वाटिकन सिटी, शनिवार 12 अक्तूबर 2013 (सीएनएस): संत पाप फ्राँसिस ने शुक्रवार, 11 अक्तूबर
को रोम स्थित यहूदी समुदाय के प्रतिनिधियों से मुलाकात की तथा उन्हें बताया कि वे आपस
में क़रीबी से जुड़े हैं। संत पापा ने यहूदी विरोधी भावना के कारण सन 1943 ई. में
यहूदी समाज के 1,000 से अधिक नागरिकों को कुख्यात नाज़ी मृत्यु शिविर में निर्वासित किये
जाने की निंदा की जो परमधर्मपीठ एवं यहूदी प्रतिनिधियों के बीच तनाव का मुख्य कारण रहा
है।
उन्होंने कहा, "एक ख्रीस्तीय के लिए यहूदी विरोधी होना, विरोधाभास है क्योंकि
उसकी जड़ें यहूदी हिस्से में है। उन्होंने मंगलकामना की कि यहुदी विरोधी भावना हर स्त्री
एवं पुरुष के दिल दिमाग से निकाल दी जाए। संत पापा ने प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर
कहा, "निर्वासन की 70 वीं बरसी पर जब हम उन दुखद पलों की याद कर रहे हैं तो हमारा कर्तव्य
है कि हम निर्वासितों के दुर्भाग्य की याद करें, उनके भय, दुःख एवं निराशा को अनुभव करें।
हम उनके तथा उनके परिवार वालों के लिए प्रार्थना करें।" उन्होंने कहा, "बरसी का
अवसर सिर्फ स्मरण करने के लिए नहीं होता वरन समझने के लिए कि आज हमें यह क्या संदेश देना
चाहता है। जिससे कि हम भविष्य में दूसरों को राह दिखा सकें।" यह यादगारी युवा पीढ़ी
के सम्मुख एक आह्वान दे रही है कि वे विचारवादी धाराओं में न बह जाएँ, बुराईयों से समझौता
न करें तथा सामीवाद विरोधी भावना एवं जातिवाद से चौकस रहें चाहे उनका उदगम जहाँ कहीं
से भी हो। अंत में संत पापा ने आशा दिलाई कि इस पहल से रोम के काथलिकों एवं यहूदियों
के बीच भ्रातृत्व मज़बूत होगा। विदित हो कि 16 अक्तूबर सन् 1943 ई. को 1,000 यहूदियों
को रोम से निर्वासित कर पोलैण्ड के आऊशिवटस नज़र बन्दी शिविर भेज दिया गया था। इस वर्ष
इस भयावह घटना की 70 वीं बरसी है।