सन्त आद्दाल थादेयुस प्रभु येसु ख्रीस्त के 70
शिष्यों में से एक थे तथा सन्त थॉमस द्वारा एशिया माईनर स्थित एडेसा के राजा अबगारुस
पंचम के दरबार में भेजे गये थे ताकि बीमार राजा को चंगाई प्रदान कर सकें। किंवदन्ती है
कि राजा अबगारुस ने प्रभु येसु मसीह को पत्र लिखकर उन्हें उनके असाध्य रोग से छुटकारा
दिलवाने का निवेदन किया था। एडेसा (आधुनिक तुर्की) जाकर आद्दाल ने राजा पर प्रार्थना
की तथा उन्हें चंगाई प्रदान की। आद्दाल द्वारा मिली चंगाई से प्रभावित होकर राजा अबगारुस
ने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन किया तथा अपने राज्य के समस्त लोगों को ऐसा करने के लिये
प्रोत्साहन दिया। ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन करनेवाले राजदरबारियों में आद्दाई मन नामक
एक व्यक्ति भी था जो बाद में आद्दाल का उत्तराधिकारी बना। आद्दाई मन के नेतृत्व में आद्दाल
ने तिगरिस नदी के तट पर बसे नगरों एवं गाँवों में ख्रीस्तीय सुसमाचार का प्रचार किया।
पूर्वी रीति की ख्रीस्तीय परम्परानुसार सन्त आद्दाल यहूदी जाति के थे तथा एडेसा
में उनका जन्म हुआ था जो उस समय सिरिया का एक नगर था। परम्परानुसार यह विश्वास प्रचलित
है कि आद्दाल खिसी पर्व के लिये एडेसा से जैरूसालेम आये थे जहाँ उन्होंने योहन बपतिस्ता
का उपदेश सुना था। योहन बपतिस्ता द्वारा ही यर्दन नदी के तट पर उन्होंने बपतिस्मा ग्रहण
किया था और उसके बाद फिलिस्तीन में ही रह गये थे। कुछ समय बाद उनका साक्षात्कार येसु
मसीह से हो गया और उन्होंने उनके अनुयायी बनने का निश्चय कर लिया। प्रभु येसु ने ही उन्हें
अपने प्रथम 70 शिष्यों में शामिल किया था।
प्रबु येसु मसीह के स्वर्गारोहण एवं
पेन्तेकॉस्त के उपरान्त आद्दाल ने मेसोपोटेमिया, सिरिया तथा फारस में ख्रीस्तीय सिसमाचार
का प्रचार किया तथा इन देशों में प्रथम गिरजाघरों की भी स्थापना की। बैरूथ में भी आद्दाल
द्वारा ही कलीसिया की स्थापना की गई थी। ख्रीस्तीय धर्म के प्रचार के दौरान ही आद्दाल
को मार डाला गया था। अस्सिरिया की कलीसिया, खलदेई काथलिक कलीसिया तथा भारत की सिरो-मलाबार
कलीसिया में भी सन्त आद्दाल की भक्ति की जाती है। सन्त आद्दाल का पर्व 05 अगस्त को मनाया
जाता है।
चिन्तनः "प्रज्ञा विरासत की तरह अच्छी बात है, इस से सूर्य
देखने वाले लाभ उठाते हैं। प्रज्ञा और धन, दोनों मनुष्य की रक्षा करते हैं, कि वह ज्ञानी
को जीवन प्रदान करता है। ईश्वर के कार्यों पर विचार करो : जिसे ईश्वर ने टेढ़ा कर दिया,
उसे कौन सीधा कर सकता है? सुख के दिन आनन्द मनाओ, दुःख के दिन यह सोचो कि ईश्वर ने दोनों
को बनाया है। मनुष्य नहीं जानता कि उसके बाद क्या होने वाला है" (उपदेशक ग्रन्थ 7: 11-14)।