2013-11-23 14:53:36

मंदिरों में हमारा मनोभाव ईश्वर भक्ति


वाटिकन सिटी, शनिवार 23 नवम्बर 2103 (एशिया न्यूज़): वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मार्था प्रार्थनालय में, संत पापा फ्राँसिस ने पावन ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए उपदेश में, पूजा के लिए इमारत की ‘मंदिर’ एवं मानव प्राणी एक ‘आध्यात्मिक मंदिर’ जो पवित्र आत्मा का मंदिर है, पर चिंतन प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा, "ईश्वर की पूजा इमारत के मंदिरों में पूजा करने की भावना शायद हम ख्रीस्तीय भूल चुके होंगे। मानव प्राणी स्वयं एक आध्यात्मिक मंदिर है, पवित्र आत्मा का मंदिर है जहाँ हम ईश्वर की आवाज सुनने के लिए तथा पापों की क्षमा याचना कर उनका अनुसरण करने के लिए बुलाए जाते हैं।"
संत पापा उपदेश में पुराने व्यवस्थान में युद्ध द्वारा ध्वस्त किये गये मंदिर की पुनर्स्थापना पर चिंतन करते हुए कहा, "मंदिर समुदाय का प्रतीक था, ईश्वर की प्रजा का प्रतीक।" हम मंदिर कई कारणों से जाते हैं, प्रार्थना करने, ईश्वर की प्रशंसा करने, धन्यवाद देने और इससे भी बढ़कर ईश्वर की पूजा करने। हम मंदिर में ईश्वर की पूजा करते हैं जो यह बहुत महत्वपूर्ण बात है। यहाँ धर्मविधि समारोह भी सम्पन्न की जाती है। धर्मविधि समारोह में सबसे मुख्य बात क्या हैः गाना या धर्मविधि? वे सभी सुन्दर हैं किन्तु सबसे बढ़कर प्रमुख बात है पूजा। समस्त समुदाय उस वेदी पर जहाँ बलिदान अर्पित की जाती तथा पूजा किया जाता है दर्शन के लिए एकत्र होती है। संत पापा ने कहा "मैं विनम्रता पूर्वक कहता हूँ। हम ख्रीस्तीयों ने शायद पूजा की भावना को खो दिया है और हम सोचते हैं, हम मंदिर चलें, हम भाई-बहन के रूप में एक साथ आयें और खुशी मनाएँ यह भी अच्छा है। किन्तु मंदिर का मूल अर्थ है जहाँ ईश्वर का वास है एवं जहाँ हम उनकी पूजा-आराधना करते हैं।"
संत पापा ने उपस्थित विश्वासियों से प्रश्न करते हुए कहा, "क्या हमारे मंदिर पूजा के स्थल हैं क्या वहाँ आराधना की जाती हैं?
सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि येसु ने मंदिर में खरीद बिक्री करने वालों को खदेड़ दिया क्योंकि उन्होंने पूजा के स्थान को बाज़ार बना दिया था, किन्तु विश्वास के जीवन में एक अन्य मंदिर है जिसे हम पवित्र मानते हैं। संत पौलुस हमें बतलाते हैं कि हम पवित्र आत्मा के मंदिर हैं। मैं एक मंदिर हूँ, ईश्वर की आत्मा मुझ में निवास करती है। संत पौलुस हमें यह भी बतलाते हैं कि शोक मत मना क्योंकि ईश्वर की आत्मा तुझमें है। शायद हम इस पूजा को उपर वर्णित पूजा की तरह नहीं समझ सकते हैं किन्तु यह उस प्रकार की पूजा है जिसमें स्वयं हृदय ईश्वर की आत्मा की खोज करती तथा जानती है कि ईश्वर वहाँ निवास करते हैं। पवित्र आत्मा अभ्यंतर में है जो उन्हें सुनती एवं उनका अनुसरण करती है।
निश्चय ही, ईश्वर के अनुसरण करने का अर्थ है निरंतर शुद्धिकरण। "क्योंकि हम पापी है।" हम प्रार्थनाओं, पश्चाताप, मेल-मिलाप एवं युखरिस्त संस्कार द्वारा खुद का शुद्धिकरण करते हैं।
इस प्रकार भौतिक मंदिर जहाँ पूजा की जाती है एवं आध्यात्मिक मंदिर मेरे अंदर है एवं जहाँ पवित्र आत्मा निवास करती है इन दोनों मंदिरों में हमारा मनोभाव, ईश्वर भक्ति, प्रेम, सुनना, प्रार्थना करना, क्षमा मांगना तथा ईश्वर की प्रशंसा का होना चाहिए। जब हम मंदिर के आनन्द की बात करते हैः तो यह है समुदाय द्वारा पूजा, प्रार्थना, धन्यवाद, प्रशंसा आदि तथा जब मैं प्रार्थना कर रहा हूँ इसका अर्थ है अपने अभ्यंतर को ईश्वर की आवाज सुनने के लिए खुला रखना। ईश्वर हमें मंदिर के सच्चे अर्थ को समझने की कृपा प्रदान करे जिससे कि हम आराधना करते हुए तथा ईश्वर की वाणी को सुनते हुए पवित्रता में आगे बढ़ सकें।








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