येरेमियस 38,4-6,8-10 इब्रानियों के नाम 12,1-4 संत लूकस 12, 49-57 जस्टिन तिर्की,ये.स.
सरजु
की कहानी मित्रो, आज आपलोगों को सरजु की कहानी बतलाता हूँ। एक गाँव में एक हिन्दु
रहा करता था जिसका नाम था सरजु। वह जादू दिखला कर अपना जीवन व्यतीत करता था उसके कई ईसाई
मित्र थे और उनसे उसने येसु के बारे में सुना था। उसे जानकारी प्राप्त हो गयी थी कि येसु
जब जीवित थे तो उन्होंने कई चमत्कार दिखलाये थे। येसु ने भूखों को रोटी खिलायी थी, प्यासों
को पानी और रोगियों को चंगा किया था।येसु के जीवन से वह बहुत प्रभावित था। जब वह जादू
दिखाता तो लोग भी उसके कार्यों से मंत्रमुग्ध हो जाते थे और उसकी वाहवाही करने लगते थे।
सरजु को लगा कि वह भी ईसा मसीह के समान ही कार्य करने लगा है। क्यों न वह भी ईसाई बन
जाये। उसने यह बात अपने ईसाई मित्र से कही। ईसाई मित्र ने कहा कि ईसाई बनने के लिये सिर्फ
जादू दिखाना या कोई चमत्कार कर लेना काफी नहीं है उसे ईसा मसीह के बारे में कुछ और जानना
चाहिये। और तब सोच समझ कर ईसाई बनना चाहिये। ईसाई मित्र ने उसे पड़ोस के एक फादर से मुलाक़ात
कराने के लिये आमंत्रित किया। दोनों चल पड़े। रास्ते में कुछ भूखे लोग मिले और सरजु ने
कुछ ऐसा किया कि उसकी थैली में रोटी आ गये उसने भूखों को रोटी दी और वे तृत्प हो गये।
फिर कुछ आग जाने पर कुछ रोगी मिले। सरजु ने उनके ऊपर हाथ रखे और कुछ खाने को दिये और
वे भी चंगे हो गये। सरजु ने कहा कि देखो मैं तो वह सबकुछ कर सकता हूँ जो येसु किया करते
थे मैं ईसाई बन सकता हूँ। कुछ देर बाद वे फादर के आवास में पहुँचे। सरजु ने फादर से वहीं
बात दुहरायी। फादर मैं वो सबकुछ कर सकता हूँ जो येसु किया करते थे इसलिये मैं भी ईसाई
बनना चाहता हूँ ।फादर ने उसकी बात ध्यान से सुना और कहा कि मैं आपकी के कामों और ईसाई
बनने की इच्छा से प्रसन्न हूँ। फिर भी मुझे एक सवाल पूछना है। सरजु ने कहा आप पूछ सकते
हैं फादर जी। फादर ने क्रूस पर लटके येसु को दिखा कर कहा उसे पहचानते हो। थोड़ा-थोड़ा
फादर। फादर ने कहा यही है येसु मसीह जिसे लोगों ने उसके चमत्कारों के लिये सूली पर ठोंक
दिया और उनकी मृत्यु हो गयी। यही है ख्रीस्तीय जीवन का सार। दूसरों की भलाई करना, दूसरों
की सेवा करना।सेवा करते-करते अपनी जान भी गँवा देना। अगर तुम्हें यह सब मंज़ूर है तो
तुम ख्रीस्तीय बन सकते तो । तब उस जादुगर सरजु ने यह भी कह डाला। मैं येसु के समान मूर्ख
नहीं हूँ। मैं दूसरों की सेवा करुँ और दुःख भी उठाउँ, अपमानित भी होऊँ। यह संभव नहीं
है। और वह वहाँ से चला गया।
संत लूकस, 12, 49-57 मित्रो, हम पूजन विधि पंचांग
के वर्ष ‘स’ के 20वें रविवार के लिये प्रस्तावित सुसमाचार पाठ के आधार पर मनन-चिन्तन
कर रहे हैं।आइये हम लूकस रचित सुसमाचार के 12वें अध्याय के 49 से 57 पदों को सुनें। प्रभु
हमें बतला रहें कि इस धरा पर आने का उनका क्या लक्ष्य है और उनके संदेश का लोगों के
जीवन पर क्या असर होगा। 49) ''मैं पृथ्वी पर आग ले कर आया हूँ और मेरी कितनी अभिलाषा
है कि यह अभी धधक उठे! 50) मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं
कितना व्याकुल हूँ! 51) ''क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति ले कर आया
हूँ? मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट डालने आया हूँ। 52) क्योंकि अब से
यदि एक घर में पाँच व्यक्ति होंगे, तो उन में फूट होगी। तीन दो के विरुद्ध होंगे और दो
तीन के विरुद्ध। 53) पिता अपने पुत्र के विरुद्ध और पुत्र अपने पिता के विरुद्व।
माता अपनी पुत्री के विरुद्ध होगी और पुत्री अपनी माता के विरुद्ध। सास अपनी बहू के विरुद्ध
होगी और बहू अपनी सास के विरुद्ध।'' 54) ईसा ने लोगों से कहा, ''यदि तुम पश्चिम से
बादल उमड़ते देखते हो, तो तुरन्त कहते हो, 'वर्षा आ रही है और ऐसा ही होता है, 55)
जब दक्षिण की हवा चलती है, तो कहते हो, 'लू चलेगी' और ऐसा ही होता है। 56) ढोंगियों!
