शांति के लिये प्रार्थना और उपवास कलीसिया का शांति के प्रति समर्पण का चिह्न
वाटिकन सिटी, सोमवार 9 सितंबर, 2013 (सीएनए) संत पापा फ्राँसिस ने शांति के लिये प्रार्थना
सभा का आयोजन कर कलीसिया और पूर्व संत पापाओं द्वारा किये जा रहे शांति प्रयास की परंपरा
को आगे बढ़ाया है।
उक्त बात की जानकारी देते हुए घटनाओं की समीक्षा करने वाली
इटली की एक पत्रिका ‘ला चिवित्ता कत्तोलिका’ के संपादक जेस्विट फादर फ्राँचेस्को ओकेत्ता
ने कहा कि सन् 1800 से ही संत पापा पीयुष नवें ने शांति की संस्कृति का प्रचार किया और
अन्तर कलीसियाई वार्ता को प्रोत्साहन दिया।
उन्होंने बतलाया कि यह एक ऐसा कार्यकाल
था जब काथलिकों और प्रोटेस्टंटो ने संयुक्त रूप से एक स्कूल की नींव डाली ताकि अन्तरराष्ट्रीय
कानून का अध्ययन किया जा सके और इस संबंध में उचित समाधान हो सके। उन्होंने यह भी बतलाया
कि संत पापा पीय़ुष नवें के कार्यकाल से अबतक तक में शांति के ईशशास्त्रीय पहलुओं बहुत
परिवर्तन आये है।
संत पापा लेओ अष्टम और उनके उत्तरिधिकारी, संत पापा पीय़ुष नवें
ने शांति के लिये हेग में आयोजित शिखर सम्मेलन हिस्सा लिया था जिसमें ‘राजनीतिक शांति’
की बात कही गयी थी।
बाद में संत पापा बनेदिक्त पंद्रहवें ने 1 अगस्त सन् 1819
को अपनी विशेष शांति योजना प्रस्तुत की थी जिसमें उन्होंने युद्ध को "अर्थहीन हत्या"
कहा था।
उधर द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व 24 अगस्त सन् 1939 ईस्वी पीय़ुष बारहवें
ने वाटिकन रेडियो से शांति की अपील करते हुए विश्व को अपना संदेश दिया था।
सच
पूछा जाये तो शांति और न्याय के लिये बनी परमधर्मपीठीय परिषद के सचिव मोनसिन्योर मारियों
तोसा के अनुसार कलीसिया की सामाजिक शिक्षा का यही आधार था।
पीयुष बारहवें ने
कहा था "शांति के साथ हम कुछ भी नहीं खोते हैं और युद्ध में हम सब कुछ खो सकते हैं।"
संत पापा फ्राँसिस ने शांति के लिये प्रार्थना और उपवास का आह्वान कर संत पापा
धन्य जोन पौल द्वितीय के प्रयासों को आग बढ़ाया है।
धन्य जोन पौल द्वितीय ने
सन 1983 और 2003 ईस्वी के बीच पाँच बार शांति के लिये प्रार्थना और उपवास का आह्वान किया
था। 27 अक्तूबर सन् 1986 ईस्वी में इटली के असीसी में सम्पन्न अंतरधार्मिक वार्ता शांति
प्रयास के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक घटना थी।