अदालत ने काथलिक मिस्सा ग्रंथ के तमिल अनुवाद पर आपत्ति जतायी
चेन्नई, शुक्रवार 8 नवम्बर, 2013 (उकान,टीओआई) चेन्नई की एक अदालत ने तमिल में अनुवादित
काथलिक मिस्सा ग्रंथ के प्रयोग पर तबतक के लिये रोक लगा दी है जबतक वाटिकन इसे स्वीकृति
न प्रदान करे।
अदालत ने तमिल भाषा में अनुवादित मिसल ‘थिरुप्पाली बुक’ पर टिप्पणी
करते हुए कहा गलत अनुवाद किया गया है कई शब्द कलीसियाई विधान ‘कैनन लॉ’ के अनुसार उचित
नहीं हैं।
मालूम हो कि पूजन पद्धति तथा अन्य प्रार्थनाओं का अनुवाद सन् 1970 में
प्रकाशित किया गया जिसे वाटिकन की स्वीकृति प्राप्त थी। इसी किताब को सन् 1975 ईस्वी
में नवीकृत किया गया था और बाद में सन् 1993 ईस्वी में कुछ बदलावों के साथ एक नया प्रति
बनायी गयी थी।
इस नये संस्करण के विरोध में तीन मुकदमें दायर किये गये हैं। इसमें
कहा गया है कि प्रकाशकों ने किताब के अवतरणों और शब्दों को रोम की स्वीकृति प्राप्त किये
बिना ही प्रकाशित कर दिया है।
आरोपों में यह भी कहा गया है कि इस संस्करण में
पूजन पद्धति, बलिदान, अनन्त जीवन, पाप और अन्य सिद्धांतों को बहुत ही बनावटी तरीके से
प्रस्तुत किया गया है।
आरोपों का उत्तर देते हुए चेन्नई और पाँडिचेरी के महाधर्माध्यक्ष
जिन लोगों ने इसका विरोध किया है उन्हें अनुवादों पर प्रश्न करने का कोई अधिकार नहीं
हैं।
उन्होंने कहा कि प्रार्थना कलीसिया की आध्यात्मिक और धार्मिक बातें हैं
जिनपर न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। यदि उन्हें कोई संदेह है तो कलीसियाई
अधिकारियों और आचार्यों से संपर्क करें।
इसके जवाब में सहायक न्यायाधीश टी चंद्रशेखर
ने कहा कि यह मुकदमा पूजन पद्धति संबंधी किताब के बारे में है और पुरोहित ने इस बात का
प्रमाण देने में असमर्थ पाया गया कि उसने अनुवाद कि लिये वाटिकन से स्वीकृति प्राप्त
की है।
उन्होंने कहा कि यदि न्यायालय को इन बातों का समाधान करने के अधिकार से
वंचित किया गया तो कोई भी व्यक्ति पूजन पद्धति का अनुवाद अपनी सुविधा के लिये करता जायेगा
जिससे इसकी विश्वसनीयता पर बुरा असर होगा।