एक ख्रीस्तीय को अपने विवाह को आनन्द और निष्ठा के साथ जीना चाहिए
वाटिकन सिटी, शनिवार, 7 सितम्बर 2013 (सेदोक): कलीसिया विवाह संस्कार की रक्षा करती तथा
इसे ‘महान संस्कार’ मानती है क्योंकि यह ख्रीस्त एवं कलीसिया के बीच परस्पर संबंध की
छवि है, यह बात संत पापा फ्राँसिस ने कही। उन्होंने शुक्रवार 6 सितम्बर को वाटिकन
स्थित प्रेरितिक आवास संत मार्था में पवित्र मिस्सा अर्पित किया। पवित्र मिस्सा के दौरान,
उन्होंने सुसमाचार के उस पाठ पर चिंतन प्रस्तुत किया जहाँ येसु सदुकियों एवं फ़रीसियों
से कहते हैं कि बराती तब तक उपवास नहीं कर सकते जब तक दुल्हा उनके साथ हो। संत पापा
ने कहा, "एक ख्रीस्तीय को अपने विवाह को आनन्द और निष्ठा के साथ जीना चाहिए।" उन्होंने
कहा कि एक ख्रीस्तीय मूलतः आनन्द से परिपूर्ण व्यक्ति है। इसी लिए सुसमाचार में दाखरस
की बात कही गई है। जब येसु दाखरस के बारे बोलते हैं तब मुझे काना के विवाह की याद आती
है जिसके लिए येसु ने चमत्कार भी किया, जिसमें दाखरस घट जाने पर माता मरिया ने इसकी आवश्यकता
महसूस की, क्योंकि दाखरस के बिना भोज संभव नहीं है। संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय जीवन
भी ऐसा है। ख्रीस्तीय जीवन में यह आनन्द का मनोभाव है, एक आनन्दमय हृदय का। तथापि
संत पापा ने स्वीकार किया कि "जीवन में क्रूस और पीड़ा के अवसर आते हैं किन्तु इसके बावजूद
गहन शांति का आनन्द है क्योंकि ख्रीस्तीय जीवन को एक उत्सव रुप में जीना है। ख्रीस्त
एवं कलीसिया के बीच एक शुभ मिलन के समान।" संत पापा ने कहा कि येसु का आग्रह है कि
हम उन्हें एकमात्र दुल्हा स्वीकार करें। वे हमें सुसमाचार की नवीनता को स्वीकार करने
के लिए निमंत्रण देते हैं। उन्होंने कहा कि हम सुसमाचार की नवीनता अर्थात नई दाखरस को
दरकिनार कर पाप के प्रलोभन में पड़ सकते हैं तथापि पुराने जार नई दाखरस नहीं रख सकते
वैसे पापमय या पुरानी आदतें नवीन सुसमाचार को ग्रहण नहीं कर सकती। यही सुसमाचार की विलक्षणता
है। येसु दुल्हे हैं जो कलीसिया से विवाह रचते, उसे प्यार करते तथा उसके लिए जीवन
अर्पित कर देते हैं।