वाटिकन सिटी, सोमवार, 28 अक्तूबर 2013 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर
के प्रांगण में रविवार 27 अक्तूबर को, संत पापा फ्राँसिस ने परिवार सम्मेलन पर पावन ख्रीस्तयाग
अर्पित किया। उन्होंने उपदेश में कहा, "आज का पाठ हमें ख्रीस्तीय परिवार की आधारभूत
विशेषताओं पर चिंतन के लिए प्रेरित करता है।" संत पापा ने उपदेश में ख्रीस्तीय परिवारों
की तीन मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डाला। पहली विशेषता है- ख्रीस्तीय परिवार प्रार्थना
करता है। सुसमाचार पाठ हमें दो तरह की प्रार्थनाओं से अवगत कराता है। एक जो ग़लत
तरीके की प्रार्थना है जिसको फ़रीसी ने किया तथा दूसरी सच्ची प्रार्थना जिसे चुंगीवाले
ने किया। फ़रीसी उस मनोभाव का प्रतीक है जिसमें ईश्वर से प्राप्त आशीर्वाद एवं उनकी
दया के लिए धन्यवाद का अभाव है बल्कि आत्मतुष्टि सर्वोपरि है। वह अपने आपको न्यायोचित
एवं सुव्यवस्थित महसूस कर घमंड करता एवं अन्यों को खुद से घटिया समझता है। उधर दूसरी
ओर नाकेदार चुपचाप खड़ा है। उसकी प्रार्थना विनम्र, एवं संयत है जिसमें अपनी आवश्यकताओं
तथा अपने अयोग्यताओं के प्रति चेतना व्याप्त रहती है। वह अनुभव करता है कि उसे ईश्वर
की क्षमा और दया की आवश्यकता है। संत पापा ने कहा कि नाकेदार की प्रार्थना एक दीन
व्यक्ति की प्रार्थना है जो ईश्वर को प्रसन्न करने वाली है। यह एक ऐसी प्रार्थना है जो
आज के पहले पाठ के सदृश्य "मेघों को चीर कर ईश्वर तक पहुँचती है।"(प्रवक्ता 35:20) इसके
विपरीत, फ़रीसी की प्रार्थना घमंड के भार से दबी प्रार्थना है। संत पापा ने परिवारों
को संबोधित कर कहा, "प्रिय परिवारो, मैं ईशवचन के प्रकाश में पूछना चाहूँगा कि क्या आप
समय-समय पर मिलकर प्रार्थना करते हैं? मैं कुछ लोगों को जानता हूँ कि वे प्रार्थना करते
हैं किन्तु कई लोग मुझसे पुछते हैं कि किस प्रकार प्रार्थना करना है? संत पापा ने कहा,
प्रार्थना उसी प्रकार करें जैसे नाकेदार ने कीः विनम्रता पूर्वक ईश्वर के सम्मुख उपस्थित
होकर। विनीत भाव से ईश्वर को अपने आप पर दृष्टि लगाने दें तथा उनकी अच्छाई की याचना करें,
अपने पास आने का आग्रह करें।" आपके मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि परिवार में यह किस
प्रकार संभव है? अंततः प्रार्थना एक व्यक्तिगत मामला है? उसके लिए उपयुक्त एवं शांत वातावरण
की आवश्यकता है? जी हाँ, यह सच है किन्तु यह विनम्रता की बात है। हमें नाकेदार के समान
यह महसूस करना है कि हमें ईश्वर की आवश्यकता है। सभी परिवारों में, हम सभी को ईश्वर की
आवश्यकता है। हमें उनकी सहायता, बल, आशीष, करुणा एवं क्षमा की आवश्यकता है। परिवार
में प्रार्थना करने के लिए सादगी की अति आवश्यकता है। परिवार में प्रार्थना करने का अर्थ
हैः खाने की मेज पर ‘हे हमारे पिता प्रार्थना’ एक साथ करना जो बिलकुल आसान हैं। एक साथ
मिलकर रोज़री विन्ती करना अति सुन्दर है एवं शक्ति का स्रोत है। परिवार में एक-दूसरे
के लिए प्रार्थना करना। आज का दूसरा पाठ हमें सलाह देता है कि ख्रीस्तीय परिवार
विश्वास को बनाये रखता है। प्रेरित संत पौलुस अपने जीवन के अंतिम दिनों में हिसाब करते
हैं और कहते हैं, "मैं अच्छी लड़ाई लड़ चुका हूँ।" (2तिम.4:7) किस प्रकार उन्होंने अपने
विश्वास को बनाये रखा? निश्चय ही सुस्त नौकर के समान कोई मज़बूत बक्स में या भूमि के
अंदर छिपाकर नहीं। उन्होंने विश्वास को बनाये रखा क्योंकि उन्होंने उसकी सफाई पेश नहीं
की बल्कि घोषणा की, सुदूर देशों में उसका प्रचार किया। वे उन लोगों के सम्मुख साहस पूर्वक
खड़े हुए तथा साहसिक निर्णय लिया जो ख्रीस्त के संदेश को फिलिस्तीन के सीमित क्षेत्र
में रखना चाहते थे। उन्होंने प्रतिकूल क्षेत्रों का दौरा किया, दूरवर्ती प्रांतों में
विभिन्न लोगों और संस्कृतियों की चुनौतियों का सामना किया। उन्होंने निडर एवं स्पष्ट
