संत पापा फ्राँसिस ने वर्ष 2015 को ‘समर्पित जीवन’का वर्ष घोषित किया
वाटिकन सिटी, शनिवार, 30 नवम्बर 2013 (एशियान्यूज़): संत पापा फ्राँसिस ने वर्ष 2015
को ‘समर्पित जीवन’ का वर्ष घोषित किया। उन्होंने 29 नवम्बर को रोम में 82वें आम सभा
में भाग ले रहे 120 धर्मसमाजों के परमाधिकारियों से मुलाकात कर इसकी घोषणा की। संघ
द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि तीन घंटे की सभा में संत पापा फ्राँसिस ने सभा
को संबोधित किया एवं प्रश्नोतरी सत्र का संचालन भी किया। संत पापा ने कहा कि सभी
ख्रीस्तीयों को मौलिक रूप से ख्रीस्त का अनुसरण करने की आवश्यकता है किन्तु महिला एवं
पुरूष धर्मसमाजी विशेष रीति से ख्रीस्त का अनुसरण करने के लिए बुलाये गये हैं क्योंकि
वे अपने समर्पित जीवन द्वारा दुनिया को जागरूक कर सकते हैं। संत पापा ने कहा, "समर्पित
जीवन एक भविष्यवाणी है। ईश्वर हम से अपनी नीड़ छोड़ कर संसार की सीमांतों तक जाने का
आदेश देते हैं। अपने घर के मोह को त्यागने के लिए कहते हैं। समर्पित जीवन प्रभु के अनुसरण
का एक बहुत ठोस रास्ता है।" सभा ने प्रश्नोतरी सत्र में संत पापा से कई प्रश्न गये।
बुलाहट की स्थिति पर प्रश्न के जवाब में संत पापा ने कहा कि कई युवा कलीसियाएँ हैं जो
नये फल उत्पन्न कर रहे हैं। यह स्वाभाविक रूप से मथेव रिची के उदाहरण का अनुसरण करते
हुए विशिष्टता के संस्कृतिकरण पर पुनः अवलोकन का अवसर प्रदान करती है। धर्मसंघीय संस्था
के संचालन में भाग लेने के लिए, अंतर-संस्कृति वार्ता कई सांस्कृतिक पृष्टभूमि के लोगों
को जोड़ती एवं विशिष्टताओं को जीने के तरीक़ों से अवगत कराती है। उन्होंने कहा कि यह
आवश्यक है कि सभी प्रकार के दिखावे एवं जीवन के सभी पक्षों पर खुली वार्ता द्वारा ‘याजकवाद’
का परित्याग करें। प्रशिक्षण के लिए सक्षम व्यक्ति की आवश्यकता है न कि पुलिस की। इसका
उद्देश्य धर्मसमाजियों को गढ़ना है। हम सभी पापी हैं किन्तु बुरे नहीं हैं। पापी को स्वीकार
किया जा सकता है किन्तु बुरे लोगों को नहीं।" भ्रातृत्व के विषय में अपने विचार
देते हुए संत पापा ने कहा कि इसमें आकर्षित करने की बड़ी शक्ति है तथा यह विभिन्नताओं
को स्वीकार कर सकता है। कभी-कभी भाई-भाई की तरह जीना कठिन हो सकता है किन्तु इसके
बिना कोई फल प्राप्त नहीं किया जा सकता है। दो भाईयों के झगड़े में हमें कभी भी एक मैंनेजर
की तरह पेश नहीं आना चाहिए किन्तु प्रेम से समझाना चाहिए। धर्मसंघियों एवं कलीसिया
के बीच संबंध पर बोलते हुए संत पापा ने कहा, "हम धर्माध्यक्षों को समझना चाहिए कि समर्पित
व्यक्ति सहायक मात्र नहीं हैं किन्तु अपनी विशिष्टता द्वारा वह धर्मप्रांत को समृद्ध
बनाता है।" समर्पित व्यक्तियों द्वारा मिशन के रास्ते पर आने वाले चुनौतियों पर प्रकाश
डालते हुए संत पापा ने कहा कि मिशन विशिष्टता के आधार पर हो। संस्कृति, स्कूलों में शैक्षणिक
प्रेरिताई एवं व्यापकता से बढ़कर प्रतिरोध की स्थिति प्रमुख नहीं है। संत पापा के
अनुसार शिक्षा तीन कारणों से आवश्यक है; ज्ञान, प्रणाली एवं मूल्यों के हस्तांतरण के
लिए। इन माध्यमों द्वारा विश्वास को फैलाया जा सकता है। शिक्षक नयी पीढ़ी के लोगों को
येसु ख्रीस्त के सुसमाचार की घोषणा करने में सक्षम बना सकें। अंत में संत पापा ने सभा
में उपस्थित सभी को उनके अपने समर्पित जीवन से विश्वास की साक्षी देने एवं सेवा के लिए
उन्हें धन्यवाद दिया।