देदीप्यमान हो उठा तथा उनका वस्त्र हिम की तरह उज्जवल हो गया जिसके कारण प्रेरित
संत पेत्रुस ने घबराकर वहाँ तीन तम्बु खड़ा करने की बात कही किन्तु उसी समय पिता ईश्वर
की यह वाणी सुनाई पड़ी, "यह मेरा प्रिय पुत्र है, तुम इसकी सुनो।"(पद 5) संत पापा ने
कहा कि पिता ईश्वर की यह आवाज़ बहुत महत्वपूर्ण है। आज यह आवाज हमारे लिए कही जा रही
है, "तुम येसु की सुनो क्योंकि यह मेरा प्रिय पुत्र है।" हम इस सप्ताह ईश्वर की इसी आवाज
को अपने मन एवं दिल में धारण करें। चालीसे की यात्रा पर आगे बढ़ने हेतु ईश्वर हम सभी
से कह रहे है "येसु को सुनें एवं उन्हें न भूलें।" संत पापा ने कहा कि पिता ईश्वर
का यह बुलावा हमारे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। येसु के शिष्य होने के नाते हम सभी येसु
की आवाज सुनने एवं उसे गंभीरता से अपने जीवन में लेने के लिए बुलाये गये हैं। उनकी वाणी
को सुनने के लिए हमें उनके नज़दीक रहने की आवश्यकता है, उनका अनुसरण करने की ज़रूरत है
जिस प्रकार सुसमाचार में भीड़ ने उनका अनुसरण किया। येसु के लिए कोई कुर्सी या तैयार
उपदेश मंच नहीं था। वे एक चलते-फिरते शिक्षक थे जिन्होंने अपनी शिक्षा लोगों को प्रदान
की जिसे उन्होंने पिता से प्राप्त किया था। रास्ते पर लम्बी यात्रा तय करते हुए शिक्षा
को सुनना सहज था किन्तु येसु की वाणी को सुसमाचार में लिखे शब्दों में सुनते हुए मैं
आपसे एक प्रश्न करना चाहता हूँ, "क्या आप प्रतिदिन सुसमाचार का पाठ करते हैं? कुछ लोगों
ने उत्तर में ‘हाँ’ कहा और कुछ लोगों ने ‘नहीं’। संत पापा ने कहा कि बाईबिल का पाठ करना
महत्वपूर्ण है। आप इसे पढ़े यह अच्छा है। आपके पास सुसमाचार की एक छोटी पुस्तिका होनी
चाहिए जिसे आप अपने साथ ले सकें तथा दिन के किसी भी पहर उसके छोटे अंश को पढ़ सकें। सुसमाचार
में येसु हम से बोलते हैं आप इस पर चिंतन करें, यह कठिन नहीं है, आप को यह भी आवश्यक
नहीं है कि सुसमाचार के चारों लेखों को ले कर चलें, एक ही प्रति पर्याप्त है। सुसमाचार
हमेशा अपने साथ रखें क्योंकि यह येसु की वाणी है जिसे हमें सुनना चाहिए। संत पापा
ने रूपांतरण के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा, "येसु के रूपांतरण की घटना, दो अर्थपूर्ण
बातों को हमारे सम्मुख रखती है: आरोहण एवं अवरोहण। हमें आगे बढ़ना है, पर्वत पर चढ़ना
है जहाँ एकान्त है वहीं हम ईश्वर की वाणी को अधिक अच्छी तरह सुन सकते हैं। इस क्रिया
को हम प्रार्थना में करते हैं किन्तु हम वहीं रूक नहीं सकते हैं। प्रार्थना में ईश्वर
के साथ मुलाकात हमें पर्वत के नीचे ले आती है समतल धरातल पर जहाँ हम बीमार, अन्याय, तिरस्कार
तथा भौतिक एवं आध्यात्मिक ग़रीबी के कारण थके-हारे अनेक भाई-बहनों से मिलते हैं। ईश्वर
