रोज़ालिया का जन्म इटली के सिसली स्थित पालेरमो
में, सन् 1130 ई. में, हुआ था। वे, "गुलाबों के स्वामी" सिनीबाल्द तथा क्विसक्वीना की
सुपुत्री थी जो महान चार्लमागने के वंशज थे। बाल्यकाल से ही रोज़ालिया का मन प्रार्थनाओं
एवं भले कर्मों रमा रहता था। युवावस्था में प्रवेश करते ही उन्होंने समस्त सांसारिक माया
मोह का परित्याग करने का मन बना लिया था जिसके लिये वे अपना घरबार छोड़कर पहाड़ों में
चली गई थी। सिसली द्वीप के माऊन्ट पेलेग्रीनों में उन्होंने एक गुफा को अपना घर बना लिया
था और वहीं रहने लगी थी। उनकी गुफा की दीवार पर लिखा था, "मैं, रोज़ालिया, "गुलाबों के
स्वामी" सिनीबाल्द तथा क्विसक्वीना की बेटी ने, प्रभु येसु ख्रीस्त के प्रति प्रेम के
कारण, इस गुफा में आजीवन रहने का प्रण किया है।"
माऊन्ट पेलेग्रीनों की गुफा में
भिक्षुणी रोज़ालिया ने घोर तपस्या की तथा प्रार्थनाओं में ईश्वर के साथ सदैव सम्बन्ध
बनाये रखा। सन् 1166 ई. में, इसी गुफा में रोज़ालिया का निधन हो गया था। अपनी मृत्यु
के समय वे अकेली थी और कई शताब्दियों तक उनके निधन की बात किसी को पता नहीं चल पाई। किंवदन्ती
है कि सन् 1624 ई. में पालेरमो में महामारी का प्रकोप फैला। इस भयंकर प्लेग से पालेरमो
के कई परिवार प्रभावित हुए तब एकाएक युवती रोज़ालिया प्रकट हुई। सर्वप्रथम वे एक बीमार
महिला को और फिर एक शिकारी को दिखाई दी। शिकारी को रोज़ालिया ने संकेत दिया कि वह माऊन्ट
पेलेग्रीनो जाये तथा वहाँ से तपस्विनी रोज़ालिया की अस्थियों को बटोर कर ले आये। सम्पूर्ण
पालेरमो शहर में इन अस्थियों सहित एक जुलूस निकालने का भी उन्होंने आदेश दिया। शिकारी
ने वैसा ही किया और चमत्कारवश पालेरमो से प्लेग महामारी ग़ायब हो गई। इसके बाद से रोज़ालिया
पालेरमो की संरक्षिका एवं सन्त घोषित कर दी गई। सन्त रोज़ालिया पर्व 04 सितम्बर को मनाया
जाता है।
चिन्तनः सत्य एवं ईश्वर की खोज ही हमारे जीवन के समस्त कार्यों
का लक्ष्य बने।