2014-01-13 14:29:01

कूटनीति और वार्ता से ही समस्याओं का समाधान हो


वाटिकन सिटी, 13 जनवरी, 2014 (सेदोक,वीआर) संत पापा ने वाटिकन परमधर्मपीठ के लिये अधिकृत राजनयिक कोर के सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि कलीसिया की यह एक लम्बी परंपरा रही है, "मैंने अपने शांति सदेंश में हाल में कहा कि भ्रातृत्व ही शांति का आधार और मार्ग है और भ्रातृत्व को हम अपने परिवार में ही सीख सकते हैं।"
उन्होंने कहा, " मैंने यह भी कहा था कि प्रत्येक परिवार का यह दायित्व है कि वह भ्रातृप्रेम का प्रचार पूरे विश्व में करे और पूरी दुनिया में सेवा और सहभागिता की भावना का प्रचार करते हुए शांति स्थापना में अपना योगदान दे। खेद है कि ऐसा नहीं हो पाता है। आज ज़रूरत है कारगर नीतियों की जो परिवारों का समर्थन करे, मदद दे और मजबूत करे।"

मालूम हो कि संत पापा प्रत्येक वर्ष राजनयिक कोर के सदस्यों से मुलाक़ात करते और मानवता की दुःख-सुख पर अपने चिन्तन प्रस्तुत करते हैं।

संत पापा ने कहा कि बुजूर्ग और युवा मानवता की आशा हैं। बुजूर्ग समाज की प्रज्ञा हैं तो युवा हमारे भविष्य, जो समाज को स्वयं में खो जाने से बचाते हैं।

हाल के दिनों में जो बरबादी और हिंसा का नज़ारा देखने को मिला है वह इस बात को दर्शाता है कि स्वार्थ की भावना धीरे से बढ़ते हुए मानव को ईर्ष्या, प्रतियोगिता तथा धन-दौलत और सत्ता की भूखी बना देती है।

उन्होंने कहा कि मेरा विश्वास है कि आनेवाले दिनों में सीरिया में हिंसा का अन्त होगा और 22 जनवरी से जेनेवा होने वाली सभा में शांति प्रक्रिया का एक नया दौर आरंभ हो पायेगा।

संत पापा ने कहा कि कूटनीति और वार्ता से ही हर समस्या का समाधान किया जाना चाहिये। नाईजीरिया को ज़रूरत है अन्तरराष्ट्रीय समुदायों के मदद की ताकि इस क्षेत्र में लोग कानून का दायरे में रहकर कार्य करें और मानवतावादी मदद लोगों तक शीघ्र से पहुँच सके।

संत पापा ने कहा कि एशिया में विभिन्न समुदायों एवं सम्प्रदायों के बीच शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का इतिहास रहा है। इस तरह के आपसी सम्मान की भावना को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।

संत पापा ने कहा कि शांति मानव मर्यादा के प्रत्येक उल्लंघन से बाधित होती है। हम भूखे लोगों के प्रति उदासीन नहीं रहे सकते विशेष करके भूखे बच्चों के प्रति, मानव तस्करी, सूखा, हिंसा, अत्याचार जैसी स्थिति के प्रति।

उन्होंने कहा कहा कि हमें प्रवासियों तथा शरणार्थियों की समस्याओं के प्रति भी आँखे बन्द नहीं कर सकते है। यदि हम प्राकृतिक स्रोतों के प्रति भी लालच के भाव से देखें तो यह भी शांति के लिये खतरा है। प्रकृति हमारे लिये सदा उपलब्ध है पर हमे चाहिये कि हम उसका सम्मान करें और उसे ईश्वरीय वरदान समझें।

संत पापा ने पोप पौल षष्टम् की बातों को याद कराते हुए कहा, "शांति का अर्थ शक्ति के कमजोर संतुलन द्वारा युद्वविराम मात्र नहीं है पर ईश्वर की इच्छा के अनुसार एक स्थापित एक व्यवस्था है जिसमें स्त्री और पुरुष के प्रति न्याय हो।"

संत पापा ने राजनयिक कोर के सदस्यों को आश्वासन देते हुए कहा कि कलीसिया पुरोहितों, मिशनरियों और विश्वासियों द्वारा विभिन्न शिक्षण, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण संस्थाओं में इसी भावना का प्रचार करती है ताकि इससे निर्धन, बीमार, अनाथ और ज़रूरतमंदों का कल्याण हो सके।








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