10 फरवरी को काथलिक कलीसिया सन्त स्कोलास्तिका
का पर्व मनाती है। स्कोलास्तिका का जन्म इटली में सन् 480 ई. में हुआ था। वे नुरसिया
के बेनेडिक्ट की जुड़वा बहन थी। नुरसिया के सन्त बेनेडिक्ट की बहन स्कोलास्तिका ने युवाकाल
में पैर रखते ही समर्पित जीवन का चयन कर लिया था। जब उनके भाई सन्त बेनेडिक्ट ने मोन्ते
कास्सिनो जाकर वहाँ एक मठ की स्थापना की तब ही स्कोलास्तिका भी घर छोड़कर मोन्तेकास्सिनो
से लगभग पाँच मील की दूरी पर स्थित प्लोमबारियोला चली गई जहाँ उन्होंने धर्मबहनों के
लिये एक मठ की स्थापना की तथा उसका संचालन करती रही। सन्त बेनेडिक्ट इन धर्मबहनों के
आध्यात्मिक मार्गदर्शक बने।
साल में एक बार स्कोलास्तिका अपने भाई से मिलने चली
जाती थी किन्तु धर्मसमाजियों के मठ में उन्हें प्रवेश न मिलने के कारण दोनों भाई बहन
बेनेडिक्टीन मठ से कुछ दूर एक घर में मिला करते थे। इन मुलाकातों के दौरान स्कोलास्तिका
अपने भाई बेनेडिक्ट से धर्मबहनों के मठ के संचालन हेतु मार्गदर्शन लिया करती थी।
एक
अवसर पर बेनेडिक्ट एवं उनके साथियों ने बहन स्कोलास्तिका के साथ अपना पूरा समय केवल प्रार्थना
और मनन चिन्तन में व्यतीत कर दिया, शाम हुई और बेनेडिक्ट एवं उनके साथी जाने लगे तब स्कोलास्तिका
ने भाई से विनती की कि अगले दिन तक वे वहीं रुक जायें किन्तु अपने मठ से बाहर रात बिताना
बेनेडिक्ट को उचित नहीं लगा। स्कोलास्तिका ने प्रार्थना शुरु कर दी और देखते ही देखते
भीषण तूफान और बारिश आ गई। बेनेडिक्ट अपने साथियों सहित वहीं रुकने पर मजबूर हो गये।
उन्होंने सारी रात आध्यत्मिक मनन चिन्तन एवं प्रार्थनाओं में बिताई। दूसरे दिन पौ फटते
ही बेनेडिक्ट एवं उनके साथियों ने मोन्तेकास्सिनो का रुख किया। उस दिन उन्हें क्या पता
था कि बहन स्कोलास्तिका के साथ इस धरती पर वह उनकी अन्तिम मुलाकात थी। इस घटना के तीन
दिनों बाद ही स्कोलास्तिका का निधन हो गया, उनकी मृत्यु के क्षण बेनेडिक्ट ने, एक दर्शन
में, उनकी आत्मा को स्वर्ग की ओर उठते देखा। बेनेडिक्ट नुरसिया ने अपने मठवासियों को
भेज कर स्कोलास्तिका पार्थिव शव मंगवाया तथा उन्हें अपने मठ की उस कब्र में दफना दिया
जिसे उन्होंने अपने लिये बनवाई थी। सन् 543 ई. में स्कोलास्तिका का निधन हो गया था तथा
इसके कुछ समय बाद नुरसिया के सन्त बेनेडिक्ट भी इस धरती से विदा लेकर अपने स्वर्गिक धाम
चले गये थे। सन्त स्कोलास्तिका का पर्व 10 फरवरी को मनाया जाता है।
चिन्तनः
"हे प्रभु मुझे अपनी शान्ति का साधन बना ले। जहाँ घृणा हो, वहाँ मैं प्रीति भर दूँ, जहाँ
आघात हो, वहाँ क्षमा भर दूँ और जहाँ शंका हो, वहाँ विश्वास भर दूँ। मुझे ऐसा वर दे
कि जहाँ निराशा हो, मैं आशा जगा दूँ, जहाँ अंधकार हो, ज्योति जगा दूँ, और जहाँ खिन्नता
हो, हर्ष भर दूँ। हे स्वामी, मुझको ये वर दे कि मैं सांत्वना पाने की आशा न करूँ,
सांत्वना देता रहूँ। समझा जाने की आशा न करूँ, समझता ही रहूँ। प्यार पाने की आशा न रखूँ
प्यार देता ही रहूँ। त्याग के द्वारा ही प्राप्ति होती है। क्षमा के द्वारा ही क्षमा
मिलती है। मृत्यु के द्वारा ही अनन्त जीवन मिलता है। आमेन।" (असीसी के सन्त फ्राँसिस
की प्रार्थना)।