2013-10-26 15:44:08

अपने पापों को पहचान नहीं पाने पर क्षमा प्राप्त करना असम्भव


वाटिकन सिटी, शनिवार, 26 अक्तूबर 2013 (सीएनए): संत पापा फ्राँसिस ने 25 अक्तूबर को वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मार्था में पावन ख्रीस्तयाग अर्पित किया।
उन्होंने उपदेश में मेल-मिलाप के संस्कार के विषय पर चिंतन प्रस्तुत करते हुए बल दिया कि पाप प्रत्येक दिन का संर्घष है जो आमने-सामने होकर हिसाब चुकाने की माँग करता है।
उन्होंने कहा, "पाप स्वीकार के लिए जाना किसी मनोचिकित्सक के पास या यंत्रणा कमरे में जाना नहीं है। पाप स्वीकार का अर्थ है प्रभु से कहना, प्रभु मैं एक पापी हूँ, मैंने आपके विरुद्ध तथा अन्यों के विरुद्ध पाप किया है।" उन्होंने कहा कि यह पुरोहित भाइयों द्वारा ठोस रुप से कही जानी चाहिए।
संत पापा ने उन वयस्क विश्वासियों पर चिंतन से अपना प्रवचन शुरु किया जो सोचते हैं कि किसी पुरोहित के समक्ष पाप स्वीकार करने का तरीका असहनीय है इसलिए वे पाप स्वीकार का ही परित्याग कर देते हैं। अथवा यह प्रक्रिया इतनी दुखद है कि सत्य एक कहानी में परिणत हो जाती है।
रोमियों के नाम लिखे पत्र में संत पौलुस अपनी कमजोरी को सभी के सामने स्वीकार करते हुए कहते हैं कि वे अपने शारीरिक कमजोरी के कारण अच्छाई का साथ नहीं दे पाते तथा वही कर डालते हैं जो बुरा है।
संत पापा ने बल दिया, "विश्वास के जीवन में बहुधा यही होता है, जब हम अच्छा करना चाहते हैं तो बुराई हमारे अत्यन्त करीब होती है। यही ख्रीस्तीयों का संघर्ष है। यह हमारे प्रतिदिन का संघर्ष है तथा संत पौलुस के समान सब समय हम में साहस भी नहीं होता है।"
हम अपने पापों का औचित्य ठहराने की कोशिश में बहाना बनाकर कहते हैं कि हम सब पापी हैं और यह संघर्ष हमारा संघर्ष है। यदि हम अपने पापों को पहचान नहीं पाते हैं तो हम ईश्वर की क्षमा को कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे।
संत पापा ने अपील की कि यदि मैं पापी हूँ कहना, एक शब्द मात्र है, बोलने का एक तरीका है, तो हमें ईश्वरीय क्षमा की कोई आवश्यकता नहीं किन्तु यदि यह सच्चाई है तो हमें यह अपना गुलाम बना लेता है। उस गुलामी से मुक्त होने के लिए हमें प्रभु द्वारा आंतरिक स्वतंत्रता एवं शक्ति प्राप्त करने की आवश्यकता है।
संत पापा ने संत पौलुस द्वारा सिद्ध करने की प्रवृति के बावजूद उनके प्रमुख रास्ते को बताया कि उन्होंने समुदाय में अपने पापों को स्वीकार किया, उन्होंने छिपाकर कुछ भी नहीं रखा। कलीसिया हम से इसी दीनता माँग करती है।
संत जेम्स ने कई बार दुहराया है कि अपने पापों को एक-दूसरे के पास स्वीकार करें। दूसरों को दिखाने के वास्ते नहीं वरन ईश्वर की महिमा के लिए। यह याद रखने के लिए कि वही हमें बचा सकते हैं इसीलिए हम पाप स्वीकार करने पुरोहित के पास जायें जिसकी माँग कलीसिया हम से करती है।
हम में से कोई कह सकता है कि मैं सीधा ईश्वर से पास पाप स्वीकार करता हूँ। जो एक आसान तरीका है।
संत पापा ने कहा कि यह ई-मेल द्वारा पाप स्वीकार करने के सामान है। इस के द्वारा यही प्रतीत होता है कि मानो ईश्वर हम से बहुत दूर हैं और हम अपनी बातों को उनके पास रख तो देते किन्तु उनसे मिल नहीं पाते तथा ऐसी बातों को भी बताते हैं जिसका कोई ठोस रुप नहीं है।
ईश्वरीय क्षमा प्राप्त करने के लिए सच्चाई, ईमानदारी एवं गलतियों के प्रति लज्जा की वास्तविक भावना एवं खुलापन होने की आवश्यकता है। हमें पाप स्वीकार संस्कार के लिए छोटे बच्चे का सा मनोभाव धारण करने की आवश्यकता है क्योंकि बच्चे स्पष्ट रुप से अपने पापों को स्वीकार करते हैं।








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