मठाधीश सन्त अन्तोनी को अन्तोनी महान, मिस्र के
अन्तोनी, उजाड़ प्रदेश के अन्तोनी आदि अनेक नामों से जाना जाता है किन्तु अन्तोनी द एबेट
अर्थात् मठाधीश सन्त अन्तोनी के नाम से वे सम्पूर्ण विश्व में जाने जाते हैं।
मठाधीश
सन्त अन्तोनी का जन्म, सन् 251 ई. के लगभग, उत्तरी मिस्र के मेम्फिस नगर के पास- पड़ोस
के किसी गाँव में हुआ था। माता पिता की मृत्यु के बाद अन्तोनी तथा उनकी बहन ही परिवार
में रह गये थे। वे अपने माता पिता की अपार सम्पत्ति के भी उत्तराधिकारी बने। 21 वर्ष
की आयु में अन्तोनी को सुसमाचार में निहित धनी नौजवान से कहे गये प्रभु येसु मसीह के
शब्दों ने प्रभावित किया। उन्हें लगा कि प्रभु येसु मानों उन्हीं को सम्बोधित कर कह रहे
होः "जो कुछ तुम्हारे पास है उसे बेच डालो और ग़रीबों में बाँट दो तो तुम स्वर्ग राज्य
के हकदार होगे"। उन्होंने ऐसा ही किया, अपना सब कुछ बेच डाला और निर्धनों में बाँट दिया।
उनकी बहन भी एक धर्मी महिला थी जिन्होंने उनका साथ दिया। बहन एक धार्मिक महिला मठ में
भर्ती हो गई तथा त्याग तपस्या से परिपूरित जीवन यापन करने लगी और अन्तोनी एकान्त में
निकल गये।
शारीरिक परिश्रम, प्रार्थना और धर्मग्रन्थों का पाठ उनकी दिनचर्या
बन गया। उजाड़ प्रदेश में घूम घूम कर वे अन्य सिद्ध तपस्वियों एवं एकान्तवासियों से मिला
करते तथा उनके प्रवचन सुना करते थे। इस प्रकार शनैः शनैः अन्तोनी विनम्रता, परोपकारिता,
प्रार्थना, मनन- चिन्तन तथा सदगुणों में पारंगत हो गये।
लगभग सन् 285 ई. में
अन्तोनी नील नदी की पूर्वी शाखा पार कर पहाड़ों में चले गये तथा वहीं एक गुफा में रहने
लगे। उस समय वे 35 वर्ष के थे। बीस वर्षों तक अन्तोनी ने इसी गुफा में तपस्या की और उसके
बाद 305 ई. में पहाड़ों से नीचे आये तथा फेयम नामक स्थान पर उन्होंने अपना पहला मठ स्थापित
किया। मठवासी अलग-अलग कोठरियों में एकान्तवास करते थे। इस मठ की स्थापना के बाद अन्तोनी
ने कई नये मठों की स्थापना की, लम्बी यात्राएँ की तथा लोगों को प्रभु ख्रीस्त के सुसमाचार
के सौन्दर्य से परिचित कराया। सन्त अथानासियुस ने अपने लेखों में अन्तोनी के इन परिभ्रमणों
की विस्तार से चर्चा की है। वे लिखते हैं: "सन्त अन्तोनी को अपने मठों का परिभ्रमण करके
वापस लौटते समय घड़ियालों से भरी नहर पार करना पड़ता था। अनेक प्रलोभने से झूजते हुए
जब वे वापस अपने मुकाम पर लौटते थे तो उनका मुखमण्डल आंतरिक आभा से चमकता था। भूखे-प्यासे
रहने के बावजूद उनके व्यक्तित्व से कमज़ोरी की कोई निशानी प्रकट नहीं होती थी।"
311
ई. में सम्राट माक्सीमीनुस ने जब ख्रीस्तीयों पर अत्याचार आरम्भ किया तब सन्त अन्तोनी
ही अपने प्रवचनों द्वारा ख्रीस्तीयों को ढारस बँधाते रहे थे। दमन चक्र के इस काल में
वे कईयों के मनपरिवर्तन का कारण बने। सन् 355 ई. में उन्होंने आरियनवादी अपधर्मियों को
फटकार बताई थी तथा भ्रामक विचारधाराओं से ख्रीस्तीय विश्वासियों को सुरक्षित रखा था।
हालांकि, सन्त अन्तोनी से पहले बहुत से ख्रीस्तीय तपस्वियों ने मठवासी जीवन की प्रस्तावना
की थी तथापि सन्त अन्तोनी को ही ख्रीस्तीय मठों का प्रथम संस्थापक तथा पितामह माना जाता
है। 17 जनवरी, सन् 356 ई. को उनका निधन हो गया था। मिस्र के मठाधीश सन्त अन्तोनी का पर्व
17 जनवरी को मनाया जाता है।
चिन्तनः सन्त अन्तोनी ने तबेन्ना के
सन्त थियोदोर के नाम एक पत्र में लिखा थाः "ईश्वर ने मुझको आश्वासन दिया है कि येसु मसीह
के सभी सच्चे भक्त, चाहे वे पतित ही क्यों नहीं हों, यदि पश्चाताप तथा पापस्वीकार करें
तो अवश्य ईश्वर के कृपा पात्र बनेंगे।"