2013-10-07 14:36:20

यदि विश्वास सच्चा और दिल से हो, तो असंभव कार्य भी संभव हो सकते हैं


वाटिकन सिटी, सोमवार, 7 अक्तूबर 2013 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में, रविवार 6 अक्तूबर को, संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को संबोधित कर कहा,
"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,
सर्वप्रथम मैं अपनी असीसी यात्रा के लिए ईश्वर को धन्यवाद देना चाहता हूँ। यह पहला मौका था जब मैंनें असीसी की यात्रा की। संत फ्राँसिस के महापर्व के दिन असीसी की तीर्थयात्रा करना मेरे लिए एक विशेष कृपा थी। मैं असीसी के लोगों को उनके गरमजोशी के साथ स्वागत के लिए धन्यवाद देता हूँ।"
संत पापा ने आगे सुसमाचार पर विश्वासियों का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा, "आज का सुसमाचार चेलों द्वारा येसु से विश्वास बढ़ाने की माँग से आरम्भ होता है।(लूक.17:5-6) मैं सोचता हूँ कि चेलों की इस माँग को हम अपनी अर्जी बना सकते हैं विशेषकर विश्वास को समर्पित इस वर्ष के दौरान। हम भी प्रेरितों के समान प्रभु येसु से कह सकते हैं ‘हमारे विश्वास को सुदृढ़ कीजिए। जी हाँ प्रभु, हमारा विश्वास थोड़ा है, कमजोर है एवं नाजुक है किन्तु हम इसे, इसी रुप में आपको चढ़ाते हैं क्योंकि आप इसे बढाते हैं। हम एक साथ प्रार्थना करें: ‘प्रभु, हमारा विश्वास बढ़ाइए, प्रभु हमारा विश्वास बढ़ाइए, प्रभु हमारा विश्वास बढ़ाइए’। इस प्रकार हम अपने विश्वास को विकसित होने दें।"
संत पापा ने कहा कि येसु हमें क्या उत्तर देते हैं? वे कहते हैं, "यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी होता और तुम शहतूत के इस पेड़ से कहते उखड़ कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी बात मान लेता।"(पद.6) संत पापा ने सुसमाचार के इस पद का विश्लेषण करते हुए कहा कि राई का दाना बहुत छोटा है परन्तु येसु कहते हैं कि तुम्हारा विश्वास थोड़ा ही क्यों न हो किन्तु यदि यह सच्चा और दिल से हो, तो मानवीय रुप से असंभव एवं कल्पना के परे कार्य भी संभव हो सकते हैं, और यह सत्य है। हम सभी ऐसे लोगों को जानते हैं जो बहुत साधारण एवं विनम्र होते हैं किन्तु विश्वास में इतने पक्के होते हैं कि पहाड़ को भी हिला सकते हैं। उदाहरणार्थ, कुछ माता-पिता कठिन परिस्थितियों का सामना करते हैं यहाँ तक कि कुछ माता-पिता को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है किन्तु सब कुछ चुपचाप सह लेते हैं। विश्वास के कारण वे अपने कार्यों पर घमंड नहीं करते। निश्चय ही, वे उसी प्रकार कहते हैं जिस प्रकार येसु ने सुसमाचार में कहा है, "हम अयोग्य सेवक भर हैं’ हमने अपना कत्तर्व्य मात्र पूरा किया है।" (लूक.17:10) संत पापा ने पूछा कि हम में से कितनों का विश्वास इस प्रकार मज़बूत, विनम्र एवं अत्यधिक अच्छा करनेवाला है।
संत पापा ने अपने संदेश में याद दिलाते हुए कहा कि अक्टूबर का महीना विशेष रुप से मिशन या प्रेरिताई को समर्पित है। हम सभी मिशनरी भाई-बहनों की याद करते हैं जो सुसमचार की उद्घोषणा में चुनौतियों का सामना करते एवं जिन्होंने यथार्थ में सुसमाचार प्रचार के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। जैसा कि संत पौलुस तिमोथी से कहते हैं, "तुम न तो हमारे प्रभु का साक्ष्य देने में लज्जा का अनुभव करो और न मुझ से, जो उनके लिए बंदी हूँ, बल्कि ईश्वर के सामर्थ्य पर भरोसा रखकर तुम मेरे साथ कष्ट सहते रहो।"(2तिम.1:8) तथापि, यह हम सभी को प्रभावित करता है कि हम प्रत्येक जन, अपने प्रतिदिन के जीवन में, ईश्वर की कृपा एवं विश्वास की शक्ति द्वारा ख्रीस्त की साक्षी बन सकते हैं। हमारा विश्वास जो बहुत कमजोर है किन्तु शक्तिशाली है और उसी शक्ति से हम येसु ख्रीस्त का साक्ष्य देने के लिए तैयार रहें। जीवन में ख्रीस्तीय होना ही हमारा साक्ष्य है।
हम किस प्रकार उस शक्ति को प्राप्त करते हैं? ईश्वर से प्रार्थना के द्वारा हम उस शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। प्रार्थना विश्वास की साँस है: प्यार के रिश्ते में भरोसा होता है जिसमें हम संवाद से वंचित नहीं होते। उसी प्रकार प्रार्थना एक वार्तालाप है, ईश्वर के साथ हमारी आत्मा का। संत पापा ने कहा कि अक्तूबर का महीना रोज़री का महीना है तथा परम्परा के अनुसार पहले रविवार को पोम्फेई की माता मरिया के पास प्रार्थना की जाती है जो रोज़री की माता धन्य कुँवारी मरियम है। हम आध्यात्मिक रुप से विश्वास में एक होकर माता मरिया के पास आयें एवं उनके हाथों की रोज़री माला ग्रहण करें। रोज़री हमें प्रार्थना करना सिखाती है, यह हमें विश्वास करना सिखाती है।
इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा समस्त तीर्थयात्रियों पर प्रभु की शाँति का आह्वान कर उन्हें अपना आर्शीवाद दिया।
देवदूत प्रार्थना समाप्त करने के पश्चात उन्होंने कहा,
प्रिय भाइयो एवं बहनो,
कल मोडेना में, देश के गुरुकुल छात्रा रोनाल्डो रीवी धन्य घोषित किये गये जो 14 वर्ष की उम्र में, सन् 1945 ई. में शहीद हो गये थे। पुरोहितों पर अत्याचार के युग में, अपने विश्वास के कारण याजकीय पोशाक पहनने के द्वारा मारे डाले गये थे। उन्होंने युद्ध के बाद ईश्वर के नाम में नरसंहार के विरुद्ध आवाज उठायी थी किन्तु येसु के प्रति प्रेम के कारण उन्हें अपना जीवन निछावर करना पड़ा। संत पापा ने कहा, आज 14 वर्ष की उम्र वाले कितने लोगों के सम्मुख उनका उदाहरण है, एक साहसी छोटा लड़का, जो अच्छी तरह जानता था कि वह कहाँ जा रहा था। उसने अपने हृदय में येसु के प्यार को पहचाना एवं उनके लिए अपनी जान गवाँयी। यह युवाओं के लिए एक बहुत अच्छा उदाहरण।
संत पापा ने गत बृहस्पतिवार को लम्पेदूसा में जहाज दूर्घटना के शिकार लोगों की याद करते हुए उनके लिए मौन प्रार्थना की।
इसके पश्चात् उन्होंने सभी पर्यटकों एवं तीर्थयात्रियों का अभिवादन किया तथा सभी को रविवार की मंगलकामनाएँ अर्पित की।










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