सन्त सिलवेस्टर का जन्म रोम में हुआ था। सन्त
पापा मारसेल्लीनुस द्वारा वे पुरोहित अभिषिक्त किये गये थे। सिलवेस्टर के पुरोहिताभिषेक
से पूर्व काथलिक कलीसिया ने कई दशकों तक सम्राट दियोक्लेशियन के अत्याचार सहे थे इसीलिये
बाल्यकाल से ही सिलवेस्टर आतंक एवं दमनचक्र के काल के साक्षी रहे थे। बाद में उन्होंने
सम्राट दियोक्लेशियन तथा माक्सीमियान के राजत्याग तथा सन् 312 ई. में सम्राट कॉन्सटेनटाईन
की विजय को अपनी आँखों से देखा था। सन् 314 ई. में, सन्त पापा मिलितियादेस के निधन के
उपरान्त सिलवेस्टर को रोम का धर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था।
31 जनवरी,
सन् 314 ई. से लेकर 31 दिसम्बर सन् 335 ई. तक, सिलवेस्टर काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष
यानि सन्त पापा रहे थे। उन्होंने काथलिक कलीसिया के इतिहास के महत्वपूर्ण युग में कलीसिया
की बागडोर सम्भाली। 314 ई. में, सन्त पापा सिलवेस्टर ने आयरस में सम्पन्न पश्चिमी कलीसिया
की महासभा में अपने चार प्रतिनिधियों को प्रेषित किया था तथा बाद में महासभा के आदेशों
को अनुसमर्थन प्रदान कर उन्हें कलीसिया में लागू किया। सन् 325 ई. में, नीस की महासभा
भी सन्त पापा सिलवेस्टर के परमाध्यक्षीय काल में सम्पन्न हुई थी। इसमें वृद्धावस्था के
कारण वे ख़ुद तो उपस्थित नहीं हो सके किन्तु अपने विशेष दूत भेज दिये थे। ये थे वीतुस
और विन्चेन्सियुस जिन्होंने महासभा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सन्त पापा सिलवेस्टर
ने नीस की महासभा के सभी निर्णयों को अनुमोदन दे दिया था।
हालांकि सन्त
पापा सिलवेस्टर के बारे में कम ही जानकारी हासिल है सातवीं तथा आठवीं शताब्दी में प्रकाशित
लीबेर पोन्टीफिकालीस में उन उपहारों एवं अनुदानों का ज़िक्र मिलता है जो सम्राट कॉनस्टेनटाईन
ने सन्त पापा सिलवेस्टर को भेंट स्वरूप अर्पित किये थे। सन्त पापा सिलवेस्टर प्रथम 24
वर्ष एवं 11 महीनों तक काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष थे। सन्त पापा, सन्त सिलवेस्टर का
पर्व 31 दिसम्बर को मनाया जाता है।
चिन्तनः प्रभु के नये वर्ष के
साथ ही अब समय है "एक नये गीत", एक नये विषय, एक नये पथ, एक नये वसन्त तथा प्रभु की बुलाहट
का एक नया प्रत्युत्तर देने का, क्या आप तैयार हैं? नववर्ष 2013 की हार्दिक शुभकामनाएँ।