2013-07-27 18:12:31

बुलाहट, धर्मप्रचार और मिलन की संस्कृति


रियो दे जनेइरो, शनिवार 27 जुलाई, 2013 (सेदोक, वीआर) ख्रीस्त में मेरे अति प्रिय भाइयों एवं बहनों, पूरे विश्व के कोने-कोने से आये धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मबन्धुओं, धर्मबहनों और धर्मसमाजी भाई-बहनों से भरे महागिरजाघर को देखकर लगता है भजन गायक के साथ हम स्तोत्र 66 को एक साथ गायें और कहें "लोग ईश्वर की स्तुति करें।" सचमुच हमें चाहिये कि हमें ईश्वर की स्तुति करें ताकि हमारे साथ पूरी दुनिया ईश्वर की स्तुति करे।

आज मैं आप लोगों के साथ बुलाहट के तीन पहलूओं पर चिन्तन करना चाहता हूँ – ईश्वर द्वारा बुलाया जाना, सुसमाचार प्रचार के लिये बुलाया जाना और मिलन की संस्कृति के प्रचार के लिये बुलाया जाना।

ईश्वर द्वारा बुलाया जाना
1.ईश्वर द्वारा बुलाये जाने का अर्थ है अपनी दिव्य बुलाहट को जागृत करना और इसे मात्र दिनचर्या के समान नहीं लेना। येसु ने हमसे कहा है कि मैंने तुम्हें चुना है तुमने नहीं। इसका अर्थ है बुलाने वाले स्रोत की ओर वापस लौटना। हमारी बुलाहट में हम पाते हैं कि ईश्वर की इच्छा सर्वोच्च है। हम ईश्वर द्वारा बुलाये गये हैं और इसलिये बुलाये गये हैं ताकि हमे येसु के साथ रहें और उनके साथ अपनी मित्रता इतनी घनिष्ट कर लें कि हम संत पौलुस के समान कह सकें, "अब मैं नहीं जीता पर प्रभु येसु ख्रीस्त मुझमें जीते हैं।" येसु मसीह में जीवन जीना महत्वपूर्ण है। येसु मसीह में जीने से ही हमारा प्रेरितिक जीवन और सेवा प्रभावपूर्ण और फलदायी होता है। मेषपालीय सृजनशीलता या योजनायें हमें फलदायी नहीं बनाते हैं पर येसु के साथ हमारी विश्वसनीयता हमें सफल और फलदायी बनाती है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है "तुम मुझमें और मैं तुममे बना रहूँ।" इसका अर्थ यही है कि हमें उनपर चिन्तन करें, उनकी आराधना करें उन्हें गले लगायें विशेष करके प्रार्थना के प्रति वफ़ादार रहकर यूखरिस्तीय बलिदान में शामिल होकर और ज़रूरतमंदों की मदद करके। हम इस बात को याद रखें कि येसु के साथ रहने का मतलब यह नहीं कि आम लोगों से अपने-आप को अलग कर लेना। ठीक इसके विपरीत येसु के साथ रहना ताकि दूसरों को गले लगा सकें। मुझे कोलकाता की धन्य मदर तेरेसा की बात याद आती है। उन्होंने कहा "हम अपनी बुलाहट में मजबूत रहें क्योंकि यह हमें अवसर प्रदान करता है कि गरीबों की सेवा में येसु को पा सकें।"

हमें चाहिये कि हमें गाँवों, झुग्गी-झोपड़ियों में जाकर येसु को खोजें और उनकी सेवा करें। हम उनके पास पुरोहितों की तरह जायें जो अपने को पूरी खुशी से वेदी में प्रस्तुत करते हैं। येसु हमारे भले चरवाहे हैं हमारा मन-दिल और ह्रदय सदा उनसे जुड़ा रहे।

सुसमाचार प्रचार
2.दूसरी बात जिस पर मैं बोलना चाहता हूँ वह है कि हम सुसमाचार प्रचार के लिये बुलाये गये हैं। विश्व युवा दिवस में आप सबों ने सुना है "जाओ और सार राष्ट्रों को येसु का सुसमाचार सुनाओ।" आज यह हमारा मिशन है कि हम युवाओं में ऐसी ज्योति जलायें कि उनमें येसु के मिशनरी शिष्य बनने की तीव्र इच्छा पैदा हो सके। निश्चय ही यह निमंत्रण हमें डरा सकता है क्योंकि मिशनरी बनना अर्थात अपना घर-परिवार देश और दोस्तों का त्याग करना। मुझे याद है जब हमें छोटा था तब में जापान के लिये मिशनरी बनना चाहता था पर ईश्वर ने मुझे अपने घर के निकट ही का मिशनरी बना दिया।

