2014-02-22 11:52:48

वाटिकन सिटीः सामान्य लोक परिषद की अध्यक्षता कर सन्त पापा ने की 19 नये कार्डिनलों की रचना


वाटिकन सिटी, 22 फरवरी सन् 2014 (सेदोक): वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में शनिवार, 22 फरवरी को, एक विशिष्ट धर्मविधि द्वारा, सन्त पापा फ्राँसिस ने "ऑरडिनेरी पब्लिक कनसिस्टरी" अर्थात् सामान्य लोक परिषद की अध्यक्षता कर 19 नये कार्डिनलों की रचना की तथा उन्हें काथलिक कलीसिया के राजकुमार के सम्मान से प्रतिष्ठापित किया।

19 नये कार्डिनल विश्व के विभिन्न धर्मप्रान्तों से हैं जिनमें चार इटली के, एक जर्मनी के, एक इंगलैण्ड तथा वेल्स के, छः लातीनी अमरीकी देशों के, दो अफ्रीका के तथा दो एशिया के कार्डिनल शामिल हैं। 19 नये कार्डिनलों में 16 कार्डिनल, अस्सी वर्ष की आयु से कमउम्र के होने के नाते, भावी सन्त पापा के चुनाव में मतदान के योग्य हैं।

शनिवार को, सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में, नये कार्डिनलों के अनुष्ठान समारोह की धर्मविधि के उपरान्त, सन्त पापा फ्राँसिस ने ख्रीस्तयाग के अवसर पर प्रवचन कर कहा कि येसु के संग-संग चलना तथा जीवन की तीर्थयात्रा में नित्य विकास करना ही ख्रीस्त के अनुयायी का प्रमुख दायित्व है।

सन्त पापा फ्राँसिस ने कहाः "इस क्षण भी येसु हमारे आगे-आगे चल रहे हैं। वे हमारे आगे चलते तथा हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं, यह हमारा विश्वास तथा हमारे आनन्द का कारण हैः येसु के शिष्य बनना, उनके पीछे हो लेना तथा उनका अनुसरण करना।"

अपनी परमाध्यक्षीय प्रेरिताई के आरम्भिक क्षण की याद कर सन्त पापा ने कहा कि उस क्षण उन्हें "निरन्तर आगे बढ़ते रहने" की प्रेरणा मिली थी और आज भी यह तीर्थयात्रा जारी है। येसु के संग- संग निरन्तर आगे बढ़ते आवश्यक है।"
उन्होंने कहा, "हमें दर्शनशास्त्र पढ़ाने अथवा हम पर कोई विचारधारा थोपने के लिये प्रभु येसु इस धरा पर नहीं आये अपितु जीवन की तीर्थयात्रा में हमारा मार्ग प्रशस्त करने आये। यह ऐसा रास्ता है जिसपर हमें येसु के साथ-साथ आगे बढ़ते रहना है। हालांकि, यह सरल रास्ता नहीं है, यह विश्रामदायक भी नहीं है क्योंकि जिस रास्ते को प्रभु येसु ने चुना है वह क्रूस का रास्ता है।"

सन्त पापा ने कहा कि जब येसु ने जैरूसालेम के रास्ते में अपने शिष्यों को क्रूस के बारे में बताया था तब वे डर गये थे क्योंकि वे मसीह की मृत्यु नहीं उनकी विजय की प्रतीक्षा कर रहे थे। तथापि, सन्त पापा ने कहा, "शिष्यों के विपरीत हम जानते हैं कि क्रूस येसु की पराजय नहीं बल्कि उनकी विजय का चिन्ह है। येसु ने अपने पुनरुत्थान द्वारा क्रूस पर विजय पाई है। अस्तु, क्रूस हमारे भय का कारण नहीं अपितु हमारी आशा का कारण है।"

सन्त पापा ने कहा, "सबकुछ के बावजूद हम मनुष्य हैं, पापी हैं तथा मानवीय प्रलोभनों से घिरे हैं, हमारी मानसिकता सांसारिक तौर तरीकों पर आधारित है जिसके परिणाणस्वरूप प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या और विभाजन हमारे भीतर प्रवेश पाते हैं।"

उन्होंने कहा, "ईश वचन का पाठ हमें शुद्ध करता, हमारे अन्तःकरणों को आलोकित करता तथा हमें येसु के अनुकूल बनाता है और ऐसा हम आज प्रतिष्ठापित नये कार्डिनलों के साथ मिलकर करें जो कलीसिया के सुसमाचारी मिशन से संलग्न होने, उसमें सक्रिय सहयोग देने तथा शांति निर्माण के कार्यों में सहभागी होने के लिये बुलाये गये हैं।"

"कलीसिया को ख्रीस्त के रेवड़ की रखवाली के लिये कार्डिनलों की आवश्यकता है" यह कहकर सन्त पापा फ्राँसिस ने कहाः "ख्रीस्त सुसमाचार की उदघोषणा के लिये कलीसिया को उनके साहस की आवश्यकता है। सर्वप्रथम, इस समय, जब विश्व के अनेक देशों में इतना अधिक दुख एवं उत्पीड़न व्याप्त है, कलीसिया को उनकी दया की ज़रूरत है।"

प्रवचन के समापन पर सन्त पापा ने इस तरह प्रार्थना कीः "भेदभाव एवं उत्पीड़न से पीड़ित विश्व के कलीसियाई समुदायों एवं समस्त ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों के प्रति हम अपने प्रार्थनामय सामीप्य की अभिव्यक्ति करते हैं। सभी प्रताड़ितों के लिये कलीसिया को आपकी प्रार्थनाओं की आवश्यकता है ताकि वे अपने विश्वास में सुदृढ़ रहकर प्रत्येक बुराई का उत्तर भलाई से दे सकें। हिंसा एवं युद्ध के कारण पीड़ित इस युग के सभी लोगों के बीच शांति और पुनर्मिलन की स्थापना के लिये हम मिलकर प्रार्थना करें।"








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