2013-10-14 15:12:40

ईश्वर हमें आश्चर्यचकित करते


वाटिकन सिटी, सोमवार, 14 अक्तूबर 2013 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में रविवार, 13 अक्तूबर को संत पापा फ्राँसिस ने माता मरिया दिवस के उपलक्ष्य में, पावन ख्रीस्तयाग अर्पित किया तथा सम्पूर्ण विश्व को फातिमा की रानी निष्कलंक मरियम के सिपुर्द किया।
पावन ख्रीस्तयाग के दौरान उपदेश में उन्होंने स्तोत्र ग्रंथ के अध्याय 98, पद 1 का पाठ किया जिसमें लिखा है, "प्रभु के आदर में नया गीत गाओ, उसने अपूर्व कार्य किये हैं।"
संत पापा ने कहा, "आज हम प्रभु के एक अपूर्व कार्य पर विचार कर रहे हैं: वह है माता मरिया, हमारे ही समान कमज़ोर एवं दीन प्राणी जो ईश्वर की माता होने के लिए चुनी गई, अपने सृष्टिकर्त्ता की माँ।"
संत पापा ने पाठ के आलोक में माता मरिया पर चिंतन करते हुए तीन मुख्य बिन्दुओं को रखा। 1. ईश्वर हमें आश्चर्य चकित करते, 2. हम से निष्ठावान बने रहने का आग्रह करते हैं तथा 3. ईश्वर हमारे बल हैं।
संत पापा ने प्रथम बिन्दु का विश्लेषण करने के लिए आराम के सेनाध्यक्ष नमान की कहानी पर ग़ौर किया। नमान कोढ़ बीमारी से चंगाई के लिए नबी एलियस के पास गया। नबी एलियस ने उसको चंगा करने के लिए कोई जादू या कोई असाधारण चीज़ की मांग नहीं की किन्तु ईश्वर पर विश्वास करने की सलाह दी तथा नदी के जल से स्नान करने को कहा। दमिश्क की कोई बड़ी नदी में नहीं वरन यर्दन नदी में। नमान को आश्चर्य हुआ और उसने कहा "यह कैसा ईश्वर है जो इतनी साधारण चीज़ की माँग करता है?" उसमें वापस जाना चाहा किन्तु अंत में यर्दन नदी की ओर बढ़ा तथा उसमें स्नान कर शीघ्र चंगा हो गया।
संत पापा ने कहा कि ईश्वर हमें आश्चर्यचकित करते हैं। निश्चय ही गरीब, कमज़ोर एवं दीन रुप में वे अपने आप को देते हैं। वे अपनी निर्धनता में हमें बचाते, चंगा करते तथा बल प्रदान करते हैं। बदले में हम से आज्ञा पालन करने एवं उनपर भरोसा करने की माँग करते हैं। दूत के संदेश पर माता मरिया का यही अनुभव था। उसने आश्चर्य भाव को नहीं छिपाया। उसका आश्चर्य था ईश्वर का अनुभव कि उन्होंने मानव रुप धारण करने के लिए नाजरेथ की एक साधारण कुँवारी को चुना। उन्होंने महल में रहने वाली, सत्ता और धन-धान्य से पूर्ण या आसाधारण कार्य करने वाली को नहीं चुना किन्तु बिलकुल साधारण ईश्वर के प्रति उदार, उनपर विश्वास करने वाली को चुना। यद्यपि उसने कुछ न समझा था किन्तु उत्तर दिया "देखिए मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो।" (लूक.1:38) ईश्वर हमेशा हमें आश्चर्यचकित करते हैं। हमारी श्रेणियों को तोड़ते हैं, हमारी योजनाओं को भंग करते हैं तथा हमें बताते हैं कि मुझपर भरोसा रखो, डरो मत। हम अपने आपको आश्चर्य चकित होने दें, स्वयं को पीछे छोड़ दें, तथा उनका अनुसरण करें।
संत पापा ने कहा, आज हम अपने आप से पूछें, क्या हम भयभीत हैं कि ईश्वर हम से किसी चीज़ की मांग करेंगे। क्या मैं ईश्वर को आश्चर्यमय कार्य करने का अवसर देता हूँ जैसा कि मरिया ने किया था। या क्या मैं अपने सुरक्षित क्षेत्र में बंद रहता हूँ : भौतिक वस्तुओं, मानसिक सुरक्षा तथा अपनी ही योजनाओं की शरण लेता हूँ। क्या मैं सच्चे तौर पर ईश्वर को अपने जीवन में प्रवेश करने देता हूँ। मैं उन्हें किस प्रकार प्रत्युत्तर देता हूँ?
