रियो दे जनइरो, शनिवार 27 जुलाई, 2013 (सेदोक, वीआर) मेरे अति प्रिय युवा मित्रो, आप
यहाँ आये हैं ताकि आप येसु के दुःख और प्रेम की यात्रा - क्रूस रास्ता की धर्मविधि में
हिस्सा ले सकें जो विश्व युवा दिवस का एक अति विशेष और अभिन्न अंग है। पवित्र मुक्ति
वर्ष के अंत में धन्य जोन पौल द्वितीय ने यह क्रूस आप युवाओं के हाथों सुपुर्द करते हुए
कहा था, "आप इसे येसु मसीह का मानवता के प्रति प्रेम के प्रतीक स्वरूप ले जायें और दुनिया
के प्रत्येक जन को बतायें कि मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान से ही केवल हमें मुक्ति प्राप्त
होगी।" (22 अप्रैल, 1984)
तब से विश्व युवा दिवस क्रूस प्रत्येक महादेश का दौरा
कर चुका है और विभिन्न लोगों तक पहुँच चुका है। सच माना जाये तो यह उन हज़ारों युवाओं
के जीवन को प्रभावित कर चुका है जिन्होंने इसे देखा और इसका स्पर्श किया है। कोई भी व्यक्ति
येसु के क्रूस को छूता है तो वह कुछ न कुछ येसु के लिये छोड़ देता है और कुछ न कुछ क्रूस
से अपने लिये पा भी लेता है।
आज मैं आप लोगों के समक्ष तीन सवाल रखना चाहता हूँ
जो आपके दिल में गूँजता रहेगा जब आज संध्या येसु के साथ यात्रा करेंगे। पहला सवाल, मैंने
क्रूस पर क्या छोड़ दिया है? दूसरा सवाल - येसु के क्रूस ने आपके लिये क्या छोड़ दिया
है? और तीसरा क्रूस हमें क्या सिखाता है?
1.प्रिय युवा मित्रो, रोमी परंपरा के
अनुसार जब नीरो राजा द्वारा किये जा रहे धर्मसतावट के समय संत पीटर ने येसु को शहर की
ओर फिर से जाते हुए देखा तो आश्चर्य से पूछा कि प्रभु, आप कहाँ जा रहे हैं? तब येसु ने
उत्तर दिया था "मैं रोम जा रहा हूँ ताकि और एक बार क्रूसित किया जाऊँ।" और तब संत पेत्रुस
को यह प्रेरणा मिली कि उसे येसु का अनुकरण करना है और पूरे साहस से अन्त तक उसके साथ
चलना है। संत पेत्रुस को इस बात का भी गहरा अहसास हुआ कि उसकी यात्रा में वह अकेला नहीं
है; येसु जिसने अपने क्रूस की मृत्यु तक उससे प्रेम किया है, उसके साथ है। येसु अपने
क्रूस के साथ हमारे साथ देता है और अपने ऊपर हमारे भय, हमारी समस्याओं और दुःखों के ले
लेता है, विशेष करके ऐसे दुःखों को बहुत ही पीड़ादायक हैं। येसु ऐसे लोगों के साथ है
जो हिंसा के शिकार हैं, जो चींख भी नहीं सकते और ऐसे जो निर्दोष और असुरक्षित हैं । ऐसे
परिवारों के साथ जो परेशानियों में हैं, जो अपने प्रियजनों के लिये विलाप कर रहे हैं।
येसु ऐसे परिवारों के साथ हैं जिनके परिवारों से व्यक्ति दुःख ‘झूठे स्वर्ग’ में गिरा
हुआ हो विशेष करके नशीली पदार्थों के सेवन से। येसु अपने क्रूस के द्वारा उन्हें एक कर
देते हैं।
क्रूस पर से येसु ऐसे लोगों को अपने में एक कर लेते है लोग भूख से तड़पते
हैं येसु ऐसे लोगों को भी सहारा देते हैं जिन्हें धर्म के कारण सताया जाता है उनके विश्वास
के लिये प्रताड़ित किया जाता है तथा उनके रंग के लिये उनका बहिष्कार किया जाता है। येसु
ऐसे युवाओं का भी साथ देते हैं जिन्होंने राजनैतिक संस्थाओं से अपना विश्वास दिया है
क्योंकि वे इन संरचनाओं में केवल स्वार्थ और भ्रष्टाचार देखते हैं। येसु उनका साथ देते
हैं जिन्होंने कलीसिया पर से अपना विश्वास खो दिया है। वे ऐसे युवाओं के साथ भी हैं जिन्होंने
भगवान पर से भी अपनी आस्था खो दी है इसलिये कि कलीसिया के सदस्यों या अधिकारियों ने ख्रीस्त
विरोधी व्यवहार किया है।
युवा मित्रो, मैं आपको बतलाना चाहता हूँ कि येसु क्रूस
पर पूरी मानवता और हममें से प्रत्येक जन के लिये दुःख उठाते हैं। येसु इन सब बातों को
खुले ह्रदय से स्वीकार करते हैं, हमारे क्रूसों को अपने कंधे का सहारा देते हैं और कहते
हैं, "आगे बढ़िये आप अपना क्रूस अकेले नहीं ढो रहे हैं, मैं आपके साथ हूँ। मैंने मृत्यु
और दुःख पर विजय प्राप्त की है। मैं यहाँ आया हूँ ताकि आप आशा प्राप्त करें और एक नया
जीवन। (संत योहन, 3, 16)
2. इस तरह से हम दूसरे सवाल का उत्तर दे सकते हैं। यह
सवाल है कि आपको क्रूस से क्या प्राप्त हुआ है? क्रूस ने मेरे लिये क्या छोड़ दिया है?
