2013-11-06 19:21:37

‘संतों की सहभागिता’ पर संत पापा का चिन्तन


वाटिकन सिटी, बुधवार 6 नवम्बर, 2013 (सेदोक, वी.आर.) बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघऱ के प्राँगण में, विश्व के कोने-कोने से एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया।

उन्होंने इतालवी भाषा में कहा, ख्रीस्त में मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, हम काथलिक कलीसिया के प्रेरितों के धर्मसार संबंधी धर्मशिक्षामाला को जारी रखते हुए ‘संतों की सहभागिता’ पर चिन्तन करें।

संतों की सहभागिता का अर्थ सिर्फ़ व्यक्तियों की सहभागिता नहीं पर आध्यात्मिक वस्तुओं की भी सहभागिता। जब हम अपने वस्तुओं या धन-संपति को दूसरों के साथ बाँटते हैं हम येसु की घनिष्ठता में बढ़ते हैं या हम कहें हम पूरी कलीसियाई एकता में बढ़ते हैं।

आइये आज हमें आध्यात्मिक धन की तीन बातों पर चिन्तन करें। ये तीन बातें हैं संस्कार, गुण और दान। संस्कारों में येसु मसीह से मिलते, उनकी शक्तियाँ और क्षमताओं को ग्रहण करते तथा उन्हें बाँटने के लिये हम निकल पड़ते हैं ताकि उन्हें भी मुक्ति प्राप्त हो।

‘कैरिज्म’ या विभिन्न आध्यात्मिक वरदान हम पवित्र आत्मा द्वारा पाते हैं। यह कलीसिया की एकता, पवित्रता और सेवा की भावना को मजबूत करता है।
और प्रेम या दान के द्वारा हमारा संबंध ईश्वर से घनिष्ठ होता है।

आइये हमें ईश्वर से प्रार्थना करें कि हम आध्यात्मिक गुणों में आगे बढ़ें और येसु के प्रेम में मजबूत होकर अपने ख्रीस्तीय बुलाहट को पूरी वफ़ादारी जीयें।



इतना कह कर, संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा समाप्त की।

उन्होंने भारत, इंगलैंड, वेल्स वियेतनाम, डेनमार्क, नीदरलैंड आयरलैंड, फिलीपीन्स, नोर्व, स्कॉटलैंड. जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और देश-विदेश के तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों तथा उनके परिवार के सदस्यों को विश्वास में बढ़ने तथा प्रभु के प्रेम और दया का साक्ष्य देने की कामना करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।












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