सन्त जॉन यूड़्स का जन्म फ्राँस के नोरमाण्डी
प्रान्त के री गाँव में हुआ था। वे एक कृषक परिवार से थे। 14 वर्ष की आयु में, जॉन, केन
में, येसु धर्मसमाज द्वारा संचालित स्कूल में भर्ती हुए थे। माता-पिता उनका विवाह रचाना
चाहते थे किन्तु उनकी इच्छा के विरुद्ध जॉन, सन् 1623 ई. में, ऑरेटरी ऑफ फ्राँस नामक
धर्मसमाज में भर्ती हो गये। धर्मसमाज में नवदीक्षार्थी काल समाप्त करने के उपरान्त उन्होंने
पेरिस तथा ऑबरविलर्स में दर्शन एवं ईशशास्त्र का अध्ययन किया तथा सन् 1625 ई. में पुरोहित
अभिषिक्त कर दिये गये।
सन् 1625 ई. में सम्पूर्ण नोरमाण्डी, प्लेग महामारी की
चपेट में आ गया तथा युवा पुरोहित जॉन यूड्स प्लेग रोगियों की सेवा में जुट गये। तदोपरान्त,
लगभग दस वर्षों तक फादर जॉन यूड्स ने बीमारों एवं परित्यक्तों की सेवा के लिये कई आश्रमों
की स्थापना की। लोगों में वे एक महान प्रचारक एवं प्रभावशाली प्रवचनकर्त्ता रूप में भी
विख्यात हो गये थे। काथलिक कलीसिया में उठे यानसेनवाद अभियान के विरोधी रूप में भी फादर
जॉन यूड्स ने पर्याप्त ख्याति प्राप्त की। समाज द्वारा कुलटा कहलानेवाली महिलाओं में
उन्होंने अपनी प्रेरिताई की तथा उन्हें पुनः काथलिक कलीसिया की छत्रछाया में लाने का
प्रयास किया। मेडलीन लामी नामक महिला के साथ मिलकर उन्होंने केन में इन महिलाओं के लिये
एक शरणस्थल की भी स्थापना की।
सन् 1643 ई. में पुरोहित फादर जॉन यूड्स ने ऑरेटोरियन
धर्मसमाज का परित्याग कर दिया तथा केन में ही येसु एवं मरियम को समर्पित एक अलग एवं नवीन
धर्मसंघ की स्थापना कर डाली। इस धर्मसंघ को यूडिस्ट धर्मसंघ भी कहा जाता है। इस धर्मसंघ
के पुरोहित धर्मसमाजी न होकर सैक्यूलर पुरोहित हैं जिनकी प्रेरिताई मुख्यतः प्रवचन करना
है। ऑरेटोरियन धर्मसमाज तथा यानसेनवादी अभियान द्वारा फादर जॉन यूड्स एवं उनके धर्मसंघ
का विरोध हुआ जिसके चलते सन् 1650 ई. तक उनके धर्मसंघ को काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष
का अनुमोदन नहीं मिल पाया। संयोगवश, सन् 1650 ई. में काऊन्ट्स के धर्माध्यक्ष ने जॉन
यूड्स को अपने धर्मप्रान्त में एक गुरुकुल की स्थापना के लिये बुलाया। इसी वर्ष केन में
उनके द्वारा स्थापित धर्मसंघ की धर्मबहनों को बायक्स के धर्माध्यक्ष ने एक नवीन धर्मसंघ
रूप में मान्यता दे दी। यह धर्मसंघ था आर लेडी ऑफ चैरिटी ऑफ द रेफ्यूज।
जॉन यूड्स
ने बाद में लिसेक्स तथा रोएन में भी गुरुकुलों की स्थापना की, हालांकि, उन्हें सन्त पापा
का अनुमोदन नहीं मिल पाया। सन् 1666 ई. में रेफ्यूज धर्मसंघ की धर्मबहनों को सन्त पापा
एलेक्ज़ेनडर का अनुमोदन प्राप्त हो गया तथा भटकी हुई महिलाओं की प्रेरिताई उनका मिशन
बन गया। तदोपरान्त, जॉन यूड्स ने सन् 1666 ई. में एवरो में तथा सन् 1670 ई. में रेन्स
में मिशन केन्द्रों एवं गुरुकुलों की स्थापना की। सन्त मेरी मार्ग्रेट आलाकॉक के साथ
मिलकर उन्होंने फ्राँस में येसु के पवित्रतम हृदय की भक्ति का सूत्रपात किया तथा सन्
1668 ई. में पवित्रतम हृदय के आदर में ख्रीस्तयाग की प्रार्थनाएँ लिखी। 19 अगस्त सन्
1680 ई. को जॉन यूड्स का निधन हो गया तथा सन् 1925 ई. को वे सन्त घोषित कर दिये गये।
सन्त जॉन यूड्स का पर्व, 19 अगस्त को, मनाया जाता है।
चिन्तनः सन्त जॉन
यूड्स के सदृश ही हम भी दृढ़ संकल्प के साथ अपने दायित्वों का निर्वाह करें तथा प्रभु
की अनुकम्पा के पात्र बनें।