2014-02-07 18:21:46

वर्ष ‘अ’ प्रभु का बपतिस्मा, 12 जनवरी, 2014


नबी इसायस 42,1-4.6-7
प्रेरित चरित 10, 34-38
संत मत्ती, 3, 13-17
जस्टिन तिर्की, ये.स.

मै तुमसे प्रसन्न हूँ
मित्रो, आज आप लोगों को एक कहानी बताता हूँ जो मेरे जीवन में घटी थी। मैं एक देहात स्कूल का साधारण छात्र था। अपने क्लास मे कभी प्रथम नहीं आया था । फिर भी मैं किसी भी क्लास में फेल नहीं होता था। जब भी मैं पास हो जाता तो मेरे पिताजी कहा करते थे शाबाश बेटे। जब मैं सातवीं कक्षा में था तब मैंने मेरे पिताजी से कहा कि मैं संत इग्नासियुस गुमला स्कूल में पढ़ना चाहता हूँ। मेरे पिताजी ने कहा कि इसके लिये मुझे एक टेस्ट लिखना होगा। मैंने कहा कि मैं तैयारी करुँगा। मैंने तैयारी की और परीक्षा में सफल हो गया। तब मेरे पिताजी ने मुझसे कहा की शाबाश बेटे। मैं खुश था। जब मैं संत इग्नासियुस स्कूल गुमला में पढ़ने लगा तो मुझे लगा कि वहाँ की पढ़ाई-लिखाई बहुत कठिन है पर मैंने मेहनत करना नहीं छोड़ा। मेरे पिताजी कहा करते थे बेटा परिश्रम का कोई शोर्ट कट नहीं है । परिश्रम के अलावा और कोई रास्ता मैं तुम्हें नहीं बता सकता हूँ। मेरे बाद मेरे दो और भाई भी इसी सम्मानित विद्यालय में पढ़ने आ गये थे। मैट्रिक की परीक्षा का समय आ गया। मैंने परीक्षा लिखी। मैं घर पर था। रिजल्ट निकला। उन दिनों फोन और मोबाईल नहीं हुआ करते थे। मेरे छोटे भाई ने मेरे पिताजी को एक खत लिखा। उसमें लिखा था पिताजी बड़े भैया ने प्रथम दर्ज में पास किया है और सरल विज्ञान और भूगोल दोनों विषयों में पूरे स्कूल में टॉप किया है।मेरे पिताजी ने मेरा पीठ थपथपाते हुए कहा थे।मेरा प्यारा बेटा मैं तुमसे बहुत खुश हूँ। और तब उन्होंने मुझे पचास रुपये दिये। माँ खुश थी मेरे भाई प्रसन्न थे और हमारे पड़ोसी भी तारीफों के पुल बाँधने लगे थे और कह रहे थे सही में प्रकाश ने अपने घर का नाम रोशन किया है। हम उससे बहुत खुश हैं। तब मुझे विश्वास हो गया था कि सचमुच मैंने भला काम किया है। तब मुझे विश्वास हो गया था कि मुझे पिताजी प्यार करते हैं तब मुझमें विश्वास जग गया कि मैं आगे भी भला और अच्छा कार्य कर सकता हूँ। मेरे मन में बार-बार मेरे पिताजी के वे शब्द गूँजने लगे थे बेटा मैं तुमसे बहुत खुश हूँ।