यदि तुम आकाश और पृथ्वी की सूरत पहचान सकते हो, तो इस समय के लक्षण क्यों नहीं पहचानते?
57) ''तुम स्वयं क्यों नहीं विचार करते कि उचित क्या है? 58) जब तुम अपने मुद्यई
के साथ कचहरी जा रहे हो, तो रास्ते में ही उस से समझौता करने की चेष्टा करो। कहीं ऐसा
न हो कि वह तुम्हें न्यायकर्ता के पास खींच ले जाये और न्यायकर्ता तुम्हें प्यादे के
हवाले कर दे और प्यादा तुम्हें बन्दीगृह में डाल दे। 59) मैं तुम से कहता हूँ, जब
तक कौड़ी-कौड़ी न चुका दोगे, तब तक वहाँ से नहीं निकल पाओगे।''
मित्रो, मेरा पूरा
विश्वास है कि आपने प्रभु के दिव्य वचनों को ध्यान से सुना और इसके द्वारा आपको और आपके
परिवार के सब सदस्यों को आध्यात्मिक लाभ हुए हैं।
मित्रो, मैं सोचता हूँ कि आप
प्रभु के वचनों को सुनकर निश्चय ही परेशान हो रहे होंगे कि प्रभु आज इतने कठोर क्यों
हो गये हैं। मैंने भी चिन्तन के आरंभ में ऐसा ही सोचा कि प्रभु दयालु नहीं हैं पर अत्यंत
कठोर हैं और हमें शांति के बदले फूट की बात कर रहे हैं। पर मित्रो अगर हम प्रभु के जीवन
पर उनके एक-एक वचन पर विचार करें तो पायेंगे कि प्रभु तीन बातों को बतलाना चाहते हैं। पहली
बात कि वे एक नबी बन कर सत्य को हमारे सम्मुख रख रहे हैं। दूसरी बात हमें सत्य के प्रति
जागरुक बनाने का साहस दिखाना।और तीसरी बात प्रभु के मिशन को आगे बढ़ाना अर्थात् खुद ही
नबी बनना।
सच्ची बातें मित्रो, प्रभु ने आज जिन बातों को हमारे समक्ष रखा है
उन्हें नबी लोगों के सम्मुख रखा करते थे। उनके वचनों में सच्चाई होती थी प्रभु की ओर
से एक चेतावनी होती थी और प्रभु की लौटने का एक आमंत्रण होता था। पर कई बार लोग उनकी
बातों को नहीं सुनते थे और कई बार तो उन्हें सत्य बोलने की कीमत अपने प्राण देकर चुकाना
पड़ता था। प्रभु के वचन में जीवन की वह सच्चाई है जिसे हर व्यक्ति स्वीकार नहीं करता।
येसु के वचनों में जो माँग है उसे हर व्यक्ति पूरा नहीं करना चाहता। येसु के वचनों में
सेवा, प्रेम, सद्भाव, और सहयोग करने का जो आह्वान है उसे हर व्यक्ति पूरा नहीं करना चाहता।
ऐसी बात आज की दुनिया के लोगों के साथ सिर्फ़ नहीं है पर जब येसु ने अपना जीवन जीया तब
ही येसु की बातों को लोगों ने ठुकरा दिया। एक ही परिवार के कुछ लोगों ने उन्हें स्वीकार
किया और कुछ ने उन्हें दुत्कार दिया। येसु के भले अच्छे और सच्चे जीवन के बावजूद लोगों
ने उन्हें सूली पर चढ़ा दिया। इसलिये येसु को अच्छी तरह से मालूम है कि उनके वचन सबके
लिये शांति के संदेश नहीं लाते। और इसी लिये आज हमसे इस बात को बतलाना चाहते हैं कि प्रभु
के वचन मधु के रस के समान मीठे नहीं होते। सच पूछा जाये तो प्रभु के वचन दोधार वाले तलवार
के समान होते हैं। वे हमसे बलिदान की माँग करते हैं। हमें बुराई से दूर चलने की सलाह
