वाटिकन सिटी, शनिवार, 19 अक्तूबर 2013 (सीएनए): संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार 18 अक्तूबर
को वाटिकन के प्रेरितिक आवास संत मार्था में, पावन ख्रीस्तयाग अर्पित किया। पवित्र मिस्सा
के दौरान उपदेश में उन्होंने बाईबिल में वर्णित महापुरुषों का उदाहरण प्रस्तुत किया तथा
बुजूर्गों का परित्याग नहीं करने की सलाह दी। उन्होंने मूसा, योहन बपतिस्ता एवं
संत पौलुस के जीवन की अंतिम दिनों पर चिंतन केंद्रित करते हुए कहा, "ये तीन धर्मी पुरुष
पवित्र आवास की याद दिलाते हैं जिसमें बुजूर्ग पुरोहितों एवं धर्मबहनों को रखा जाता
है।"
संत पापा ने तीनों की युवावस्था के प्रेरितिक उत्साह और जोश के प्रदर्शन
की याद की तथा बुढ़ापे में उसके ठीक विपरीत, अकेलापन एवं जीवन के दुखद पलों को भी। उन्होंने
कहा कि उन तीनों में से कोई कष्टों से बच नहीं पाया किन्तु ईश्वर ने उनका साथ कभी नहीं
छोड़ा। संत पौलुस के बारे में बताते हुए कहा कि उनका मिशन "शुरु में आनन्द एवं उत्साह
से पूर्ण था" जो जीवन के लम्बे दौर में धीरे-धीरे घटता चला गया। मूसा एवं योहन बपतिस्ता
को भी यही अनुभव हुआ। मूसा जब जवान थे, वे ईश्वरीय प्रजा का साहसी नेता थे, यद्यपि
उन्होंने अपने लोगों को बचाने के ख़ातिर शत्रुओं से संघर्ष किया तथापि अपने जीवन के अंतिम
दिनों में होरेब पर्वत पर, प्रतिज्ञात देश की ओर दृष्टि लगा कर अकेले पड़े रहे क्योंकि
वे प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने के लिए सक्षम नहीं थे। संत योहन बपतिस्ता अपने
जीवन के अंतिम दिनों में जेल की यंत्रणा से परेशान थे। उनकी हत्या एक कमजोर, भ्रष्ट और
शराबी शासक के हाथों हुई जो खुद एक वैश्य, ईष्यालु, एवं चपल नर्तकी के अधीन था।"
संत
पौलुस की ओर पुनः ध्यान खींचते हुए कहा, संत पौलुस का अनुभव भी उसी प्रकार का रहा, जिसको
हम उनके पत्रों में पाते हैं कि वे परित्यक्त महसूस किये एवं ठुकराये गये। संत पापा
ने स्पष्ट किया कि यद्यपि संत पौलुस ने घोर कष्टों का वर्णन किया है तथापि उन्होंने
यह भी लिखा है कि "प्रभु उनके साथ थे तथा सुसमाचार की घोषणा करने के उनके मिशन को पूरा
करने का बल प्रदान किया।" संत पापा ने बुजूर्ग पुरोहितों एवं धर्म बहनों के आवास को
‘पावन निवास’ की संज्ञा देते हुए विश्वासियों से आग्रह किया कि उनका परित्याग न करें
तथा उनकी मुलाक़ात करें क्योंकि "अकेलापन के कष्ट के कारण वे प्रभु के आगमन का इंतजार
करने लगते हैं।"