मित्रो, हम रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अंतर्गत पूजन विधि पंचांग के ख्रीस्त जयन्ती के तीसरे रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर मनन चिन्तन कर रहे हैं। आज पूरी काथलिक कलीसिया येसु के बपतिस्मा का महोत्सव मनाती है। आज के दिव्य वचन हमें आमंत्रित करते हुए कह रहे हैं कि हम पिता कि वह वाणी को सुने जिसमें वे हमें कह रहे हैं कि तुम मेरा प्रिय पुत्र हो वे कह रहे हैं कि तुम मेरी प्यारी पुत्री है मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ। मित्रो, हमारे जीवन के लिये यह अति आवश्यक है कि हम यह अनुभव करें कि ईश्वर पिता के हम बेटे बटियाँ हैं और वे हमें सदा प्यार करते हैं। आइये हम आज के सुसमाचा पाठ को सुनें जिसे संत मत्ती के सुसमाचार के तीसरे अध्याय के 13 से 17 पदों से लिया गया है।
संत मत्ती, 3, 13-17
13) उस समय, ईसा योहन से बपतिस्मा लेने के लिए गलीलिया में यर्दन के तट पहुँचे।
14) योहन ने यह कहते हुए उन्हें रोकना चाहा, ''मुझे तो आप से बपतिस्मा लेने की ज’रूरत है और आप मेरे पास आते हैं?
15) परन्तु ईसा ने उसे उत्तर दिया, ''अभी ऐसा ही होने दीजिए। यह हमारे लिए उचित हैं कि हम इस तरह धर्म विधि पूरी करें।'' इस पर योहन ने ईसा कि बात मान ली।
16) बपतिस्मा के बाद ईसा तुरन्त जल से बाहर निकले। उसी समय स्वर्ग खुल गया और उन्होंने ईश्वर के आत्मा को कपोत के रूप में उतरते और अपने ऊपर ठहरते देखा।
17) और स्वर्ग से यह वाणी सुनाई दी, ''यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ।''
बपतिस्मा का अर्थ
मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आपने आपने आज के सुसमाचार को गौर से पढ़ा है और इसके द्वारा आपको और आपके परिवार को आध्यात्मिक लाभ हुए हैं। आज के सुसमाचार में येसु के बपतिस्मा के बारे में चर्चा की गयी है। मित्रो, मैं सोचता हूँ आप इस शब्द से परिचित हैं। वैसे जब भी हम बपतिस्मा की बात करते हैं तो हम उन नन्हें शिशुओं की याद करते हैं जो बिल्कुल नादान हैं। यह सच भी है कि जब हमें बपतिस्मा दिया गया उस समय हम बिल्कुल नादान थे। हम यह याद भी नहीं करते हैं कि यह कहाँ दिया गया कौन लोग उस समारोह में आये थे। मित्रो, जो भी हो आज आइये हम इस बात पर गौर करें कि बपतिस्मा क्या है और इससे होता क्या है। इससे येसु को क्या हुआ। मित्रो, वैसे बपतिस्मा का शाब्दिक अर्थ तो पानी में डुबाया जाना। और सही में बपतिस्मा में जो मुख्य धर्मविधि होती है उसमें या तो बच्चे के माथे पर पानी उँडेला जाता है या उसे पानी में डुबोया जाता है। जो भी हो श्रोताओ काथलिक कलीसिया ने इसे संस्कार कहा है। आज हम इस बात को जानने का प्रयास करें कि आखिर संस्कार क्या होता है। इसका क्या अर्थ हैं और इससे हर ख्रीस्तीय को क्या वरदान मिलते हैं।
संस्कार की परिभाषा
वैसे तो संस्कार के बारे में कई लोग विभिन्न प्रकार की बातें करते हैं और इसे समझाने का प्रयास करते हैं। कई लोग सोचते हैं कि यह एक सामाजिक रीति-विधि मात्र है। मित्रो, अगर सच पूछें तो संस्कार के संबंध में जिस बात ने मुझे प्रभावित किया है वह है इसकी परिभाषा। आम लोगों को समझाने के लिये कहा जाता है कि संस्कार भीतरी कृपा का बाहरी चिह्न है। मित्रो, इसका अर्थ यह है कि जो हमारे दिल में आंतरिक परिवर्तन हो रहा है या हम जिसकी आशा करते हैं उसे हम बाहरी संकेतों या चिह्न से दिखाते हैं।