2. दूसरे बिन्दु पर संत पापा ने संत पौलुस द्वारा तिमोथी को लिखे पत्र पर चिंतन प्रस्तुत करते हुए कहा, "ईसा मसीह को याद रखो, यदि हम दृढ़ रहें तो उनके साथ राज्य करेंगे।" (2तिम.2:8-13) येसु को हमेशा याद करने का अर्थ है येसु का सदा स्मरण रखना अर्थात् विश्वास में बने रहना। ईश्वर हमें अपने प्यार द्वारा आश्चर्य चकित करते हैं। किन्तु वे हम से यह भी माँगते हैं कि हम उनके विश्वस्त शिष्य बने रहें। हम अविश्वासी हो सकते हैं किन्तु वे कभी नहीं। वे हमेशा विश्वस्त हैं तथा हम से निष्ठा की मांग करते हैं। हम उन क्षणों पर विचार करें जब हम किसी कार्य को करने के लिए अत्यन्त उत्साही रहते हैं किन्तु बाद में कठिनाई के छोटे संकेत पर ही ठंढे पड़ जाते हैं। हमारे आधारभूत निर्णयों में भी यही होता है उदाहरण के लिए विवाह जिसमें निरंतर विश्वस्त एवं समर्पित रहने की प्रतिज्ञा की जाती है। हाँ कह देना सहज प्रतीत होता है किन्तु उसे प्रतिदिन दुहराने में बहुधा असफल हो जाते हैं। हम विश्वस्त रहने में असफल हो जाते हैं।
मरिया ने ईश्वर से ‘हाँ’ कहा जिसके कारण नाज़रेथ में उनका जीवन उथल-पुथल हो गया। कितनी बार उन्हें हृदय विदारक हाँ कहनी पडी, सुखद एवं दुखद दोनों ही समय में। उनकी हाँ की पराकाष्ठा क्रूस के नीचे थी। आज यहाँ कई माताएँ उपस्थित हैं। ईश्वर के प्रति मरिया के विश्वस्त बने रहने को अच्छी तरह समझ सकती हैं। अपने एकलौटे बेटे को क्रूस पर टंगा देखना। वह विश्वस्त नारी क्रूस के सम्मुख टूटे हृदय से किन्तु विश्वास एवं साहस के साथ खड़ी रही।
संत पापा ने कहा कि हम अपने आप से पूछ सकते हैं कि क्या मैं आवेश में आकर या चौंक उठने के कारण ख्रीस्तीय हूँ या सब समय ख्रीस्तीय हूँ? हमारी अल्पकालिक एवं सापेक्षिक संस्कृति पर यह निर्भर करता है कि हम किस रीति से अपने विश्वास को जीते हैं। ईश्वर हम से विश्वस्त रहने की माँग करते हैं अपने प्रतिदिन के जीवन में वे आगे कहते हैं यद्यपि हम अविश्वासी होते हैं तथापि वे विश्वस्त बने रहते हैं। अपनी करूणा में वे हमारी ओर झुककर हमारी यात्रा में सहायता करने से कभी नहीं थकते जिससे कि हम लौटकर आयें तथा अपनी कमज़ोरी को स्वीकार करें। वे अवश्य हमें बल प्रदान करेंगे।
यही वास्तविक यात्रा है, ईश्वर के साथ चलना, कमजोरी के पलों में भी, पाप की घड़ी में भी। अपनी अस्थायी राह को हम कभी नहीं चुनें। वह हमें मार डालती है। विश्वास ही परम निष्ठा है जैसा कि मरिया ने किया।
3. तीसरा बिन्दु, ईश्वर हमारे बल हैं पर संत पापा ने कहा, "मैं दस कोढ़ियों की याद करता हूँ जो येसु द्वारा चंगे किये गये। दूर से ही येसु को देखकर उन्होंने येसु से दया की याचना की। वे बीमार थे उन्हें प्यार एवं शक्ति की आवश्यकता थी। वे प्रतीक्षा कर रहे थे कि कोई उन्हें चंगाई प्रदान करे। येसु ने उन्हें चंगाई प्रदान की किन्तु दस व्यक्तियों में से मात्र एक ने वापस आकर येसु को ऊँचे स्वर में धन्यवाद दिया यह अनुभव करते हुए कि वही मेरा बल है। हमें भी ईश्वर को याद करते हुए उनके सभी वरदानों के लिए धन्यवाद देना चाहिए।
हम माता मरिया को देखें, किस प्रकार वह दूत का संदेश पाकर सर्वप्रथम अपनी कुटुम्बिनी इलिज़ाबेथ की सेवा करने चल पड़ती है। और जब वह उनसे मुलाकात करती है तो उसका पहला शब्द ईश्वर की प्रशंसा ही थी। मेरी आत्मा प्रभु का गुणगाण करती है। यह प्रशंसागाण न केवल खुद को प्राप्त वरदानों के लिए था किन्तु मुक्ति के इतिहास में पीढ़ी दर पीढ़ी ईश्वर की सभी कृपा दानों के लिए है।
संत पापा ने कहा कि सब कुछ ईश्वर का ही दान है। यदि हम यह अनुभव कर पाते हैं तो हमारा हृदय कृतज्ञता से भर जायेगा। वे हमारे बल हैं। धन्यवाद कहना सहज है किन्तु बहुत कठिन भी। हमारे परिवारों में हम कितनी बार धन्यवाद कहते हैं? क्षमा करें, कृपया, धन्यवाद आदि शब्द हमारे आम जीवन के लिए बहुत आवश्यक हैं। माफ कीजिए, कृपया एवं धन्यवाद, यदि परिवारों में इन शब्दों का प्रयोग होता हो तो परिवार सही होंगे। जो हमारी मदद करते, हमारे नजदीकी या अन्यों को हम कितनी बार धन्यवाद बोलते हैं। यह अत्यन्त सहज है कि हम ईश्वर के पास बहुत कुछ मांग लेते हैं किन्तु बाद में धन्यवाद देना भूल जाते हैं।
हम माता मरिया की मध्यस्थता से प्रार्थना करें कि वे हमें अपने आप को ईश्वर के आश्चर्य के सम्मुख उदार रहने में मदद करें, जिससे कि हम प्रतिदिन निष्ठावान रह सकें, प्रशंसा कर सकें तथा धन्यवाद दे सकें क्योंकि वे ही हमारे बल हैं।
संत पापा ने पावन ख्रीस्तयाग के उपरान्त उपस्थित भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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