2013-09-13 12:25:31

केप टाऊनः दुनिया के भोजन का एक तिहाई प्रतिवर्ष बर्बाद: संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट


केप टाऊन, 13 सितम्बर सन् 2013 (ऊका समाचार): प्रिटोरिया के केप टाऊन में 12 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र संघ की सूचना एजेन्सी "यूनिक प्रिटोरिया" द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष, विश्व के भोजन का एक तिहाई अर्थात् लगभग 1.3 अरब टन भोजन बर्बाद हो जाता है। रिपोर्ट में कहा गया कि बर्बाद होनेवाले भोजन से साढ़े सात सौ अरब अमरीकी डॉलरों का आर्थिक नुकसान होता है।
"खाद्य बर्बादी पदचिह्न: प्राकृतिक संसाधनों पर प्रभाव" शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट पर्यावरण की दृष्टि से वैश्विक खाद्य अपव्यय के प्रभावों का विश्लेषण करने हेतु किया गया पहला अध्ययन है।
रिपोर्ट में, भोजन के अपव्यय से जलवायु, पानी, भूमि के उपयोग और जैव विविधता पर पड़नेवाले दुष्परिणामों पर विशेष ध्यान दिया गया।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों में इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया गया कि उत्पादित भोजन जो खाया नहीं जाता है उससे हर साल रूस की वोल्गा नदी के वार्षिक प्रवाह जितना पानी बर्बाद हो जाता है तथा यह वायुमंडल में 3.3 अरब टन ग्रीन हाउस गैसों को जोड़ने के लिए भी ज़िम्मेदार है।
इसके अतिरिक्त, प्रतिवर्ष, 1.4 अरब हेक्टेयर भूमि अर्थात् विश्व की 28 प्रतिशत कृषि भूमि बर्बाद किये जानेवाले खाद्य पदार्थों के उत्पादन में लगाई जाती है।
रोम स्थित खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के महानिदेशक जोस ग्रैजियानो दा सिल्वा का कहना है कि - किसानों और मछुआरों, खाद्य कम्पनियों एवं सुपरमार्केटों, स्थानीय और राष्ट्रीय सरकारों, व्यक्तिगत उपभोक्ताओं - सभी को भोजन के अपव्यय रोकने के लिए खाद्य श्रृंखला की हर कड़ी में परिवर्तन करना चाहिये तथा जब ऐसा सम्भव न हो तब खाद्य पदार्थों के रीसाईकिल का प्रयास करना चाहिये ताकि इसका फिर से उपयोग हो सके।
उन्होंने कहा कि ऐसे विश्व में जहाँ 87 करोड़ लोग प्रतिदिन भूखे रह जाते हैं वहाँ, सिर्फ अनुचित गतिविधियों के कारण, विश्व के एक तिहाई भोजन को बर्बाद नहीं होने दिया जा सकता है।
रिपोर्ट, क्षेत्रों के अनुसार, खाद्य अपशिष्ट का उदाहरण देती हैः एशिया में अनाज, विशेष रूप से, चावल बेकार हो जाना-एक बड़ी समस्या है जिससे कार्बन उत्सर्जन होता तथा पानी और भूमि के उपयोग पर दुष्प्रभाव पड़ते हैं। फिर एशिया, लातीनी अमरीका एवं यूरोप में फलों की बर्बादी के कारण पानी का अपव्यय होता है तो दूसरी ओर, औद्योगिक एशिया, यूरोप, दक्षिण एशिया एवं दक्षिण पूर्वी एशिया में सब्ज़ियों की बर्बादी के फलस्वरूप कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि होती है।
इस बीच, रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि लातीनी अमरीका को छोड़कर सभी उच्च आय वाले क्षेत्र मांस के अपव्यय के 67 प्रतिशत के लिये ज़िम्मेदार हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघीय पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के कार्यकारी निदेशक आखिम स्टाईनर ने राष्ट्रों का आह्वान किया है कि वे "सोचें, खायें और बचायें" शीर्षक से यूएनईपी द्वारा आरम्भ संयुक्त अभियान में शामिल होकर भोजन की बर्बादी को रोके।









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