प्रेरित सन्त जॉन या योहन, ज़ेबेदी एवं सलोमी
के पुत्र तथा सन्त याकूब महान के भाई थे। प्रभु येसु ख्रीस्त ने अपनी सार्वजनिक प्रेरिताई
के द्वितीय वर्ष में सन्त योहन को सुसमाचार के प्रचार के लिये चुना था। बाद में जाकर
योहन येसु के प्रिय शिष्य बन गये तथा 12 शिष्यों में वे ही एकमात्र शिष्य थे जो दुखभोग
और क्रूसमरण के समय उनके साथ थे। क्रूस तले वे आज्ञाकारी शिष्य बनकर खड़े रहे जब प्रभु
येसु ख्रीस्त ने उन्हें उनकी माता की रखवाली का दायित्व सौंपा था। प्रभु येसु के क्रूसमरण
के उपरान्त योहन का जीवन पहले जैरूसालेम में फिर एफेसुस में बीता। इस दौरान येसु की माता
मरियम भी उनके साथ थी।
प्रेरित सन्त योहन ने एशिया माईनर में कई गिरजाघरों एवं
कलीसियाई समुदायों की स्थापना की। उन्होंने चौथे सुसमाचार तथा विभिन्न कलीसियाई समुदायों
को सम्बोधित तीन पत्रों की रचना की। यह भी माना जाता है कि प्रकाशना ग्रन्थ के रचयिता
भी येसु के प्रिय शिष्य प्रेरितवर सन्त योहन ही थे यद्यपि, इसपर बाईबिल आचार्यों एवं
कलीसिया के इतिहासकारों में मतभेद हैं।
सुसमाचार लेखक योहन के प्रचार कार्यों
से रुष्ट रोमी अधिकारी उन्हें रोम ले आये थे जहाँ सम्राट दोमेतियान के आदेश पर उन्हें
उबलते हुए तेल में डाल दिया गया था किन्तु चमत्कारी ढंग से योहन उबलते हुए तेल के डेग
से बाहर निकल आये। इसके बाद सम्राट ने उन्हें एक वर्ष के लिये पाथमोस द्वीप में निष्कासित
कर दिया था। प्रेरित सन्त योहन बहुत लम्बी उम्र तक जिये। यहाँ तक कि उनके सामने सभी साथी
प्रेरित एवं धर्मप्रचारकों का निधन हो चुका था। लगभग 100 ई. में, एफेसुस में, प्रेरितवर
सन्त योहन का निधन हो गया था। प्रभु येसु ख्रीस्त के प्रिय शिष्य, सुसमाचार लेखक, प्रेरितवर
सन्त योहन का पर्व 27 दिसम्बर को मनाया जाता है। वे एशिया माईनर के संरक्षक सन्त हैं।
चिन्तनः "हमने जो सन्देश उन से सुना और तुम को भी सुनाते हैं, वह यह है-
ईश्वर ज्योति है और उस में कोई अन्धकार नहीं! यदि हम कहते हैं कि हम उसके जीवन के सहभागी
हैं, किन्तु अन्धकार में चल रहे हैं, तो हम झूठ बोलते हैं और सत्य के अनुसार आचरण नहीं
करते। परन्तु यदि हम ज्योति में चलते हैं- जिस तरह वह स्वयं ज्योति में हैं- तो हम एक
दूसरे के जीवन के सहभागी हैं और उसके पुत्र ईसा का रक्त हमें हर पाप से शुद्ध करता है"
(सन्त योहन पहला पत्र 1:5-7)।