संत पापा फ्राँसिस का पहला प्रेरितिक प्रबोधन ‘आनन्द का शुभसंदेश’ प्रकाशित
वाटिकन सिटी, मंगलवार, 26 नवम्बर, 2013 (सेदोक, वीआर) संत पापा फ्राँसिस ने मंगलवार 26
नवम्बर को ‘प्रेरितिक प्रबोधन या प्रोत्साहन’ ‘एवान्जेली गौदियुम’ अर्थात् ‘आनन्द का
सुसमाचार’ जारी कर दिया है। अपने प्रेरितिक प्रोत्साहन की शुरुआत करते हुए संत पापा
ने लिखा है कि सुसमाचार की खुशी से उनका दिल भर जाता है जो येसु को पहचान लेते हैं। उन्होंने
इस प्रेरितिक प्रबोधन में इस बात पर बल दिया है कि आज के युग में सुसमाचार का प्रचार
किया जाना अत्यंत ज़रूरी है।
संत पापा ने लोगों को आमंत्रित करते हुए कहा है
कि बपतिस्मा प्राप्त सब लोग दुनिया के खतरों जैसे, व्यक्तिवाद, अकेलापन और चिन्ता की
चुनौती पर विजय प्राप्त कर येसु के प्रेम को लोगों तक पहुँचायें।
उन्होंने प्रोत्साहन
देते हुए कहा है कि हम सुसमाचार के मूल अर्थ की पुनर्खोज़ करें, नये क्षेत्रों का पता
लगायें और सृजनशीलता के नये रास्तों को खोजकर सुसमाचार का प्रचार करें।
उन्होंने
कहा है कि आज ज़रूरत है एक मेषपालीय और मिशनरी पश्चात्ताप तथा कलीसियाई संरचनाओं में
परिवर्त्तन करते हुए मिशन को पूर्ण महत्व देने की। संत पापा ने कहा कि उनकी इच्छा है
कि संत पापा के कार्यों में भी सुधार लाया जाये ताकि येसु ख्रीस्त के मिशन को वर्तमान
ज़रूरत के अनुसार प्रभावपूर्ण और अर्थपूर्ण बनाया जा सके जैसा कि येसु चाहते हैं।
संत
पापा की आशा है कि विभिन्न धर्माध्यक्षीय परिषद इस दिशा में ठोस योगदान दे पायेंगे। उन्होंने
कहा कि कलीसिया को ऐसी बातों के नवीनीकरण में किसी तरह का भय नहीं होना चाहिये जो सीधे
रूप से सुसमाचार से जुड़े नहीं हैं यद्यपि कलीसिया में उनकी जड़ें ऐतिहासिक और मजबूत
हैं।
संत पापा का मानना है कि ईश्वरीय उदारता के प्रतीक रूप में कलीसिया को
चाहिये कि वह अपना द्वार सबों के लिये खुला रखे और संस्कारों को किसी भी कारण से यूँ
ही बन्द न कर दिया जाये।
संत पापा ने अपने प्रेरितिक प्रबोधन में जिन अन्य बातों
की चर्चा की हैं उनमें कलीसिया की चुनौतियाँ, संस्कृतिकरण, आर्थिक व्यवस्था, अन्तरधार्मिक
और अन्तरकलीसियाई वार्ता आदि प्रमुख हैं। उन्होंने गरीबों, बीमारो, वृद्धों, अपंगों,
आदिवासियों, प्रवासियों, मानव तस्करी आदि के बारे में लोगों का ध्यान विशेष रूप से खीँचा
है।
संत पापा ने कहा है कि शांति के लिये आवाज़ बुलन्द किये जाने की आवश्यकता
है और सुसमाचार प्रचारकों को चाहिये कि वे आत्मा से पूर्ण, निर्भय होकर ख्रीस्त का प्रचार
करें।
संत पापा ने लोगों से अपील की है कि वे असफलताओं या अपर्याप्त फलों से निराश
कदापि न हों पर क्योंकि फल कई बार अदृश्य, भ्रांतिपूर्ण और अपरिमाणित होती है। उन्होंने
कहा कि हमें जानें कि किसी भी कार्य के लिये हमारा समर्पण ही सबसे महत्वपूर्ण है।