नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक रिश्तों को माना अपराध
नई दिल्ली, 11 दिसम्बर सन् 2013 (एपी): दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए, बुधवार
को भारत की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक रिश्तों को अपराध करार दिया है।
विगत चार साल से भारत में अपनी मर्जी से समलैंगिक संबंध बनाना अपराध नहीं था, किन्तु
सर्वोच्च अदालत द्वारा दिये गये फैसले के बाद अगर कोई समलैंगिक संबंध बनाता पकड़ा जाता
है तो उसे उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है। जुलाई 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने आईपीसी
की धारा 377 में समलैंगिक संबंधों को अपराध वर्ग से हटाकर बाहर कर दिया था जिसे सुप्रीम
कोर्ट ने बुधवार को पलट दिया। विभिन्न धार्मिक संगठनों ने समलैंगिक संबंध को देश के सांस्कृतिक
और धार्मिक मूल्यों के खिलाफ बताते हुए हाई कोर्ट के फैसले का विरोध किया था और इसके
खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दर्ज़ की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा
कि समलैंगिक संबंधों को उम्रकैद तक की सजा वाला अपराध बताने वाली आईपीसी की धारा 377
में कोई संवैधानिक खामी नहीं है। कोर्ट ने हालांकि यह कहते हुए विवादास्पद मुद्दे पर
किसी फैसले के लिए निर्णय भारतीय संसद पर छोड़ दिया है। कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा
377 हटाई जाए या नहीं यह देखने का काम विधायिका का है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के
साथ ही समलैंगिक संबंधों के खिलाफ दंड प्रावधान प्रभाव में आ गया है। अदालत की बेंच ने
कहा कि आईपीसी की धारा 377 को हटाने के लिए संसद अधिकृत है, लेकिन जब तक यह प्रावधान
मौजूद है, तब तक कोर्ट इस तरह के यौन संबंधों को वैध नहीं ठहरा सकता। 2009 में दिल्ली
हाईकोर्ट ने समलैंगिक सम्बन्धों को अपराध की श्रेणी से हटाकर कहा था कि यह मानवाधिकारों
का उल्लंघन है। तदोपरान्त, उपरान्त भारत के कई ख्रीस्तीय, हिन्दु एवं मुसलमान संगठन जैसे
ऑल इन्डिया मुसलिम लॉ बोर्ड, ऑल इन्डिया क्रिस्टियन चर्चस एसोसिएशन एवं कई हिन्दु आध्यात्मिक
गुरुओं ने, यह दलील देकर कि समलैंगिक रिश्ते अप्राकृतिक हैं तथा भारतीय संस्कृति एवं
परम्परा पर ख़तरा है, दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।