की उपस्थिति के एहसास को कठिनाईयों में पड़े हमारे सभी भाई-बहनें की सेवा द्वारा फलप्रद
बना सकते हैं तथा प्राप्त कृपा के ख़जाने को उनके साथ साझा कर सकते हैं। यह अत्यन्त
निराला है। जब हम येसु की वाणी सुनते हैं उसे अपने हृदय मे प्रवेश करने देते हैं तो यह
विकसित होता है। क्या आप जानते हैं कि किस प्रकार यह बढ़ता है? अन्यों को बांटने के द्वारा।
जब हम ख्रीस्त के वचन की घोषणा करते हैं।" संत पापा ने कहा कि यही ख्रीस्तीय जीवन है,
यह कलीसिया की प्रेरिताई है जिन्होंने बपतिस्मा संस्कार ग्रहण किया है उन्हें येसु की
वाणी सुनना एवं उसे अन्यों को बांटना है। हम इसे न भूलें। हम इस सप्ताह येसु को सुनें
तथा सुसमाचार के शब्दों पर चिंतन करें। संत पापा ने विश्वासी समुदाय से सवाल किया, "क्या
आप इस पर अमल करने के लिए तैयार हैं? अगले सप्ताह इस सवाल का उत्तर दें कि क्या आपके
पास सुसमाचार की छोटी प्रति है तथा क्या उसे दिन के किसी समय पढ़ पाते हैं? यदि हम ईश्वर
के साथ नहीं हैं तथा हमारा दिल बेचैन है तो हम किस प्रकार दिलासा प्राप्त कर सकते हैं?
यह समस्त कलीसिया की प्रेरिताई है तथा प्रमुख रूप से धर्माध्यक्षों एवं पुरोहितों
का दायित्व है कि वे ईश प्रजा के बीच प्रवेश कर उनकी आवश्यकताओं को समझें, स्नेह और कोमलता
के साथ उनके पास आयें, विशेषकर, सबसे कमजोर छोटे एवं पिछले लोगों के पास। धर्माध्यक्ष
एवं पुरोहितगण इसे आनन्द एवं उदारता पूर्वक सम्पन्न करें तथा ख्रीस्तीय समुदाय के लिए
प्रार्थना करें। हम इस समय माता मरिया के चरणों में आयें तथा अपने को उनके संरक्षण
के सिपुर्द करें ताकि चालीसे में हम विश्वास एवं उदारता के साथ आगे बढ़ सकें, प्रार्थना
करना एवं येसु की वाणी सुनना अधिक सीख सकें जिससे कि उदारता और भाईचारे के साथ येसु की
घोषणा कर सकें। इतना कहने के उपरांत संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना
का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। देवदूत प्रार्थना का पाठ समाप्त
करने के पश्चात् संत पापा ने देश-विदेश के सभी तीर्थयात्रियों एवं पर्यटनों का अभिवादन
किया। उन्होंने वाद्य दल एवं गायक मंडली के साथ उनके संयोजकों को धन्यवाद दिया। संत
पापा ने डॉन ओरेस्ते बेंत्सी द्वारा स्थापित धन्य संत पापा जॉन 23 वें को समर्पित दल
द्वारा अगले शुक्रवार को तस्करी के शिकार महिलाओं के लिए रोम शहर में संचालित विशेष क्रूसरास्ता
प्रार्थना की जानकारी दी तथा उनके इस आयोजन की सराहना की। उन्होंने मलेशयाई जहाज में
लापता लोगों एवं उनके परिवारों के लिए सभी विश्वासियों से प्रार्थना करने की अपील की
तथा इस विकट परिस्थिति में आध्यात्मिक रूप से उनके करीब होने का आश्वसन दिया। अंत
में उन्होंने सभी को शुभ रविवार की मंगलकामनाएँ अर्पित कीं।