2014-01-06 08:58:53

प्रेरक मोतीः प्रभु प्रकाश महापर्व


वाटिकन सिटी, 06 जनवरी सन् 2014

25 दिसम्बर को प्रभु ख्रीस्त की जयन्ती मना लेने के 12 दिन बाद ख्रीस्तीय धर्मानुयायी 06 जनवरी को ऐपिफनी, प्रभु प्रकाश का महापर्व अथवा तीन राजाओं का महापर्व मनाते हैं। वस्तुतः, ऐपिफनी का अर्थ है किसी चीज़ को दर्शनीय बनाना, किसी को प्रकाशित करना या किसी के विषय में लोगों को ज्ञान कराना। यह महापर्व सुदूर पूर्व से, तारे के इशारे पर बेथलेहेम पहुँचे तीन विद्धानों द्वारा शिशु येसु के दर्शन के स्मरणार्थ मनाया जाता है। प्रभु प्रकाश महापर्व की धर्मविधि के लिये माता कलीसिया नबी इसायस के ग्रन्थ एवं सन्त मत्ती रचित सुसमाचार के पाठों की प्रस्तावना करती है।

"नबी इसायस हमारे समक्ष ईश्वर की उस ज्योति का भव्य दृश्य प्रस्तुत करते हैं जिससे मार्गदर्शन पाकर धरती के कोने कोने से देशों के राजा भी शिशु येसु के आगे नतमस्तक होते तथा बहुमूल्य उपहारों की भेंट चढ़ाते हैं। इसके मुकाबले में सन्त मत्ती रचित सुसमाचार में प्रस्तुत दृश्य कुछ दीन प्रतीत होता है। सच तो यह है कि जो लोग बालक येसु के दर्शन के लिये आये थे वे पृथ्वी के सत्ताधारी लोग नहीं थे बल्कि ईश्वर पर श्रद्धा रखनेवाले विद्धान थे जिन्हें लोगों ने हेरोद की क्रूरता के बीच भुला दिया था।

सम्भवतः शिशु येसु के दर्शन को पहुँचे ये तीन विद्धान खगोल शास्त्री थे। उन्होंने, फिलीस्तीन की पूर्वी दिशा में, एक नये तारे को उदित होता देखा था। इसकी व्याख्या उन्होंने, पवित्र धर्मग्रन्थों के अनुसार, एक राजा और यथातथ्य यहूदियों के राजा के जन्म लेने की घोषणा रूप में की थी। सन्त मत्ती द्वारा लिखे वृत्तान्त में कलीसिया के आचार्यों ने ईशपुत्र के धरती पर प्रवेश को एक प्रकार की ब्रहमाण्डीय क्रान्ति रूप में देखा था।

नबी इसायस ने वह दृश्य हमारे समक्ष रखा जो मानवजाति के सम्पूर्ण इतिहास को ही बदलनेवाला था। तथापि, सन्त मत्ती द्वारा रचित सुसमाचार का वृत्तान्त भी कम महत्वपूर्ण नहीं है अपितु वह प्रभु के साक्षात्कार करनेवालों का, एक प्रकार से, उदघाटन है। सुदूर पूर्व से आनेवाले विद्धान उन लोगों की तीर्थयात्रा के प्रथम तीर्थयात्री बने जो इतिहास के अन्तराल में प्रभु येसु मसीह एवं उनके सन्देश की खोज करते रहे हैं। उन लोगों की तीर्थयात्रा जो सुसमाचार के अनुकूल जीवन यापन करते हुए विश्व में प्रेम, न्याय एवं शान्ति की स्थापना हेतु अनवरत प्रयास करते रहे हैं।" (यह चिन्तन, 06 जनवरी सन् 2010 को, प्रभु प्रकाश महापर्व के उपलक्ष्य में अर्पित ख्रीस्तयाग के अवसर पर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें द्वारा किये गये प्रवचन से लिया गया है)।

चिन्तनः "उन्होंने जिस तारे को उदित होते देखा था, वह उनके आगे आगे चलता रहा, और जहाँ बालक था उस जगह के ऊपर पहुँचने पर ठहर गया। वे तारा देख कर बहुंत आनन्दित हुए। घर में प्रवेश कर उन्होंने बालक को उसकी माता मरियम के साथ देखा और उसे साष्टांग प्रणाम किया। फिर अपना-अपना सन्दूक खोलकर उन्होंने उसे सोना, लोबान और गंधरस की भेट चढ़ायी" (सन्त मत्ती अध्याय 2, 9-11)।








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