जिनिवाः बच्चों के विरुद्ध यौन दुराचार का कोई औचित्य नहीं, महाधर्माध्यक्ष थॉमासी
जिनिवा, 17 जनवरी सन् 2014 (यू.एन. समाचार): संयुक्त राष्ट्र संघ में वाटिकन के पर्यवेक्षक
तथा परमधर्मपीठ के प्रेरितिक राजदूत महाधर्माध्यक्ष सिलवानो थॉमासी ने कहा है कि कलीसिया
के पुरोहितों द्वारा बच्चों के विरुद्ध यौन दुराचार को कोई औचित्य नहीं है। महाधर्माध्यक्ष
थॉमासी ने हाल ही में "बाल अधिकार सम्बन्धी संयुक्त राष्ट्र संघीय समिति" के समक्ष यौन
दुराचारी पुरोहितों के मामले में काथलिक कलीसिया की कार्रवाई को उचित ठहराया। उन्होंने
कहा है कि काथलिक कलीसिया इन मामलों पर किसी प्रकार का पर्दा नहीं डालना चाहती है तथा
अपराधी पुरोहितों को दण्डित करने के पक्ष में है। उन्होंने कहा कि यौन शोषण एक अपराध
और किसी भी हालत में इसका औचित्य नहीं ठहराया जा सकता। इस बात पर भी उन्होंने बल दिया
कि जिन देशों में यह अपराध किये जाते हैं उन्हीं देशों में अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई
की जानी चाहिये। महाधर्माध्यक्ष थॉमासी ने संयुक्त राष्ट्र संघीय समिति को बताया
कि सन्त पापा फ्राँसिस ने नाबालिग़ों की सुरक्षा के लिये एक विशिष्ट आयोग का गठन किया
है जो बच्चों के विरुद्ध काथलिक कलीसिया में होनेवाले यौन दुराचारों को रोकने तथा यौन
शोषण के शिकार बच्चों की सहायता करेगा। महाधर्माध्यक्ष थॉमासी ने कहाः ".........................
सन्त पापा फ्राँसिस ने नैदरलैण्ड्स के धर्माध्यक्षों के समक्ष अपनी गहन चिन्ता व्यक्त
कर अपने पूर्वाधिकारियों की तरह ही इस समस्या पर गम्भीरता से विचार करने पर बल दिया है
तथा उन्हें कुछेक सुदृढ़ सुझाव दिये हैं।" सन्त पापा के शब्दों को उद्धृत कर उन्होंने
कहाः "विशेष रूप से, "मैं यौन दुराचार के शिकार सभी बच्चों एवं उनके परिवारों के प्रति
गहन सहानुभूति व्यक्त करता तथा प्रार्थना में उनके समीप रहने का आश्वासन देता हूँ। मैं
आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप, साहसपूर्वक शुरु किये गये चंगाई के इस दुखमय पथ पर, उन्हें
समर्थन दें।" महाधर्माध्यक्ष थॉमासी ने यह भी बताया कि सन्त पापा फ्राँसिस ने
यौन दुराचार की समस्या से निपटने के लिये नई कार्रवाई शुरु की है ताकि बच्चों को सुरक्षित
वातावरण मिल सके तथा दुराचार के शिकार लोगों के पक्ष में किये जा रहे देखरेख कार्यक्रमों
में सुधार किये जायें। सन्त पापा फ्राँसिस ने धर्माध्यक्षों एवं पुरोहितों को
प्रोत्साहन दिया है कि वे यौन शोषण के शिकार बने लोगों को सुनें, उनकी पीड़ा को स्वीकार
करें तथा चंगाई, पुनर्मिलन एवं पुनर्वास हेतु उन्हें हर प्रकार की आध्यात्मिक एवं मनोवैज्ञानिक
सहायता प्रदान करें।