देते हैं। हमें अच्छी संगति में चलने को कहते हैं। हमें बुरी लतों से दूर होने को कहते
हैं जो कई बार कर्णप्रिय नहीं पर कर्णकटु लगते हैं। इसीलिये प्रभु ने कहा कि वे शांति
नहीं पर फूट लेकर आये हैं।
सत्य बोलने का साहस मित्रो, प्रभु के बचनों से
दूसरी सीख या प्रेरणा हमें मिलती है वह है सच्ची बातों के प्रति खुद ही जागरुक होना और
दूसरों को भी बताने का साहस करना। हमने कई बार यह अनुभव किया है कि हम सच्ची बातें जानते
हैं और यह भी जानते हैं कि हमारे परिवार के सदस्य या मित्र उसे सुनना पसन्द नहीं करेंगे
तो हम उन्हें बतलाने से कतराते हैं।हम सोचते हैं कि इससे हमारी मित्रता चली जायेगी। हम
बुराई को बर्दाश्त कर लेते हैं दोस्ती की ख़ातिर। ऐसी दोस्ती भी क्या दोस्ती जो हमें
बुराई से न बचाये। सच्ची दोस्ती तो हम उसे कहते हैं जो हमें अच्छा सच्चा और भला बनाये
चाहे इसके लिये उसे कोई कटु ही शब्द ही कहना क्यों न पड़े।
मित्रो, हमें इस
बात को जानने की ज़रूरत है कि ईशवचन को हर व्यक्ति स्वीकार नहीं करता है। सिद्धांतपूर्ण
जीवन की लोग सराहना करते हैं पर उसका अनुकरण नहीं करना चाहते। अच्छी, भली और सच्ची बातों
को लोग सुन तो लेते हैं पर यह ज़रूरी नहीं कि वे इसका पालन करें। कई लोग तो इन बातों
की हँसी उड़ाते या उसके अनुसार जीना मूर्खता समझते हैं। मित्रो, इन सबकुछ को जानने के
बाद भी येसु ने लोगों को ऐसी बातें बोलने का साहस किया ताकि मानव का कल्याण हो। सच्ची
बातें कड़वी होतीं हैं और कई बार इससे हमारे दुश्मन पैदा हो जाते हैं। मित्रो प्रभु
के वचनों से हम जो तीसरी बात सीखते हैं वह है कि हम भी येसु के समान बने। सत्य बोलने
का साहस करें ताकि हमारा जीवन सबके वास्तविक हित में हो सके। वास्तविक हित कहने का तात्पर्य
है हमारे वचनों से व्यक्ति को लगे कि किसी ने उसे झकझोर दिया है पर उसे सुनकर वह प्रभु
की लौट आये।
नबी बनने का आमंत्रण मित्रो, हमारा जीवन एक नबी का जीवन है।
हम बुलाये गये हैं ताकि हम प्रभु के प्रवक्ता बने, प्रभु का वचन बोलें और उसी के अनुसार
जीवन जीयें। प्रभु के वचनों को बोलने के लिये यह ज़रूरी है कि हम प्रभु के साथ व्यक्तिगत
संबंध गाढ़ा करें,हर निर्णय में उसकी आवाज़ सुनें और उन बातों को बोलने का साहस करें
और उसी के अनुसार जीवन भी व्यतीत करें तब ही हम येसु के सच्चे शिष्य हैं। तब ही हम सेवा,
प्रेम, न्याय और सद्भावना के सच्चे समर्थक है सरजु नामक उस जादूगर के समान नहीं जो कुछेक
हाथों का खेल दिखाने के बाद सोचता था कि वह येसु के समान है पर जब फादर ने उससे क्रूस
के बलिदान की बात कही तो वह इसे मूर्खतापूर्ण कहा। कई बार येसु के वचनों के अनुसार चलना
और जीना मूर्खतापूर्ण लगे पर ईश्वर की दृष्टि में यह निश्चिय ही महान है, प्रशंसा के
योग्य है।