नई दिल्ली, 19 दिसम्बर सन् 2013 (ऊका समाचार): भारतीय संसद ने बुधवार को लोकपाल बिल पारित
कर दिया जिसमें भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये एक लोकायुक्त की नियुक्ति का प्रावधान
है। लोकपाल विधेयक के पारित होने के एक साल के भीतर सभी राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति
करना अनिवार्य होगा। राज्यसभा में संशोधन के बाद पुनः लोकसभा में आए लोकपाल और लोकायुक्त
विधेयक 2011 को संसद के निचले सदन ने बुधवार को पारित कर दिया। राज्यसभा में बिल मंगलवार
को पारित किया गया था। अब इसे कानून बनने के लिये सिर्फ़ राष्ट्रपति की सहमति की ज़रूरत
है। लोकपाल बिल को पारित करने की मांग करते हुए विगत आठ दिनों से अन्ना हज़ारे
अनशन पर थे। उन्होंने बिल के पारित होने पर सन्तोष व्यक्त किया तथा दोनों सदनों के प्रति
आभार व्यक्त किया। उन्होंने सचेत कराया कि भ्रष्टाचार पर रोक लगाने वाले लोकपाल बिल के
पारित हो जाने का यह अर्थ नहीं कि भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त हो जायेगा किन्तु कम से
कम 50 फ़ीसदी भ्रष्टाचार समाप्त होने की आशा है। कानून मंत्री कपिल सिबाल ने लोकसभा
में बिल पेश करते हुए इसपर विचार का आग्रह किया था तथा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी
ने सभी पार्टियों से बिल को पारित करने का निवेदन करते हुए कहा था, "ये हमारी ज़िम्मेदारी
है कि हम भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ें। हमें इतिहास रचने का मौका मिला है इससे हम पीछे
नहीं हटे।" लोकपाल बिल के कई विरोधी भी हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह
यादव ने बिल को ख़तरनाक बताकर प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह तथा काँग्रेस अध्यक्षा सोनिया
गाँधी से अपील की थी वे इसे समर्थन न दें। इस बीच, सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता बने
अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी मौजूदा सरकारी लोकपाल बिल को बेहद कमज़ोर बताती
रही है। उधर वरिष्ठ भाजपा नेता और लोकसभा में पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने लोकपाल
बिल पर कांग्रेस द्वारा श्रेय लिए जाने की कड़ी आलोचना की और कहा कि इसका श्रेय केवल
अन्ना हज़ारे एवं जनता को जाना चाहिये।