राँची, शुक्रवार 25 अक्तूबर, 2013 (उकान) भारतीय धर्माध्यक्षीय परिषद के न्याय, शांति
और विकास के लिये बनी विभाग ने झारखंड की राजधानी राँची के सोशल डेवलोपमेंट सेंट सभागार
में 21 से 23 अक्तूबर तक दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया।
कार्यक्रम का उद्घाटन
खूँटी के धर्माध्यक्ष बिनय कंडुलना ने किया। अपने उद्घाटन भाषण में उपस्थित लोगों को
संबोधित करते हुए धर्माध्यक्ष कंडुलना ने कलीसियाई दस्तावेज़ पास्टोरल कोन्स्टीट्यूशन
ऑन द चर्च इन द मॉडर्न वर्ल्ड की आरंभिक पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कहा, "आज की दुनिया
के लोगों का आनन्द और आशा, दुःख और विलाप विशेष करके गरीबों के दुःख या किसी भी अन्य
तरह की यातनायें ख्रीस्त के अनुयायियों के दुःख, आशा और विपत्तियाँ हैं।"
इस
अवसर पर बोलते हुए सीबीसीआई के लिये न्याय और शांति के लिये कार्यरत सचिव डॉ. फादर चार्ल्स
इरुदियम ने कहा कि कलीसिया की सामाजिक शिक्षा इस बात पर विशेष ध्यान देती है कि सब ख्रीस्तीय
सामाजिक रूप से सक्रिय बनें और इसका आधार है कलीसिया की सामाजिक शिक्षा। उन्होंने बताया
कि कलीसिया चाहती है कि मानव मर्यादा की हर हालत में रक्षा होनी चाहिये और इसके लिये
ज़रूरी है कि मानवाधिकारों का सम्मान हो।
कार्यशाला में उपस्थित समाज सेवी सुश्री
अनु सिंह ने कहा कि झारखंड में बच्चों और महिलाओं की हालत नाजुक है और ज़रूरत है उनके
लिये एक साथ मिलकर कार्य करने की।
सीबीसीआई के ट्राईबल डेस्क के सचिव फादर स्टैनी
ने लोगों का ध्यान कराते हुए कहा कि आदिवासियों के पलायन के बाद उनकी आदिवासी अस्मिता
पर खतरा के बादल मंडराने लगे हैं क्योंकि अन्य राज्य उन्हें आदिवासी की मान्यता और अधिकारों
से वंचित कर देते हैं।
उन्होंने बतलाया कि राष्ट्रीय विकास के नाम पर आदिवासियों
का शोषण हुआ है और उन्हें हाशिये पर रख दिया गया है। उन्होंने लोगों से अपील की कि आदिवासियों
के पूर्ण विकास के लिये आदिवासी सशक्तिकरण ज़रूरी है और इसके लिये कानूनी हथियारों जैसे
पेसा कानून 1996 और जंगल अधिकार कानून 2006 का उपयोग किया जाना अति आवश्यक है।
कार्यशाला
में 73 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिसमें झारखंड के 8 धर्मप्राँतों के पुरोहितों और
धर्मसमाजियों ने हिस्सा लिया।