असीसी, इटली शुक्रवार 4 अक्तूबर, 2012(सेदोक, वीआर) सतं पापा फ्रांसिस ने असीसी की
अपनी एक दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के दौरान आयोजित यूखरिस्तीय बलिदान में उपस्थित लोगों
को प्रवचन देते हुए कहा, ख्रीस्तीय होने का अर्थ है येसु के साथ जीवन्त संबंध बनाना जिसका
अभिप्राय है येसु को धारण करना, येसु-सा बन जाना।"
संत फ्राँसिस असीसी ने ऐसा
ही किया था।येसु के साथ उसकी यात्रा तब शुरु हुई जब उन्होंने क्रूसित येसु को एकटक देखा
और येसु को भी खुद को देखने देना स्वीकार किया।"
संत पापा ने कहा. "आज वे भी
उसी क्रूस का आलिंगन करेंगे जिसे संत दमियानो के गिरजाघर में रखा गया है। वहाँ येसु क्रूसित
येसु मरे नहीं हैं। क्रूसित येसु के हाथों से खून बह रहे हैं, पैर और छाती से खून बह
रहा है पर येसु की आँखें खुलीं हैं और वे हमें देखते हैं और हमारे ह्रदय को छू लेते हैं।"
संत पापा ने कहा, "क्रूस मृत्यु, पराजय या असफलता के बारे में नहीं बतलाती पर
बतलाती है एक ऐसी मृत्यु जो जीवन है, जो जीवन देती हैं। यह प्रेम के बारे में बतलाती
है, शब्दधारी ईश्वर के बारे में। एक ऐसे प्रेम के बारे में जो मरता नहीं, पर पाप और मृत्यु
पर विजय प्राप्त करता है।"
संत पापा ने कहा कि संत फ्राँसिस असीसी दूसरी महत्वपूर्ण
बात जिसे हमे दिया वह है, "जो येसु का अनुसरण करता है वह ख्रीस्त की शांति प्राप्त करता
जिसे दुनिया नहीं दे सकती पर सिर्फ़ येसु ही प्रदान कर सकते हैं।"
संत पापा ने
कहा तीसरी बात जिसे संत फ्राँसिस ने हमें दिया है वह है कि उन सबका सम्मान करें जिसकी
ईश्वर ने सृष्टि की है। उन्होंने कहा कि संत फ्राँसिस शांति और सद्भावना संत थे।
संत
पापा ने कहा, "वे शांति शहर असीसी से अपील करते हैं कि हम शांति के संदेशवाहक बनें विनाश
के नहीं। हम दुःखितों पीड़ितों और विलाप करने वालों की आवाज़ सुनें, प्रार्थना करें और
सदा सार्वजनिक हित के लिये कार्ये करें और उन बातों के प्रयासरत रहें जो हमें जोड़ता
है, तोड़ता नहीं।"