रूप से उनसे बातें कीं। संत पौलुस ने विश्वास को उसी रूप में रखा जिस रूप में खुद प्राप्त
किया था। वे एक छोर से दूसरे छोर तक गये तथा कभी भी आत्म रक्षा हेतु सफाई देने की कोशिश
नहीं की। संत पापा ने कहा कि यहाँ हम पूछ सकते हैं कि हम परिवार में किस प्रकार अपने
विश्वास को रख सकते हैं? क्या हम इसे अपने लिए रखते हैं? अपने परिवार के लिए, बैंक खाते
में व्यक्ति सम्पति की तरह अथवा क्या हम अपनी साक्ष्य, अन्यों को स्वीकार कर या अपने
खुलेपन द्वारा बांटते हैं? हम सभी जानते हैं कि परिवार, ख़ासकर युवा परिवार, बहुत सारे
कार्यों को लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा कि यह दौड़
भी विश्वास की दौड़ हो सकती है? ख्रीस्तीय परिवार प्रेरितिक परिवार है। कल हमने इस प्रांगण
में प्रेरितिक परिवारों का साक्ष्य सुना है। वे प्रतिदिन के जीवन में भी मिशनरी हैं,
अपनी दिनचर्या में। वे सभी चीजों में विश्वास का नमक एवं ख़मीर बनते हैं। परिवारों में
विश्वास को रखते हुए सभी बातों में विश्वास के नमक एवं ख़मीर बनें। हम ईश वचन से
तीसरा चिंतन ले सकते हैं, ख्रीस्तीय परिवार आनन्द का अनुभव करता है। हम अनुवाक्य में
उन शब्दों को पाते हैं "दीन सुनें और आन्नदित हों।" (33,34.2) पूरा अनुवाक्य ईश्वर का
एक गीत है जो आनन्द एवं शांति का स्रोत हैं। दीनों के आनन्द का क्या कारण है? उनके आनन्द
का कारण है कि ईश्वर नजदीक हैं, वे एकाकी की पुकार को सुनते हैं तथा बुराई के बंधन से
उन्हें मुक्त करते हैं। जैसा कि संत पौलुस लिखते हैं "हमेशा प्रसन्न रहें, प्रभु निकट
हैं।" (फिल.4: 4-5) मैं आप सभी से एक सवाल पूछना चाहता हूँ। जब घर में खुशी का वातावरण
होता है तो कैसा लगता है? क्या आपके घर में आनन्द मौजूद है? प्रिय परिवारो, "आप
बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि परिवार में जब हम सच्चे आनन्द का अनुभव करते हैं तो यह काल्पनिक
नहीं है। यह भौतिक वस्तुओं से प्राप्त नहीं होती, जैसा कि कई लोग प्राप्त करने की कोशिश
करते हैं। सच्चा आनन्द व्यक्तियों के बीच सच्ची एकता से आता है। जिसे हम अपने हृदय में
अनुभव करते हैं जो हमें एक साथ रहने के सुखद अनुभव का एहसास देता एवं जीवन यात्रा में
सहयोग देता है। इस गहन आनन्द के अनुभव का आधार ईश्वर की उपस्थिति हैः ईश्वर की उपस्थिति
परिवार में तथा परिवार के प्रेम में, जो स्वीकृति, दयालुता और सभी के प्रति आदर की भावना
से आती है। सबसे प्रमुख बात है प्यार जो सहनशील है। सहनशीलता ईश्वरीय सदगुण है। यह हमें
सिखाता है कि परिवार में किस प्रकार एक दूसरे को सहन कर प्रेममय वातावरण बनाया जा सकता
है। सिर्फ ईश्वर जानते हैं कि किस प्रकार विभिन्नताओं में भी सामंजस्य स्थापित किया जा
सकता है किन्तु यदि परिवार में ईश्वर के प्यार का अभाव है तो आपसी समझदारी घटती है,
व्यक्ति आत्म केंद्रित हो जाता तथा आनन्द फीका पड़ने लगता है। जो परिवार विश्वास के आनन्द
का अनुभव करता है वह स्वाभाविक रूप से उस आनन्द को दूसरों को बांटता है। ऐसा परिवार पृथ्वी
का नमक, संसार की ज्योति एवं पूरे समाज का ख़मीर है। संत पापा ने कहा प्रिय परिवारो,
नाज़रेथ के पवित्र परिवार की तरह सदा विश्वास एवं सादगी भरा जीवन अपनाएँ। प्रभु का आनन्द
एवं उनकी शांति सदा आप के साथ हो।" पवित्र ख्रीस्तयाग के उपरांत संत पापा ने उपस्थित
विश्वासियों का अभिवादन करते हुए उन्हें धन्यवाद दिया तथा उनके साथ देवदूत प्रार्थना
का पाठ किया। उन्होंने कहा, "मैं सभी तीर्थयात्रियों का अभिवादन करता हूँ एवं सहृदय धन्यवाद
देता हूँ विशेषकर विभिन्न राष्ट्रों से आये सभी परिवारों को।" उन्होंने अधिक कठिनाई
की स्थिति में पड़े विश्व के सभी परिवारों के लिए माता मरिया से प्रार्थना की। तत्पश्चात्
भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया एवं सभी को अपना प्रेरितिक आर्शीवाद
प्रदान किया।