2014-01-02 12:22:43

प्रेरक मोतीः सन्त बेज़िल महान ( निधन 379 ई.)


वाटिकन सिटी, 1 जनवरी सन् 2014:

सन्त बेज़िल महान का जन्म, लगभग सन 330 ई. में, कप्पादोसिया कैसरिया में हुआ था। वे वरिष्ठ सन्त बेज़िल तथा सन्त इमिलिया की दस सन्तानों में से एक थे। उनके कई भाई बहनों की सन्त रूप में भक्ति की जाती है। बेज़िल ने कैसरिया तथा कुस्तुनतुनिया में शिक्षा प्राप्त की थी। आथेन्स में भी वे पढ़ाई के लिये गये जहाँ सन् 352 ई. में उनकी मुलाकात सन्त ग्रेगोरी नाज़ियेनसन से हुई। इसके कुछ समय बाद उन्होंने कैसरिया में वकालात शुरु कर दी थी। इसी समय उन्हें बुलाहट प्राप्त हुई तथा उन्होंने मठवासी बनने का प्रण कर लिया। इसके लिये उन्होंने पोनतुस में एक मठ की स्थापना की तथा पाँच वर्ष तक उसी मठ में रहे।

पोनतुस के मठ में रहते बेज़िल ने मठवासी नियम लिखे जो आज भी पूर्वी कलीसियाओं में प्रभावी हैं। इसके बाद बेज़िल ने अनेक मठों की स्थापना की। 370 ई. में वे अभिषिक्त हुए तथा कैसरिया के धर्माध्यक्ष नियुक्त किये गये तथा मृत्यु पर्यन्त वहीं रहे। अपने जीवन के अन्त तक बेज़िल अपनी रचनाओं द्वारा सक्रिय रहे, जगह-जगह प्रवचन करते रहे तथा उदारता के कार्यों में लगे रहे इसीलिये उन्हें बेज़िल महान कहा जाता है।

बेज़िल ने आरियनवादी अपधर्मियों से पूर्व में ख्रीस्तीय धर्म की रक्षा की इसीलिये सन् 379 ई. में उनकी मृत्यु के बाद जब कुस्तुनतुनिया की धर्मसभा हुई तब उसमें सर्वसम्मति से आरियनवादी अपधर्मियों की निन्दा की गई तथा प्रभु येसु ख्रीस्त एवं उनके द्वारा स्थापित कलीसिया की पुनर्प्रतिष्ठापना सम्भव हो सकी। पूर्वी रीति की कलीसयाओं के आचार्य सन्त बेज़िल महान का पर्व 2 जनवरी को मनाया जाता है।


चिन्तनः प्रभु के नये वर्ष के साथ ही अब समय है "एक नये गीत", एक नये विषय, एक नये पथ, एक नये वसन्त तथा प्रभु की बुलाहट का एक नया प्रत्युत्तर देने का, क्या आप तैयार हैं? नववर्ष 2014 की हार्दिक शुभकामनाएँ।








All the contents on this site are copyrighted ©.