2013-11-18 14:32:19

सुसमचार का प्रचार शांतिपूर्ण शालीनता के साथ हो


मेक्सिको सिटी, सोमवार 18 नवम्बर, 2013(सीएनए) संत पापा फ्राँसिस ने मेक्सिको ग्वादालूपे में एकत्र तीर्थयात्रियों को येसु के समान ही शांतिपूर्ण तरीके से सुसमाचार का प्रचार का आग्रह किया।
संत पापा ने वीडियो संदेश देते हुए कहा, "सुसमाचार प्रचार का कार्य के लिये अत्यधिक धैर्य की ज़रूरत होती है। अव्यवस्था की स्थिति में भी शांति बनाये रहना पड़ता है। हमें इस बात को जानना है कि ख्रीस्तीय संदेश और सुसमाचार की खुशबु को शालीनता और आहिस्ते से ही दुनिया में बिखेरना है।"
संत पापा ने कहा कि उनकी हार्दिक इच्छा है कि वे भी मेक्सिको में अवस्थित ग्वाडालुपे की माता मरिया के तीर्थस्थल में हाज़िर हों। विदित हो कि मेक्सिको में एक सेमिनार का आयोजन किया गया है जिसकी विषयवस्तु है, "ग्वाडालूपे की माता मरिया, अमेरिका की धरती पर नये सुसमाचार की सितारा।"
मालूम हो कि मेक्सिको में आयोजित सेमिनार धन्य संत पापा जोन पौल द्वितीय के प्रेरितिक प्रोत्साहन ‘एकलेसिया इन अमेरिका’ का फल है जिसे उन्होंने सन् 1999 दिया था। इस सेमिनार के प्रायोजक है - नाइट्स ऑफ़ कोलम्बरस और लैटिन अमेरिका का परमधर्मपीठीय आयोग।
उन्होंने कहा, "प्रेरितिक कार्य का लक्ष्य है लोगों तक पहुँचना, प्रत्येक व्यक्ति के परिस्थितियों को ध्यान में रखना, एक को भी नहीं छोड़ देना और येसु के आनन्द को बाँटना।"
संत पापा ने कहा, "ऐसा नहीं है कि हम लोगों के पास जायें और उनपर अपनी बातों को लाद दें मानों कि वे अपूर्ण और अपर्याप्त हैं। ऐसा नहीं कि हम उनके पास जायें और उन्हें डाँटें या जिनके जीवन के बारे में शिकायत करें।"
उन्होंने कहा, "आप इस बात को जानें कि सबसे पहले लोगों को क्या दिया जाना चाहिये? उन्हें ईश्वर के उस प्यार के बारे में बताना जिसे ईश्वर ने येसु के मरण और पुनरुत्थान द्वारा दिया।"
इसके साथ ही आपको चाहिये कि आप अपने तौर-तरीके में नयापन लायें और न कि ऐसा कहें कि ‘इसे ऐसा ही किया जाता रहा है’।
उन्होंने कहा कि जो कलीसिया अपने आप में बन्द रहती और आत्मसंतुष्ट हो जाती वह अपने आपको ‘कमजोर’ और ‘अपरिपक्व’ बनाये रखती है।
उन्होंने धर्माध्यक्षों को संबोधित करते हुए कहा, "आप अपने रेवड़ की रक्षा करें, बड़े ही आत्मीयता, कोमलता तथा धैर्यपूर्वक कलीसिया की ममता और ईश्वर की दयालुता के साथ उनका मार्गदर्शन करें।"
संत पापा ने धर्मसमाजियों से कहा कि वे अपने धर्मसमाज के विशेष गुणों के प्रति वफ़ादार रहें और माता कलीसिया की सेवा करते हुए पवित्र आत्मा द्वारा संस्थापकों को दिये उस विशेष वरदान को ने खो दें और उसे आनवाली पीढ़ी को भी प्रदान करें।














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