आज आइये हम अपने युवाओं को मदद दें ताकि वे इस बात का गहरा अनुभव कर सकें कि हमारा बपतिस्मा ही हमें मिशनरी बनने का आमंत्रण देता है। मिशनरी बनना ईसाई बनने का एक अभिन्न अंग हैं। हमें उन्हें यह भी बतलाना है कि सबसे पहले हमें चाहिये कि हम घर-परिवार, अध्ययन क्षेत्र, कार्य क्षेत्र और मित्रों को सुसमाचार सुनाना है। हम युवाओं के प्रशिक्षण में कोई कमी न करें। संत पौल अपने इस बात को बहुत ही अच्छी तरह से कहा कि मेरे बच्चो, मैं आपके साथ तब तक चलता रहूँगा जबतक कि येसु ख्रीस्त आप में समा न जाये। आइये, हम इसी बात को युवाओं को बतायें और उन्हें मदद दे ताकि वे विश्वास की खुशी और ताकत को पहचानें, ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत प्रेम को जानें और यह जाने कि ईश्वर ने अपने पुत्र येसु को हमारी मुक्ति के लिये दे दिया।

आइये हम युवाओं के जीवन का निर्माण करें जैसा कि येसु ने अपने शिष्यों के साथ किया। उन्होंने उन्हें मुर्गी के समान अपने डैने के नीचे नहीं रखा पर उन्हें बाहर भेज दिया। हम अपने आपको पल्लियों, समुदायों और संस्थाओं के अन्दर नहीं रख सकते। कई लोग सुसमाचार का इन्तज़ार कर रहे हैं। यह काफी नहीं है कि हम स्वगत करते हुए दरवाज़ा खोल दें पर हमें चाहिये कि हम उसी दरवाज़े से बाहर जायें औऱलोगों को खोजें और उनसे मिलें। आइये, हम पूरे उत्साह से लोगों की देखभाल करें, उनके पास जायें जो निकट में हैं और उन्हें खोजें जो साधारणतः अपने को गिरजा से दूर रखते हैं। उन्हें भी येसु ने एक ही भोज के लिये बुलाया है।

मिलन की संस्कृति का प्रचार
3. और तीसरी बात कि हम वार्ता या मिलन की संस्कृति के प्रचारक बनें। दुर्भाग्य है कि कई स्थानों में अलगाव और तिरस्कार की संस्कृति फैली है। बड़े-बुजूर्गों और अनचाहे बच्चों के लिये कोई स्थान नहीं है सड़कों में पड़े गरीबों के लिये किसी के पास समय नहीं हैं। कई बार ऐसा लगता है कि मानव रिश्ता दो सिद्धांतों के द्वारा चलते हैं – कार्यक्षमता और व्यवहारिकता।

प्रिय धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मबन्धुओ एवं धर्मसमाजियो आप धारा के विपरीत तैरना का साहस जुटाइये। आज हम ईश्वर के इस वरदान का तिरस्कार न करें। हम एक ही परिवार के सदस्य हैं। हमारे समाज का सचमुच मानव समाज तब बनेगा जब हमें प्रत्येक जन का सस्नेह और भ्रातृत्वपूर्ण भाव से स्वागत करते हैं।

आप एकता और मिलन की संस्कृति के सेवक बनें। मुझे ऐसा कहने की अनुमति दीजिये कि इन बातों के प्रचार में पागल-सा बन जायें। हम नहीं चाहते कि हम सत्य पर अभिमान करें पर हमें सहर्ष नम्रतापूर्वक उनका मार्गदर्शन करें जो पाये गये हैं और प्रभावित होकर येसु की सत्यता से नवीन कर दिये गये हैं।

प्रिय भाइयों एवं बहनों, हम ईश्वर द्वारा बुलाये गये हैं सुसमाचार प्रचार के लिये बुलाये गये हैं और इसलिये बुलाये गये है कि हम साहस के साथ मिलने की संस्कृति का प्रचार करें। माता मरिया इसमें हमारी मदद करे। वह ममतामयी स्नेह की प्रतिमा हैं हमें मदद दें कि हम येसु से मिलने की राह के प्रत्येक कदम में हमारी सहायता करें।








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