2013-11-15 14:14:41

संत पापा इटली के राष्ट्रपति प्रासाद क्वीरिनाले गये


रोम, शुक्रवार 15 नवम्बर, 2013 (सेदोक,वीआर) संत पापा फ्राँसिस ने वृहस्पतिवार 14 नवम्बर को इटली के राष्ट्रपति भवन क्वीरीनाले में राष्ट्रपति जियोरजियो नपोलिताने तथा सरकारी उच्चाधिकारियों से मुलाक़ात की।

संत पापा ने राष्ट्रपति और सरकारी उच्चाधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा, "परिवार ही आशा का केन्द्र है और काथलिक कलीसिया चाहती है कि वह पूर्ण रूप से समर्पित होकर व्यक्ति और संस्थाओं की मदद करे ताकि इससे पारिवारिक मूल्यों को बल मिले और हमारी विश्वसनीयता बढ़े।"

उन्होंने कहा, "परिवार तब ही अपनी कर्त्तव्य और मिशन को पूरा कर सकता है इसे आपसी संबंधों और स्थिरता की मान्यता प्राप्त हो।"

संत पापा ने कहा, "कलीसिया का मुख्य दायित्व है ईश्वर की दया का साक्ष्य देना और पूरे उत्साह और उदारतापूर्वक एक-दूसरी की मदद करना ताकि आशा का दरवाज़ा खुल सके। ऐसा इसलिये क्योंकि आशा तब ही बढ़ती है जब लोग न्यायपूर्ण समाज की स्थापना और दीर्घकालिक विकास के लिये प्रयासरत हों।"

संत पापा ने लम्पेदूसा की अपनी यात्रा की याद करते हुए कहा कि उन्होंने लोगों के सहयोग की भावना को करीब से देखा है, कागलियरी में माता मरिया से प्रार्थना की है और असीसी में इटली के संरक्षक संत के सम्मुख देशवासियों के लिये प्रार्थनायें कीं हैं।
संत पापा ने कहा, "इटली के लोग देश के समृद्ध सामाजिक मूल्यों और आध्यात्मिक धरोहर से पूर्णतः परिचित है जो उन्हें सर्जनात्मक और सामंजस्यपूर्ण तरीके से कार्य करने में मदद देगा। वे सार्वजनिक हित तथा मानव की मर्यादा के लिये कार्य कर सकेंगे तथा अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को शांति और न्याय के प्रयास में अपना योगदान दे पायेंगे।"

संत पापा ने क्वीरिनाले में निवास करने वाले अधिकारियों के परिजनों से भी मुलाक़ात करते हुए कहा, " वे सदा ही गरीबों तथा कमजोर वर्ग के लोगों को स्वीकार करें और उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करें।"

संत पापा की क्वीरिनाले के दौरे के बारे अपने विचार व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति नपोलितानो ने कहा, "संत पापा में को ‘डोगमाटिज्म’ या हठधर्मिता नहीं है पर उनके दिल में द्वितीय वाटिकन महासभा की भावना कूट-कूट कर भरी है। उनके विचार, सादे पर शब्द में दम है।कलीसिया और विश्वास संबंधी उनके विचार प्रभावकारी हैं जो ख्रीस्तीय और अख्र्रीस्तीय सबों को एक समान प्रभावित करते हैं।"

उनका विचार कि ‘आज के परिवेश में सुसमाचार को फिर से पढ़कर चिन्तन करने की बात’ सबों को वार्ता के लिये आमंत्रित करते हैं यहाँ तक कि हमारे विरोधियों को भी और संत पापा इसके जीवन्त उदाहरण हैं।









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