मित्रो यह हमें वो समृद्धि देता है जो और कोई नहीं दे सकता, ऐसा अटल प्रेम जिसे ईश्वर
ने हमें दिया है। एक ऐसा प्रेम जो हमारे पापों की क्षमा देता है, जो हमारे दुःखों को
दूर कर शक्ति प्रदान करता है। एक ऐसा प्रेम जो मृत्यु पर विजयी होकर हमें बचा लेता है।
हम कह सकते हैं येसु के क्रूस में ईश्वर का अगाध प्रेम और असीमित दया छिपी हुई है। यह
एक ऐसा प्रेम है जिसपर हम भरोसा कर सकते हैं जिस पर विश्वास कर सकते हैं। प्रिय युवा
मित्रो, आइये हमें अपने आपको येसु को समर्पित कर दें अपना सबकुछ येसु के लिये दे दें।
केवल क्रूसित और पुनर्जीवित येसु में सच्ची शांति और मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। उनके
सामने बुराई, दुःख और मृत्यु का कुछ नहीं चलता क्योंकि येसु हमें जीवन और आशा प्रदान
करते हैं। उन्होंने घृणा, मृत्यु और अपमान की वस्तु क्रूस को प्रेम, विजय और जीवन में
बदल दिया है। युवा मित्रो, आपको मालूम होगा कि ब्राजील का पहला नाम था "लैंड ऑफ़ द हॉली
क्रॉस " अर्थात् ‘पवित्र क्रूस की भूमि’। ब्राजील की पावन धरती पर क्रूस 5 सौ साल पहले
रोपी गयी और इसके साथ यहाँ के लोगों के मन दिल में भी रोपा जा चुका है। लोगों ने येसु
के क्रूस या दुःख का गहरा अनुभव किया जैसा आप और हम करते हैं। पर हम इस बात को याद करें
कि ऐसा कभी नहीं हुआ कि हम और आप कोई क्रूस उठाते हों और येसु हमारे साथ नहीं रहें। येसु
सदा हमारे साथ हैं।
3.मेरे प्रिय युवाओ, आज येसु हमें आमंत्रित कर रहे हैं
कि हम उनके प्रेम को समझें, दूसरों को दया और सहानुभूति के भाव से देखें विशेष करके उन्हें
जो कष्ट झेल रहे हैं और जो ज़रूरतमंद हैं, जिन्हें हमारा मीठा वचन चाहिये। हम कुछ ठोस
कदम उठायें उनके पास जायें और उनकी मदद करें। क्या आपने विचार किया है कि येसु के साथ
कलवरी की राह में कितने लोग बचे हुए थे, पिलातुस, सिरीनी सिमोन, मरिया और कुछ महिलायें.....
बस। कई बार हमें पिलातुस के समान बन जाते हैं जिसके पास वो साहस नहीं था कि वह लोगों
के विरुद्ध जाये और येसु को बचाये। ठीक इसके विपरीत उन्होंने अपना हाथ धो डाला। मित्रो,
येसु का क्रूस हमें यह सिखलाता है कि हम सिरीनी सिमोन के समान येसु का क्रूस ढोने में
मदद करें, यह हमें सिखाता है कि हम मरिया और अन्य धर्मी महिलाओं के समान साहसपूर्वक
येसु के साथ अंतिम तक सस्नेह चलें। हम आज किसके समान हैं? पिलातुस के समान, सिरिनी सिमोन
के समान या माता मरिया के समान?
मित्रो, येसु के क्रूस के समक्ष आइये हम अपनी
खुशियों को लायें, अपने दुःखों और असफलताओं को अर्पित कर। तब हम पायेंगे कि वे हमारे
साथ हैं, हमें समझते हैं, हमें क्षमा देते हैं, प्यार करते हैं और हमें बुलाते हैं ताकि
हम उनके प्रेम में जीयें और दूसरों से वैसा ही प्यार करें जैसा उन्होंने हमसे प्यार
किया । आमेन।