2013-07-20 12:53:03

प्रेरक मोतीः ब्रिन्दीज़ी के सन्त लॉरेन्स (1559-1619 ई.)


वाटिकन सिटी, 21 जुलाई सन् 2013:

सन्त लॉरेन्स 16 वीं शताब्दी के एक कैपुचिन धर्मसमाजी पुरोहित थे जिनका पर्व काथलिक कलीसिया में 21 जुलाई को मनाया जाता है। लॉरेन्स का जन्म इटली के नेपल्स राज्य स्थित ब्रिन्दीज़ी में, 22 जुलाई, सन् 1559 ई. को, वेनेत्सिया के एक काथलिक व्यापारी परिवार में हुआ था। जन्म के समय उनका नाम जूलियो चेज़ारे रुस्सो था।

वेनिस स्थित सन्त मार्क महाविद्यालय में उनकी शिक्षा दीक्षा समाप्त हुई जिसके बाद उन्होंने वेरोना में कैपुचिन धर्मसमाज में प्रवेश पा लिया तथा ब्रदर लॉरेन्स नाम धारण किया। वेरोना और बाद में पादोआ विश्वविद्यालय में ब्रदर लॉरेन्स ने उच्च शिक्षा प्राप्त की तथा भाषाविज्ञान में डॉक्टरेड की उपाधि हासिल की। वे अधिकांश यूरोपीय एवं सामी भाषाओं के ज्ञाता थे।

सन् 1596 ई. में लॉरेन्स को रोम में कैपुचिन धर्मसमाज के प्रतिनिधि नियुक्त किया गया। इस पद पर लगातार छः बार लॉरेन्स की नियुक्ति हुई जिसके दौरान उन्होंने यहूदियों के साथ वार्ताओं को प्रोत्साहित करने तथा जर्मनी में मिशन कार्यों को बढ़ावा देने हेतु अथक प्रयास किये। साथ ही लूथरनवाद को परास्त करने के लिये उरबीनो के धन्य बेनेडिक्ट के साथ सहयोग किया तथा हज़ारों काथलिकों को पुनः काथलिक कलीसिया में लौटाया। सन् 1599 ई. के बाद से कैपुचिन धर्मसमाजी लॉरेन्स ने प्राग, वियेना तथा गोरित्सिया में कई कैपिचन मठों की स्थापना की जो बाद में जाकर बोहेमिया, ऑस्ट्रिया एवं स्त्रीया प्रान्तों में परिणत हो गये। रोमी सम्राट रूडॉल्फ द्वितीय के निवेदन पर लॉरेन्स ने जर्मन शासकों को एकत्र कर, हँगरी पर चढ़ाई करने की धमकी देनेवाले, तुर्कियों के विरुद्ध जर्मनों की एक सेना तैयार की।

सन् 1602 ई. में लॉरेन्स कैपुचिन धर्मसमाजियों के नियुक्त गये। तदोपरान्त, वे परमधर्मपीठ की सेवा में संलग्न हो गये तथा बावेरिया के परमधर्मपीठीय राजदूत नियुक्त किये गये। बावेरिया में परमधर्मपीठीय कूटनैतिक सेवाएं अर्पित करने के बाद सम्राट ने लॉरेन्स को स्पेन प्रेषित किया ताकि वे काथलिक लीग से संलग्न होने के लिये फिलिप तृतीय को मनायें। स्पेन पहुँचकर लॉरेन्स ने मैडरिड में एक कैपुचिन धर्मसमाजी मठ की स्थापना की। लॉरेन्स ने कई बार शाही घरानों के विवादों को सुलझाया तथा शांतिनिर्माता का काम किया। सन् 1618 ई. में उन्होंने सभी सांसारिक गतिविधियों से सन्यास ले लिया तथा कासेरता स्थित मठ में तपस्वी जीवन यापन करने लगे। सन् 1619 ई. में लॉरेन्स को, स्पेन के सम्राट का, विशेष दूत बनाकर नेपल्स के वॉयसराय की गतिविधियों को रोकने के लिये भेजा गया था। कड़ी धूप में मीलों पैदल चलकर लॉरेन्स ने अपना मिशन पूरा किया जिसके कुछ ही दिन बाद, 22 जुलाई, सन् 1619 ई. को, लिसबन में, उनकी मृत्यु हो गई।

कैपुचिन धर्मसमाजी, काथलिक पुरोहित, ब्रिन्दीज़ी के लॉरेन्स ने लूथरनवाद के विरुद्ध कई शोध प्रबन्ध लिखे तथा काथलिकों को आलोकित किया। उनके प्रवचन नौ ग्रन्थों में संकलित किये गये हैं। सन् 1881 ई. में सन्त पापा लियो 13 वें ने ब्रिन्दीज़ी के लॉरेन्स को सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया तथा सन् 1959 ई. में सन्त पापा जॉन 23 वें द्वारा वे कलीसिया के आचार्य घोषित किये गये। ब्रिन्दीज़ी के लॉरेन्स का पर्व 21 जुलाई को मनाया जाता है।


चिन्तनः सांसारिक धन वैभव का लोभ लालच छोड़ हम ईश्वर एवं सत्य की खोज में लगें।








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