वाटिकन सिटी, 08 मार्च सन् 2014 (विभिन्न सूत्र): प्रति वर्ष आठ मार्च को अन्तरराष्ट्रीय
महिला दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष यह दिवस संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा रखे गये सहस्राब्दि
लक्ष्यों की पूर्व सन्ध्या पड़ा। सन् 2000 में विश्व के नेताओं ने मानवोत्थान के लिये
आठ लक्ष्य रखे थे जिन्हें 2015 तक पूरा करने का संकल्प भी व्यक्त किया था। इन्हीं लक्ष्यों
में महिलाओं के विरुद्ध भेदभावों को घटाना, महिलाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा देना तथा
लिंग समानता को प्राप्त करना शामिल था। आठ मार्च को मनाये जानेवाले अन्तरराष्ट्रीय महिला
दिवस के उपलक्ष्य में इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ ने लिंग समानता पर ही बल दिया है।
इसका शीर्षक रखा गया है "लैंगिक समानता सभी के लिए प्रगति का मार्ग"।
संयुक्त
राष्ट्र संघीय महिला एजेन्सी यू.एन. विमेन की कार्यकारी निर्देशक फूमज़िले एनकूबा ने
इस विषय में कहा कि हालांकि "लोग में महिलाओं की भूमिका के प्रति सचेत हैं तथापि महिलाओं
को इसका श्रेय नहीं दिया जाता तथा समाज के अधिकांश कार्य महिलाओं द्वारा सहज ही सम्पन्न
होते रहते हैं।"
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में "आर्गेनाइज़ेशन
फ़ॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एण्ड डेवेलपमेंट" यानि आर्थिक सहयोग एवं विकास सम्बन्धी संगठन
ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें पुरुषों एवं स्त्रियों के बीच व्याप्त लैंगिक असमानता
रौंगटे खड़े कर देनेवाली है, विशेष रूप से, लिंग समानता के कई क्षेत्रों में भारत की
रैंकिंग लगातार नीचे रही है। मसलन, घरेलू कामों में हाथ बँटाने के मामले में अन्य देशों
की तुलना में भारतीय मर्द सबसे पीछे हैं। पुरुष प्रति दिन औसतन कितने मिनट घरेलू कामों
के लिए समय देते हैं इस आधार पर देशों की रैंकिंग में भारत का नाम सबसे नीचे हैं। इस
सूची में स्लोवेनिया शीर्ष पर है जहां पुरुष प्रति दिन 114 मिनट घरेलू कामों को देते
हैं जबकि 19 मिनट के साथ भारत सबसे निचले पायदान पर है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि
यदि भारत में महिलाओं के काम को महत्व दिया जाये तथा उन्हें पुरुषों की तरह ही समस्त
आर्थिक योजनाओं में भागीदारी प्रदान की जाये तो विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हो सकती है।