वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 12 सितम्बर 2013 (सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने 11 सितम्बर
को "ला रिपुबलिका" समाचार पत्र के संस्थापक यूजेनियो स्कालफरी को, उनके कई लेखों में
विश्वास एवं दुनियादारी संबंधी कुछ प्रश्नों के जवाब में एक पत्र लिखा। चार पन्नों
का यह पत्र बुधवार को इताली दैनिक "लारिपुबलिका" में प्रकाशित किया गया। पत्र में संत
पापा ने स्कालफरी एवं गैर विश्वासियों को संबोधित किया है तथा विश्वास को उन्होंने किस
प्रकार खुद अनुभव किया उसका निचोड़ करते हुए बताया है कि कलीसिया के बिना वे येसु से
मुलाकात नहीं कर पाते, "कलीसिया में विश्वास को व्यक्तिगत रुप से जीने के द्वारा ही मैं
आपके प्रश्नों को सहजता से सुन सकता हूँ तथा आपके साथ ढ़ूँढ़ते हुए ऐसे रास्ते पर आ सकता
हूँ जिसमें से होकर हम एक साथ आगे बढ़ सकें।" येसु में विश्वास नहीं करने वालों से
कलीसिया क्या कहती है तथा क्या ख्रीस्तीयों का ईश्वर उन लोगों को क्षमा करता है जो विश्वास
नहीं करते एवं विश्वास की खोज नहीं करते? इस प्रश्न के उत्तर में संत पापा ने लिखा, "यह
आधारभूत सिद्धान्त है कि ईश्वर की करूणा की कोई सीमा नहीं है यदि हम उदार एवं पश्चतापी
हृदय से उनकी ओर लौटें," उन्होंने कहा, "सच्चा प्रश्न यह है कि जो ईश्वर में विश्वास
नहीं करते क्या वे अपने अंतःकरण की आवाज सुनते हैं। ईश्वर पर विश्वास नहीं करने वालों
के द्वारा भी पाप होता है जब वे अपने अंतःकरण के विरुद्ध काम करते हैं। अंतःकरण को सुनने
एवं उसका पालन करने का अर्थ है अच्छाई एवं बुराई को समझकर निर्णय लेना क्योंकि इसी पर
निर्भर रहते हैं हमारे अच्छे एवं बुरे कार्य।" "पूर्ण सत्य पर विश्वास के संबंध में
संत पापा ने लिखा, "ख्रीस्तीय विश्वास के अनुसार ‘सत्य’ ईश्वर का प्रेम है जो येसु ख्रीस्त
द्वारा प्रकाशित हुआ है। अतः सत्य एक संबंध है। हम में से प्रत्येक सत्य को प्राप्त करते
हैं तथा जहाँ हम वास करते हैं उस इतिहास, संस्कृति और परिस्थिति के अनुसार उसे व्यक्त
करते हैं।" अंतिम सवाल, "पृथ्वी से मानव के लुप्त हो जाने के पश्चात् भी क्या ईश्वर
की कल्पना करने की क्षमता रह पायेगी? के उत्तर में संत पापा ने कहा, "मानव की महानता
इसमें है कि उसमें ईश्वर को याद करने की क्षमता है। इसका अर्थ है कि वह उन्हें
जानने का अनुभव एवं उसके रिश्ते का प्रत्युत्तर देने के काबिल है किन्तु संबंध दो वास्तविकताओं
के बीच संभव है। ईश्वर का अस्तित्व हमारे विचार पर निर्भर नहीं करता। ख्रीस्तीय विश्वास
के अनुसार हम जानते हैं कि संसार का एक दिन अंत होना निश्चित है। तब कोई मानव प्राणी
जीवित नहीं रहेगा, यह किस प्रकार होगा उसे कोई नहीं जानता।" पत्र के अंत में संत
पापा ने समाज के धार्मिक एवं राजनैतिक क्षेत्रों की विशिष्ठ भूमिकाओं को स्पष्ट किया
और कहा कि कलीसिया सुसमाचार उद्घघोषणा द्वारा सभी मुनष्यों तक ईश्वरीय प्रेम एवं करूणा
के प्रसार के लिए बुलाई गई है जबकि राजनीतिज्ञों का दायित्व समाज में न्याय, एकात्मकता,
कानून एवं शांति स्थापित करना है।