मित्रो, आज के सुसमाचार को ध्यान से सुनने से हम तीन बातों को देखते हैं। पहली बात कि येसु बपतिस्मा ग्रहण करने आते हैं और योहन न उन्हें पानी में डुबाया गया जो यह दिखाने के लिये कि येसु भी आम लोगों के समान बन गये। दूसरी बात कि हम ईश्वर की वाणी सुनते हैं जिसमें ईश्वर कहते हैं कि तू मेरा प्रिय पुत्र है इससे मैं अति प्रसन्न हूँ। यह इसलिये हुआ चूँकि इससे येसु को आध्यात्मिक शक्ति मिली ताकि वह ईश्वर का कार्य कर सके। इससे ईश्वर ने येसु को अपने प्रिय पुत्र के रूप में स्वीकार किया और इसे येसु को प्रकट किया। इतना ही नहीं इसके बाद येसु के जीवन में एक तीसरी बात यह भी दिखाई पड़ती है कि इसके तुरन्त बाद येसु पूर्ण समर्पण के साथ अपना सार्वजनिक जीवन शुरु करते हैं।
मित्रो, ये तीनों बातें हमारे लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है । हमें यह जानना जरुरी है कि हम अपने धर्म में दिये जा रहे संस्कारों को समझें और उसे ग्रहण करें और उससे मिलने वाली कृपाओं के सहभागी बनें। आज मैं आप लोगों को पूछना चाहता हूँ कि क्या आपने कभी विचार किया है कि बपतिस्मा संस्कार के द्वारा हमें क्या-क्या कृपायें मिलीं हैं। क्या कभी आपने विचार किया है कि ये हमारे लिये क्यों महत्वपू्र्ण हैं क्या आपने सोचा है कि काथलिक कलीसिया ने क्यों इस संस्कार को इतना महत्व दिया है। क्या आपने सोचा है कि इस बपतिस्मा संस्कार के द्वारा हम किस प्रकार एक नये प्राणी बन जाते हैं।
ईश्वर की संतान बनना
मित्रो, बपतिस्मा संस्कार के द्वारा हम सबसे पहले तो ईश्वर की संतान बन जाते हैं। इसके साथ हम ईश्वर की ओर से पवित्र आत्मा का वरदान मिल जाता है और यही पवित्र आत्मा हमें एक नये प्राणी बना देता है। आप मुझे कहेंगे कि हम तो जन्म के द्वारा एक मनुष्य तो बन ही जाते हैं फिर नये मनुष्य या संतान बनने का क्या अर्थ हैं। मित्रो, यह सवाल करना कि ईश्वर की संतान बनने का क्या अर्थ हैं। ईश्वर की संतान बनना अर्थात ईश्वरीय अच्छाइयों में सहभागी होना। ईश्वर के अनुरूप बनना ईश्वरीय गुणों को अपनाना। मित्रो, चूँकि हम ईश्वर की संतान बन जाते हैं हमारे जीवन से ईश्वरीयता झलकनी चाहिये। हमें उन बातों को कहना चाहिये जिससे ईश्वर की महिमा होती है। अपने जीवन में उन बातों को महत्व देना जिससे हम ईश्वर के पास पहुँच सकते हैं।
ईश्वरीय कृपा का सहभागी होना
मित्रो, प्रभु ने यर्दन में अपने बपतिस्मा के द्वारा हमारे लिये एक दरवाज़ा खोल दिया जिसे काथलिक कलीसिया ने स्वीकार किया और उन सब लोगों को इस कृपा का सहभागी वनाया ताकि जो भी उसमें विश्वास करे वह अनन्त जीवन प्राप्त कर सके। मित्रो, अगर हम संस्कारों पर गौर करें तो हम पायेंगे कि ये काथलिक कलीसिया के द्वारा उपलब्ध किये गये साधन हैं जिसके द्वारा हम ईश्वर की इच्छा के अऩुसार जी सकते हैं ईश्वरीय कृपा के सहभागी हो सकते हैं और पूरी दुनिया में सुसमाचार का प्रचार कर सकते हैं ।
आवाज़ सुनें
मित्रो, आज प्रभु हमें आमंत्रित कर रहे हैं कि हम बपतिस्मा ग्रहण करें उसके द्वारा ईश्वर के पुत्र पुत्री वनें और पूरे समर्पण के साथ लोगों के लिये कार्य करें और उन मूल्यों के लिये अपना जीवन जीयें जिसके लिये प्रभु ने अपने को समर्पित किया और अपना बलिदान कर दिया। आज जब पूरी दुनिया मे लोग आतंकवादियों से भयभीत हैं, जब लोग हिंसा के सहारे समस्याओं का समाधान करना चाहते हैं धर्म और संप्रदाय के नाम दुनिया को बाँटना चाहते हैं तो ऐसे में प्रभु चाहते हैं कि संस्कारों के अर्थों को समझें विशेष कर बपतिस्मा के अर्थ को और हर दूसरे व्यक्ति को ईश्वर का बेटा-बेटी समझें उनका सम्मान करें उनके कल्याण के लिये कार्य करें तो मुझे पूरा विश्वास की हम भी येसु के समान यह वाणी सुन सकें। तू मेरा प्रिय पुत्र है तुमसे मैं अति प्रसन्न हूँ तु मेरी प्यारी पु्त्री है मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ।










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