कलीसिया की नीँव हो - अनेकता में एकता न कि संकीर्ण एकरूपता।
रियो दे जनेइरो, 28 जुलाई, 2013 (सेदोक, सीएनए) संत पापा फ्राँसिस ने ब्राजील के रियो
दे जनेइरो में जोन पौल द्वितीय भवन में एकत्रित धर्माध्यक्षों को संबोधित करते हुए कहा
कि कलीसिया की नीँव हो अनेकता में एकता न कि संकीर्ण एकरूपता।
उन्होंने कहा कि
ब्राजील की कलीसिया को चाहिये साक्ष्यों का एक क्षेत्रीय नेटवर्क जो एक ही भाषा बोलती
हो पर इसका आधार एकमतता नहीं अनेकता में एकता हो।
संत पापा ने संबोधन के आरंभ
में ही कहा कि वे प्रत्येक धर्माध्यक्ष का व्यक्तिगत आलिंगन करना चाहते हैं विशेष करके
सेवानिवृत्त धर्माध्यक्षों का।
उन्होंने अपारेसिदा की माता मरिया की चर्चा करते
हुए कहा कि केवल ईश्वर की सुन्दरता ही मानव के ह्रदय को छू सकता है और कलीसिया की शक्ति
अपने आप में निर्भर नहीं करती है पर इसकी शक्ति ईश्वर के अथाह सागर में हैं।
संत
पापा ने धर्माध्यक्षों से आग्रह किया कि वे निरुत्साह, शिकायत और भ्राँतियों के समक्ष
कदापि न झुकें जो व्यक्ति के जीवन में हावी होती नज़र आती हैं।
उन्होंने कहा
कि कई बार लोग कलीसिया छोड़ के जाने लगते हैं और कहते हैं कि कलीसिया के पास कुछ खास
बातें नहीं रह गयी हैं। संत पापा ने कहा कि ऐसे लोगों के साथ बात करने की ज़रूरत है और
उनसे वार्तालाप ज़रूरी है।
संत पापा फ्राँसिस ने वैश्वीकरण और शहरीकरण के दुष्प्रभाव
के प्रति अफसोस ज़ाहिर किया। उन्होंने कहा कि इनसे उत्पन्न परिस्थितियों के कारण लोगों
ने कुछ ‘शोर्ट कट’ अपने लिये हैं और निराश होकर कलीसिया से दूर चले गये हैं।
उन्होंने
कहा कि काथलिक कलीसिया सिर्फ़ शिकायत करके ऐसी समस्याओं समाधान नहीं कर सकती है। पर कलीसिया
को इस बात को जानना है कि जिस कारण से वे कलीसिया से बाहर चले जा रहे हैं उन्हीं कारणों
के कारण वे कलीसिया में वापस भी आ सकते हैं।
संत पापा ने कहा कि कलीसिया को
चाहिये कि वे धर्मग्रंथ, धर्मशिक्षा, संस्कार, सामूदायिक जीवन और येसु, मरिया और प्रेरितों
के साथ अपना संबंध गहरा करे तब ही कलीसिया मजबूत हो सकती है। इन बातों पर बल देने से
ही कलीसिया इनकी सुन्दरता को देख सकेगी।
उन्होंने कहा कि कई लोगों ने कलीसिया
को छोड दिया है क्योंकि उन्हें उन बातों की प्रतिज्ञा की गयी थी जो प्रभावकारी और उत्कृष्ट
लगतीं थीं। आज लोगों को यह बताये जाने की ज़रूरत है कि येसु के क्रूस से अधिक प्रभावशाली
और उँचा और कुछ नहीं है। लोगों को यह बताया जाना चाहिये कि प्रेम, अच्छाई, सच्चाई और
सुन्दरता की नम्रता में जो ताकत है वह अन्य किसी भी ताकत से बड़ी है।
संत पापा
ने कहा कि आज़ ज़रूरत है कि कलीसिया धीरे पर शांत भाव से आगे बढ़े। उन्होंने धर्माध्यक्षों
से प्रश्न किया और कहा कि क्या कलीसिया इस बात के चिन्तन में खोयी हुई है कि उसे कुशलतापूर्वक
काम करना है?
उन्होंने कहा कि ब्राजील की कलीसिया को चाहिये वह प्रशिक्षुओं का
उचित प्रशिक्षण, धर्माध्यक्षों की एकता, सहयोग की भावना, मिशन का मनोभाव और प्रेरितिक
मनफिराव पर ध्यान दे ताकि आमेजोन घाटी से उचित फल प्राप्त किया जा सके।
संत पापा
ने कहा कि पुरोहितों का उचित प्रशिक्षण ब्राजील की कलीसिया की प्राथमिकता हो। उन्हें
ऐसा प्रशिक्षण दिया जाये ताकि वे विश्वासियों के ह्रदय को छू सकें, विपत्तियों में उनका
साथ दें, उनकी आशाओं और निराशों के बारे में वार्ता कर सकें और उनके टूटे जीवन को जोड़
सकें।
उन्होंने कहा कि कलीसिया को चाहिये कि वह कलीसिया में निहित दयालुता को
पुनः खोज निकाले। इसके बिना कलीसिया के लोग आहत बने रहेंगे और बिना क्षमा और प्रेम के
भटकेंगे।
कलीसिया में महिलाओं की भागीदारी के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा
ऐसा न हो कि महिलाओँ के कार्य सिर्फ़ चर्च के अन्दर सीमित हो जायें । उन्हें चाहिये कि
वे कलीसियाई समुदायों में सक्रिय अपना योगदान दें।
उन्होंने कहा कि कलीसिया का
दायित्व है कि वह शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सामंजस्य जैसे मुद्दों के लिये कार्य
करते हुए मानव विकास के लिये कार्य करे।
संत पापा ने कहा कि आमेजोन बेसिन हमारे
मिशन के केंद्र में हो और एक सुन्दर उद्यान बने न की एक ऐसी ज़गह जिसका विवेकहीन शोषण
होता रहे।