वाटिकन सिटी, वृहस्पतिवार 28 नवम्बर, 2013 (सेदोक, वीआर) संत पापा फाँसिस ने वृहस्पतिवार
28 नवम्बर को वाटिकन प्रेरितिक प्रासाद के क्लेमिन्टीन सभागार में अन्तरधार्मिक वार्ता
के लिये बनी परमधर्मपीठीय परिषद की पूर्णकालिक सभा को संबोधित किया।
वाटिकन सिटी
में 25 से 29 नवम्बर तक आयोजित अन्तरधार्मिक वार्ता के लिये बनी परिषद के सेमिनार की
विषयवस्तु थी - "सिविल सोसायटी में विभिन्न धार्मिक परंपराओं के सदस्य।"
संत
पापा ने सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा, "काथलिक कलीसिया इस बात के प्रति सचेत है कि
उसे विभिन्न धार्मिक परंपराओं के लोगों के साथ मैत्री और सम्मानपूर्ण संबंध बनाये रखना
है। आज के युग में इसका महत्व अत्यधिक बढ़ गया है क्योंकि दुनिया छोटी होती जा रही है
और प्रवासियों की संख्या बढ़ने से व्यक्तियों और समुदायों का दूसरी परंपराओं, संस्कृतियों,
तथा धर्मों से एक-दूसरे का सम्पर्क होना स्वभाविक है।"
संत पापा ने कहा, "मैंने
‘एवान्जेली गौदियुम’ अर्थात् (आनन्द का शुभसंदेश) में कहा है कि विभिन्न समस्याओं जैसे
दोनो पक्षों का अतिवादी मनोभावों के बावजूद वार्ता के लिये ज़रूरी है विभिन्न धार्मिक
परंपरा की सत्यता के प्रति खुला और प्रेमपूर्ण संबंध बनाये रखें।"
उन्होंने कहा,
"दुनिया की परिस्थितियाँ ऐसी हैं जब सहअस्तित्व का स्वपन कठिन दिखाई देता है। कई बार
धार्मिक और आर्थिक बातें, सांस्कृतिक और धार्मिक बातों से उलझ जाती हैं और इतिहास की
गलतियाँ सतह पर आ जाती हैं और इससे संदेह और भय उत्पन्न होता है। ऐसी परिस्थिति में सिर्फ़
मित्रता और आपसी सम्मान के द्वारा ही इस पर विजय प्राप्त किया जा सकता है।"
संत
पापा ने कहा, "वार्ता का अर्थ यह नहीं है कि हम अपना अस्तित्व गवाँ दे यहाँ तक कि ख्रीस्तीय
विश्वास और नैतिकता के साथ समझौता कर लें। इसके ठीक विपरीत सच्ची मित्रता का अर्थ है
अपने विश्वास में पूरी प्रसन्नता और स्पष्टता से दृढ़ बने रहना, और दूसरों के प्रति खुला
रहना और उन्हें मानव रिश्तों को इस तरह से सम्मान देते हुए मानों कि दूसरों से मुलाक़ात
एक ऐसा अवसर हो जहाँ भ्रातृभाव, आपसी समृद्धिकरण का साक्ष्य दिया जा सके।"
संत
पापा ने कहा, "यही कारण है कि अन्तरधार्मिक वार्ता और सुसमाचार प्रचार एक-दूसरे के विरोधी
नहीं हैं। सच बात तो है ये एक-दूसरे के पूरक हैं। हम दूसरे पर भारी नहीं पड़ते, कोई ऐसी
तकनीकि का प्रयोग नहीं करते जो विश्वासियों को खींचे पर हर आनन्द और सरलता से उस विश्वास
का साक्ष्य देते हैं जो हमारे लिये अति मूल्यवान है।"
संत पापा ने कहा, "विभिन्न
धार्मिक परंपराओं के बीच होनेवाला रचनात्मक वार्ता सबों को भयमुक्त करेगा जो दुर्भाग्यवश
ऐसा नहीं है। एक-दूसरे धार्मिक परंपराओं के प्रति व्यक्ति का डर बढ़ा है।"
संत
पापा ने कहा, "शांतिपूर्ण विश्व की कल्पना हम तब ही कर सकते हैं जब विश्व व्यक्ति को
उसका मूल अधिकार - धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने सब आयामों के साथ प्राप्त हो। विभिन्नताओं
के साथ ससम्मान सहअस्तित्व पर ही हमारा भविष्य टिका है, न कि एकमात्र तटस्थ सिद्धांतवादिता
की स्वीकृति पर।"