सन्त वालेन्टाईन रोम के एक साधु पुरोहित थे जिन्होंने
सन्त मेरियस एवं उनके परिवार के साथ मिलकर सम्राट क्लाऊदियुस द्वितीय के दमन काल में
ख्रीस्तीयों की सेवा की थी। सम्राट के अत्याचारों से उत्पीड़ित ख्रीस्तीयों को बचाने
के लिये वे उन्हें छिपाने का भी काम करते रहे थे तथा उत्पीड़न के बावजूद प्रभु ख्रीस्त
में विश्वास का परित्याग न करने हेतु उन्हें प्रोत्साहित करते रहे थे।
वालेन्टाईन
के जीवन चरित के विषय में यद्यपि बहुत सी बातें स्पष्ट नहीं है तथापि, यह कहा जाता रहा
है कि वे रोम के पुरोहित तथा तेरनी के धर्माध्यक्ष थे। युवाओं की सेवा के लिये वालेन्टाईन,
विशेष रूप से, विख्यात हो गये थे। उन्हें मार्गदर्शन देते समय वे सदैव प्रेम की शिक्षा
दिया करते थे। सम्राट क्लाऊदियुस द्वितीय का दावा था कि विवाहित पुरुष अच्छे सैनिक नहीं
बन सकते थे इसलिये सम्राट की सेना में विवाहितों को नौकरी नहीं दी जाती थी। इसके अतिरिक्त,
सम्राट ने राजाज्ञा निकाल कर युवा व्यक्तियों के विवाहों को अवैध घोषित कर दिया था। वालेन्टाईन
का विश्वास था कि विवाह, मनुष्य के लिये ईश्वऱ की योजना एवं विश्व के लक्ष्य का अभिन्न
अंग था जिससे किसी को भी वंचित नहीं किया जा सकता। अस्तु, उन्होंने युवाओं की मदद का
बीड़ा उठाया। प्रेम को ईश्वर का वरदान निरूपित कर उन्होंने गुप्त रूप से कई युवाओं का
विवाह कराया।
सम्राट क्लाऊदियुस द्वितीय को जब वालेटाईन की गतिविधियों का पता
चला तब उन्होंने उन्हें बुला भेजा तथा उनसे ख्रीस्तीय विश्वास के बहिष्कार की मांग की
किन्तु वालेटाईन अपने विश्वास पर अटल रहे इसीलिये उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। कारावास
में उन्हें कोड़े लगाये गये, लाठियों से पीटा गया और बाद में उनके सिर को धड़ से अलग
कर उन्हें मार डाला गया। 14 फरवरी को सन् 269 ई. में वालेन्टाईन ने शहादत प्राप्त की
थी इसीलिये उनका पर्व 14 फरवरी के दिन मनाया जाता है। सन्त वालेन्टाईन प्रेमियों, युवा
दम्पत्तियों एवं विवाहित व्यक्तियों के संरक्षक सन्त हैं।
चिन्तनः " धर्मियों
का मार्ग प्रभात के प्रकाश जैसा है, जो दोपहर तक क्रमशः बढ़ता जाता है; किन्तु विधर्मियों
का मार्ग अन्धकारमय है। उन्हें पता नहीं कि वे किस चीज से ठोकर खायेंगे (सूक्ति ग्रन्थ
4, 18-19)।