2013-10-03 11:21:03

प्रेरक मोतीः सन्त एवाल्द एवं एवाल्द (सन् 695 ई. के शहीद)


वाटिकन सिटी, 03 अक्टूबर सन् 2013:

इंग्लैण्ड के दो काथलिक पुरोहित, एवाल्द और उनके भाई एवाल्द का स्मृति दिवस 03 अक्टूबर को मनाया जाता है। उत्तरी इंगलैण्ड स्थित नोर्थुमब्रिया के एवाल्द भाइयों को इसी नाम से पुकारा जाता था। उनके बालों एवं रूप रंग के आधार पर एवाल्द भाइयों में अन्तर किया जाता था। एक को "गोरे एवाल्द" और दूसरे को "साँवले एवाल्द" नाम से पहचाना जाता था।

आयरलैण्ड में दोनों भाइयों की शिक्षा-दीक्षा सम्पन्न हुई थी। इनके पुरोहिताभिषेक के बाद इन्हें हॉलैण्ड में प्रेरिताई के लिये भेज दिया गया था। दोनों भाई अपनी पवित्रता एवं धर्मनिष्ठता के लिये ख्रीस्तीय समुदाय में विख्यात थे। इतिहासकारों के अनुसार, एवाल्द भाई फ्रीज़लैण्ड के प्रेरित सन्त विलीब्रॉड के रिश्तेदार थे तथा उनके जीवन से बहुत प्रभावित थे। सन्त विलीब्रॉड के पदचिन्हों का अनुसरण कर ही दोनों एवाल्द भाइयों ने जर्मनी के लोगों में सुसमाचार प्रचार का बीड़ा उठाया था। लगभग सन् 690 ई. में वे इस मिशन से संलग्न हो गये। प्राचीन सैक्सन प्रान्त से उन्होंने अपना पुरोहितिक मिशन आरम्भ किया था जो इस समय जर्मनी का वेस्टफालिया प्रान्त है। सैक्सन जाति के लोगों के इतिहासकार बीड बताते हैं कि प्राचीन सैक्सन प्रान्त के राजा एआलदोरमैन ने उन्हें आतिथ्य प्रदान किया था तथा उन्हें अपनी सेना में शामिल करने का वादा किया था। एवाल्द भाइयों का लक्ष्य राजा का मनपरिवर्तन करना था इसीलिये उन्होंने उससे कहा कि वे उनके लिये एक महत्वपूर्ण सन्देश लेकर आये थे।

राजा एआलदोरमैन ने एवाल्द भाइयों की बात मान ली किन्तु उस समय की मूर्तिपूजक सैक्सन जाति के नायकों को इन दो ख्रीस्तीय पुरोहितों की गतिविधियों पर सन्देह हुआ। वे क्रोध एवं ईर्ष्या से भर उठे तथा आपस में उन्होंने निर्णय ले लिया कि एवाल्द भाइयों को मार डाला जाना चाहिये। तदोपरान्त, एक विद्रोह शुरु हो गया तथा दोनों पुरोहितों को गिरफ्तार कर लिया गया। "गोरे एवाल्द को तलवार के वार से तत्काल मौत के घाट उतार दिया गया जबकि "साँवले एवाल्द" को कड़ी यातनाएं प्रदान की गई। उनके शरीर के, एक के बाद एक, टुकड़े किये गये और अन्ततः दोनों एवाल्द भाइयों के शवों को राईन नदी में फेंक दिया गया। बताया जाता है कि यह हादसा जर्मनी के डोर्टमुण्ड ज़िले के आपलेरबेक में 03 अक्टूबर, सन् 695 ई. को हुआ, जहाँ आज दोनों एवाल्द भाइयों को समर्पित गिरजाघर विद्यमान है। जर्मनी के ख्रीस्तीय सूत्रों के अनुसार डोर्टमुण्ड आपलेरबेक में एवाल्द काथलिक पुरोहित भाइयों का स्मारक है जहाँ कई चमत्कार हुए हैं तथा कई लोगों ने उनकी मध्यस्थता से चंगाई प्राप्त की है। काथलिक एनसाईक्लोपीडिया में यह भी बताया गया है कि दोनों एवाल्द भाइयों के शव राईन नदी से चालीस मील दूर बहकर उस स्थल तक पहुँचे थे जहाँ वे अन्य पुरोहितों के साथ निवास करते थे। उनके साथी पुरोहितों ने एक दिन एक प्रकाश स्तम्भ देखा और उसकी ओर आगे बढ़े जहाँ दोनों एवाल्द भाइयों के शवों को पाया। एवाल्द के साथी एवं मठवासी पुरोहित तिलमोन को दिव्य दर्शन प्राप्त हुआ था जिसमें उनसे एवाल्द भाइयों के शवों के बारे में बताया गया था। मठवासी पुरोहित तिलमोन ने ही बाद में शहीद एवाल्द भाइयों के शवों को विधिवत दफनाया था। कुछ समय बाद एवाल्द भाइयों के समाधि स्थल से जलस्रोत भी प्रस्फुटित हुआ और तब से लोग एवाल्द भाइयों से प्रार्थना करने लगे थे। डोर्टमुण्ड से उनके पवित्र अवशेषों को कोलोन तथा म्यूनस्टर के महागिरजाघरों में भी ले जाया गया था। रोमी शहादतनाम में एवाल्द भाइयों को जर्मनी के वेस्टफालिया प्रान्त के संरक्षक घोषित किया गया है जिनका पर्व, 03 अक्टूबर को, मनाया जाता है।

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