2013-09-20 12:44:01

प्रेरक मोतीः विल्लानुएवा के सन्त थॉमस (1488-1555)


वाटिकन सिटी, 22 सितम्बर सन् 2013:

विल्लानुएवा के सन्त थॉमस, सन्त अगस्टीन को समर्पित धर्मसमाज के सदस्य तथा 16 वीं शताब्दी के एक धर्माध्यक्ष थे। स्पेन में कास्तीले स्थित फूएनतेल्लाना में विल्लानुएवा के थॉमस का जन्म, सन् 1488 ई. में हुआ था। वे चक्की चलानेवाले एक श्रमिक के पुत्र थे। अकाला के विश्वविद्यालय से उन्होंने धर्मशास्त्र में स्नातक की डिगरी प्राप्त की थी तथा 26 वर्ष की आयु में ही प्राध्यपक बन गये थे। सन् 1516 ई. में, सालामान्का विश्वविद्यालय में उन्हें दर्शन शास्त्र विभाग के प्रमुख रूप में बुलाया गया था किन्तु इस निमंत्रण को अस्वीकार करते हुए वे सन्त अगस्टीन को समर्पित धर्मसमाज में भर्ती हो गये थे।

सन् 1520 ई. में, थॉमस का पुरोहिताभिषेक हुआ जिसके बाद उन्होंने सालामान्का, बूरजोज़ तथा वालादोलिद स्थित अगस्टीन धर्मसमाजी मठ में अपनी सेवाएँ अर्पित कीं। आन्दालूसिया तथा कास्तिले में वे धर्मसमाज के प्रान्ताध्यक्ष भी नियुक्त किये गये थे तथा सन् 1519 से सन् 1556 ई. तक पवित्र रोमी साम्राज्य के सम्राट चार्ल्स पंचम के दरबार में महापुरोहित भी रहे थे। जब कास्तिले में वे अगस्टीन धर्मसमाज को प्रान्ताध्यक्ष थे तब उन्होंने धर्मसमाज के प्रथम मिशनरी दल को नवीन विश्व में प्रेरिताई हेतु प्रेषित किया था। इन मिशनरियों ने आधुनिक मेक्सिको में ख्रीस्तीय धर्म का प्रचार किया।

सन् 1544 ई. में विल्लानुएवा के थॉमस को ग्रानादा का महाधर्माध्यक्ष नियुक्त किया गया था। लगभग सौ वर्षों से ग्रानादा की धर्माध्यक्षीय पीठ खाली थी इसलिये जब थॉमस को यहाँ का महाधर्माध्यक्ष नियुक्त किया गया तो उन्हें महाधर्मप्रान्त का कई तरह जीर्णोद्धार किया तथा महाधर्मप्रान्त के भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन को पोषित करने हेतु कई सुधारों एवं योजनाओं को अनजाम दिया। निर्धन लोगों के प्रति अपनी उदारता के लिये भी महाधर्माध्यक्ष थॉमस विल्लानुएवा विख्यात थे जिसके लिये उन्हें ग़रीबों दानाध्यक्ष नाम से भी पुकारा जाता था। निर्धन बच्चों के उन्होंने कई स्कूल खोले तथा मूरों के बीच प्रेरिताई हेतु पुरोहितों को भेजा। इसके अतिरिक्त, थॉमस विल्लानुएवा त्याग तपस्या का जीवन यापन किया करते थे। यद्यपि, ट्रेन्ट की महासभा में महाधर्माध्यक्ष थॉमस विल्लानुएवा उपस्थित नहीं हुए थे तथापि, सम्पूर्ण स्पेन में उन्होंने ट्रेन्ट महासभा के सुधारों को लागू करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

चिन्तनः सतत् प्रार्थना, त्याग और तपस्या तथा निर्धनों की सेवा द्वारा हम सुसमाचार के साक्षी बनें।








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