2013-07-29 20:43:48

धर्माध्यक्ष लोगों के निकट रहें, दरिद्रता से स्नेह करें


रियो दे जनेइरो, सोमवार 29 जुलाई, 2013(सेदोक, सीएनए) ब्राजील के रियो दे जनेइरो में विश्व युवा दिवस की अध्यक्षता करने के बाद ब्राजील से रवाना होने के पूर्व संत पापा फ्राँसिस ने लैटिन अमेरिकी धर्माध्यक्षों को संबोधित करते हुए कहा कि धर्माध्यक्ष को चाहिये कि वह एक मेषपाल हो, अपने लोगों के निकट हो, नम्र हो धैर्यवान और दयालु तथा दरिद्रता से स्नेह करता हो।
संत पापा ने उक्त बात उस समय कही जब उन्होंने 28 जुलाई को ‘कोर्डिनेटिंग कमिटी ऑफ़ द लैटिन अमेरिकन बिशप्स कौंसिल’ ‘चेलाम’ (सीईएलएएम) को रियो दे जनेइरो में संबोधित किया।

उन्होंने धर्माध्यक्षों से कहा कि उनका जीवन सादगी और तपस्यापूर्ण हो न कि एक राजकुमार के समान हो और दूसरे धर्मप्राँतों का नेतृत्व करने के लिये आकाँक्षित हो।

संत पापा ने कहा कि धर्माध्यक्षों को चाहिये कि वे ‘पथप्रदर्शक बने’ लोगों को पथ से भटकने से बचायें और इस बात का ध्यान दें कि कोई भी पीछे न छूट जाये। उन्हें चाहिये कि वे अपने समुदाय की रक्षा करें और उन्हें आशा से भर दें ताकि यह दुनिया के लोगों के ह्रदयों में चमक सके।

संत पापा ने सन् 2007 ईस्वी में अपारेसिदा में सम्पन्न चेलाम की पाँचवीं आमसभा की विषयवस्तु पर ‘महादेशीय मिशन’ पर अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि कलीसिया एक संगठन है जो बपतिस्मा प्राप्त लोगों और नेक इच्छा के लोगों की सेवा करती है।

संत पापा ने ऐसे मेषपालीय योजनाओं की आलोचना की जो आम लोगों के जीवन को नहीं छूते और लोगों के साथ येसु के मिलन को संभव नहीं बना पाते हैं।

उन्होंने कहा कि ईसा का अनुसरण करने वाले व्यक्तिगत आध्यात्मिक में नहीं खो जाते हैं पर ऐसे लोग हैं जो समुदाय में रहते हैं और उनकी सेवा को समर्पित होते हैं।

लैटिन धर्माध्यक्षों को बोलते हुए संत पापा ने कलीसिया की दो विशेष चुनौतियों को बारे में भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि कलीसिया को आन्तरिक नवीनीकरण की ज़रूरत है और दुनिया के साथ वार्तालाप करने की। उन्होंने बतलाया कि द्वितीय वाटिकन महासभा ने इसके लिये उचित मार्गदर्शन दिये हैं।
संत पापा ने युवाओं की ओर धर्माध्यक्षों का ध्यान ख्रीचते हुए कहा कि वे उनकी भाषाओं को समझने का प्रयास करें ताकि सुसमाचार, कलीसिया की धर्मशिक्षा और सामाजिक सिद्धांतों के द्वारा फलदायी परिवर्तन आ सकेगा।
उन्होंने कहा कि यदि हम मूलतः ग्रामीण ‘परंपरागत संस्कृति’ तक ही अपने को सीमित करते हैं तो हम पवित्र आत्मा की शक्ति को नकार देते हैं। ईश्वर सब जगह है और उन्हें विभिन्न भाषाओँ, संस्कृतियों और लय में घोषित करने का हमें वरदान प्राप्त हुआ है ।
उन्होंने धर्माध्यक्षों को आगाह किया कि वे मिशनरी उत्साह की झूठी झलक के प्रति सावधान रहें। लोकधर्मियों पर निर्भरता या पुरोहितों को विशेष सुविधा देने की प्रवृत्ति एक प्रलोभन है।
उन्होंने कहा कि कलीसिया को आंतरिक रूप से नया बनने की ज़रूरत है इसलिये ख्रीस्तीयों को चाहिये कि मेषपालीय मनफिराव करें, येसु मसीह जो ईश्वर के राज्य को हमारे बीच लाते हैं उन पर अपना ध्यान केन्द्रित करें और पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन को महत्व दें।
संत पापा ने कहा कि धर्माध्यक्ष इस बात का ध्यान दें कि उनका मेषपालीय है या प्रशासकीय और क्या वे ईश्वरीय प्रजा की सेवा कर रहे हैं या कलीसिया को मात्र एक संगठन मानते हैं।
उन्होंने कहा कि धर्माध्यक्ष को चाहिये कि वह समस्याओं के प्रति सिर्फ़ अपनी प्रतिक्रियायें न दिखलायें पर इस बात का प्रयास करें कि वे ईश्वर की दया को प्रकट प्रकट कर रहे हैं।








All the contents on this site are copyrighted ©.