2013-10-29 10:58:37

वाटिकन सिटीः वाटिकन ने हिन्दु धर्मानुयायियों को प्रेषित किया दीपावली पर शुभकामना सन्देश


वाटिकन सिटी, 29 अक्टूबर सन् 2013 (सेदोक): वाटिकन स्थित अन्तरधार्मिक वार्ता सम्बन्धी परमधर्मपीठीय समिति ने विश्व के हिन्दु धर्मानुयायियों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए एक सन्देश प्रेषित किया है। दीपावली सन्देश इस प्रकार हैः

ख्रीस्तीय एवं हिन्दू धर्मानुयायी
मैत्री एवं एकात्मता द्वारा मानवीय रिश्तों को प्रोत्साहित करें
प्रिय हिन्दू मित्रो,
    अन्तरधार्मिक सम्वाद सम्बन्धी परमधर्मपीठीय परिषद, आगामी तीन नवम्बर को मनाये जानेवाले दीपावली महोत्सव के अवसर पर आप सभी का सौहार्दपूर्ण अभिवादन करते हुए हार्दिक शुभकामनाएं अर्पित करती है। प्रकाश एवं जीवन के स्रोत, प्रभु ईश्वर, आपके जीवन को आलोकित करें तथा आपको आनन्द और शांति से भर दें।
    अत्यधिक प्रतिस्पर्धी वर्तमान विश्व में, जहाँ नित्य बढ़ती व्यक्तिपरक और भौतिकवादी प्रवृत्तियाँ, मानवीय रिश्तों को, प्रतिकूल रूप से, प्रभावित कर रही हैं तथा प्रायः परिवारों एवं समस्त समाज में विभाजन उत्पन्न कर रही हैं, हम ख्रीस्तीय एवं हिन्दू किस प्रकार, मैत्री एवं एकात्मता द्वारा, मानव कल्याण हेतु मानवीय सम्बन्धों को बढ़ावा दे सकते हैं, इस विषय पर हम अपने विचारों को बाँटना चाहते हैं।
    रिश्ते मानव अस्तित्व का मूलतत्त्व हैं। स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय समुदायों में सुरक्षा एवं शांति, अधिकांशतः, हमारे मानवीय अन्तर-सम्बन्धों की गुणवत्ता के आधार पर निर्धारित होती है। हमारा अनुभव सिखाता है कि हमारे मानवीय सम्बन्ध जितने गहरे होंगे उतना ही हम सहयोग, शांति-निर्माण, यथार्थ एकात्मता एवं समन्वय की दिशा में अग्रसर हो सकेंगे। सार यह कि सम्मानजनक सम्बन्धों को प्रोत्साहित करने की क्षमता ही यथार्थ मानवीय प्रगति का मापदण्ड है तथा शांति एवं अखण्ड विकास को बढ़ावा देने के लिये अनिवार्य है।
    ये सम्बन्ध हमारी साझा मानवता से सहज ही प्रवाहित होने चाहिये। वस्तुतः, मानवीय रिश्ते मानव- अस्तित्व एवं मानव-प्रगति का मूल है जो स्वतः दूसरों के प्रति, एकात्मता को उत्पन्न करता है। अपने जातिगत, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सैद्धान्तिक मतभेदों के बावजूद भी हम सब एक ही मानव परिवार के अंग हैं।
    दुर्भाग्यवश, समाज में भौतिकतावाद की वृद्धि तथा गहन आध्यात्मिक एवं धार्मिक मूल्यों के प्रति नित्य बढ़ते उपेक्षाभाव के कारण अब भौतिक वस्तुओं को भी मानवीय रिश्तों के बराबर महत्व देने की एक ख़तरनाक प्रवृत्ति अस्तित्व में आ गई है जो मानव को "व्यक्ति" से "वस्तु" बना देती है जिसे जब चाहो तब फेंका जा सकता है। इसके अतिरिक्त, व्यक्तिपरक प्रवृत्तियाँ सुरक्षा के मिथ्या भाव को जन्म देती तथा, सन्त पापा फ्राँसिस के शब्दों में: "बहिष्कार की संस्कृति", "फेंक देने की संस्कृति" तथा "उदासीनता के वैश्वीकरण" को समर्थन देती हैं।
    अस्तु, "रिश्तों की संस्कृति" तथा "एकात्मता की संस्कृति" का संवर्धन सभी लोगों के लिये अनिवार्य है तथा सम्पूर्ण मानव परिवार के लाभार्थ मैत्री एवं परस्पर सम्मान पर आधारित रिश्तों को प्रोत्साहित करने का आह्वान करता है। इसके लिये, मानव व्यक्ति की अन्तर्भूत गरिमा को मान्यता देना तथा प्रोत्साहित करना आवश्यक है। यह स्पष्ट है कि मैत्री एवं एकात्मता के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है। अन्त में, "एकात्मता की संस्कृति का अर्थ अन्यों को प्रतिद्वन्दी अथवा सांख्यिकियों के रूप में नहीं अपितु, भाइयों एवं बहनों के सदृश देखना है" (सन्त पापा फ्राँसिस, (मांग्वीन्होस) वारगिनहा समुदाय से भेंट, रियो दे जानेरो, 25 जुलाई, 2013)।
    अन्ततः, हम अपने इस दृढ़ विश्वास को व्यक्त करना चाहते हैं कि एकात्मता की संस्कृति, "जनकल्याण हेतु, सबके संयुक्त प्रयास के फल द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है" (सन्त पापा फ्राँसिस, ब्राज़ील समाज के नेताओं से मुलाकात, रियो दे जानेरो, 27 जुलाई 2013)। अपनी-अपनी धार्मिक शिक्षाओं से संपोषित होकर तथा यथार्थ सम्बन्धों के महत्व के प्रति सचेत रहकर, हम हिन्दू एवं ख्रीस्तीय धर्मावलम्बी, व्यक्तिगत एवं संयुक्त रूप से, सभी धार्मिक परम्पराओं के लोगों एवं समस्त शुभचिन्तकों के साथ मिलकर, मैत्री एवं एकात्मता द्वारा, मानव परिवार को विकसित एवं मज़बूत करने के लिये कार्य करें।

आप सबको दीपावली महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ!


कार्डिनल जाँ-लूई तौराँ
अध्यक्ष


श्रद्धेय मिगेल आन्गेल अयुसो गिक्सो, एमसीसीजे
सचिव








All the contents on this site are copyrighted ©.